'खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़' वाटर मैनेजमेंट का नायाब तरीका, सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड की ऐसे बदली तस्वीर
जीवन में पानी की जरूरत सबको होती है। बिना पानी के इंसान को जीवित रह पाना असंभव है। यूपी के बुंदेलखंड का इलाका पठारी है। यहां पर पानी की समस्या हमेशा से रही है। गर्मी की शुरुआत हो गई है। मार्च का दूसरा हफ्ता बीत रहा है और तापमान भी चढ़ रहा है, लिहाजा बुंदेलखंड के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी है। वजह पानी की कमी है।
यह बेचैनी अब से दस साल पहले काफी ज्यादा होती थी, अब थोड़ी कम हो गई हैं। जिन इलाकों में पानी पहले पीने के लिए भी उपलब्ध नहीं था, हालत यह थी कि मालगाड़ियों में भरकर पानी पहुंचाया जाता था, वहां अब पानी की समस्या कुछ हद तक कम हो गई है। हालांकि ये दिक्कतें अपने आप दूर हो गई हों, या कोई नदी, नहर वहां पनप उठा हो, ऐसा भी नहीं है।
जखनी के जलयोद्धा ने 25 साल पहले खोजी थी तरकीब
बुंदेलखंड के बांदा जिले के जखनी गांव के किसान उमाशंकर पांडेय ने पानी की समस्या को दूर करने के लिए 25 साल पहले एक तरकीब खोजी। हालांकि यह तरकीब नई नहीं थी, लेकिन इसको अपनाकर पानी बचाने के बारे में शायद पहले किसी ने नहीं सोचा। उमाशंकर पांडेय ने बारिश के पानी को बचाने के लिए 'खेत पर मेड़ मेड़ पर पेड़' नाम से एक अभियान शुरू किया। पहले वे अकेले ही इस काम में जुटे, बाद में कई अन्य लोग उनसे प्रभावित होकर इस काम में लग गये। सूखा प्रभावित बुंदेलखंड में बारिश भी कम ही होती है। फिर भी जितनी होती है, उसका पानी ही खेतों में बचा रह जाए तो पैदावार भरपूर हो सकती है।
जिद्दी, पागल, सनकी, झक्की कहकर गिराते थे उत्साह
बांदा जिले का यह जिद्दी इंसान गांव, मजरे, खेत-खेत पैदल साइकिल से निकला। कुछ लोगों ने उसे पागल, सनकी, झक्की कहकर उत्साह गिराने की भी कोशिश की। दिव्यांग होने का ताना दिया। सूखा कभी दूर नहीं होगा, जैसे मन गिराने वाली बातें कहीं, लेकिन पानी बचाने की जिद पालकर वह जलयोद्धा पुरखों के जल जोड़ने के बेजोड़ मंत्र को लेकर आगे बढ़ता रहा। गांव-गांव, घर-घर जाकर किसानों से अपील की कि अपने 'खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़' लगाकर बारिश की बूंदें जहां गिरें, वही रोकें।
जलशक्ति मंत्रालय ने जखनी गांव को पहला जलग्राम घोषित किया
इसका नतीजा यह हुआ कि बारिश का पानी खेतों में ही इकट्ठा होने लगा। इससे खेतों को पानी मिला, फसलों को जीवन दान मिला, अनाज की पैदावार बढ़ी, किसानों के घरों में खुशहाली आई। उमाशंकर पांडेय ने एक नारा दिया- 'पेड़ लगाओ पानी बचाओ।' भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय ने जखनी गांव को देश का पहला जलग्राम घोषित किया।
जिले के किसान पिछले करीब 10 वर्षों से अपने खेतों में पानी को इस तरकीब से रोक रहे हैं। हाल ही में जिला प्रशासन की ओर से 10,000 से अधिक किसानों के खेत पर मेड़बंदी की गई। 25,000 से अधिक किसानों ने खुद अपने हाथों मेड़बंदी की और बारिश की बूंदों को रोका। यह कवायद साल दर साल जारी है। हालत यह है कि जहां गेहूं-धान की कोई पैदावार नहीं थी, वहां लगातार पैदावार बढ़ रही है। सरकारी रिकॉर्ड भी इसकी पुष्टि करते हैं।
बुंदेलखंड के सात जिले- जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा और महोबा यूपी में पड़ते हैं। पहले यहां पानी की कमी से एक बिस्वा धान या गेहूं की पैदावार भी मुश्किल से ही होती थी। आज इन जिलों में बासमती चावल और गेहूं न केवल पैदा हो रहे हैं, बल्कि ये बाहर भी भेजे जा रहे हैं। सरकारी खरीद केंद्र में भी बिक्री हो रही है।
पीएम मोदी ने 'मन की बात' में किया विधि अपनाने का आह्वान
उनके इस काम की जानकारी तत्कालीन प्रशासन को हुई तो सूचना शासन तक पहुंची। अपने मासिक कार्यक्रम 'मन की बात' में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बारे में बताया। उन्होंने 8 जून 2019 को देश भर के ग्राम प्रधानों को पत्र लिखा और मेड़बंदी करके खेतों में बारिश के पानी को रोकने की तरकीब अपनाने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने दिया पद्मश्री सम्मान, कई इंटरनेशनल एवार्ड मिले
इसके बाद देश में इसकी चर्चाएं शुरू हो गईं। नीति आयोग ने भी जल संरक्षण की इस नायाब विधि को उपयुक्त बताया और इसको पूरे देश में फैलाने की सलाह दी। भारत सरकार ने उमाशंकर पांडेय को जलयोद्धा का नाम दिया और पद्मश्री से सम्मानित किया। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय जेपी अवार्ड देकर सम्मानित किया। इसके अलावा यूपी सरकार ने कई बड़े पुरस्कारों से उन्हें नवाजा।
आईआईटी, इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में लेक्चर के लिए बुलाए गये
देश के तमाम सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों ने उन्हें अपने यहां इस पर लेक्चर देने के लिए आमंत्रित किया। आईआईटी रुड़की में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उमाशंकर पांडेय ने कई देशों के विशेषज्ञों के बीच पानी बचाने को लेकर अपना व्याख्यान दिया। कुछ दिन पहले राजस्थान के उदयपुर में वर्ल्ड वाटर कैकलेब इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में उन्हें बोलने का अवसर दिया गया। भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय ने वाटर टाक के लिए उन्हें आमंत्रित किया। यूपी की योगी सरकार ने उन्हें जल संरक्षण पर अपनी बात रखने के लिए विशेष तौर पर बुलाया। कई सरकारी बैठकों में उनसे राय ली गई।
पानी की समस्या को दूर करने के लिए सियासतदानों ने भी काफी सियासत की, लेकिन किसी ने भी गंभीरता नहीं दिखाई। हर बार विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार पानी के लिए संघर्ष करने की कसम खाते रहे हैं, लेकिन जमीन पर कभी नतीजा नहीं दिखा। पहले ग्रामीण इलाकों में कुएं का जलस्तर का हाल यह था कि गर्मियों में या तो 100 फीट तक नीचे चला जाता था या फिर सूख जाता था। खेत पहले ही सूखे पड़े रहते थे, मवेशियों को पिलाने तक के लिए पानी नहीं रहता था। शहरों से दूर गांवों में कुछ छोटे जलस्रोत थे, जहां नाले जैसा पानी कहीं से बहकर आ जाता था तो लोग छानकर पीने और दूसरे कामों में उपयोग कर लेते थे।