पीएम और योगी आदित्यनाथ के चहेते हैं सुब्रत पाठक, पुलिस पर हमले के आरोप में FIR होने के बाद से हैं अखिलेश के निशाने पर
कन्नौज से बीजेपी के सांसद सुब्रत पाठक अपनी एक अलग ह पहचान रखते हैं। हो भी क्यों ना। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को जो हराया था। कन्नौज को सपा का गढ़ माना जाता है। डिंपल यहां से 2014 की मोदी लहर में भी सांसद बनी थीं। पाठक ने ही उनकी जीत का सिलसिला तोड़ा। यही वजह है कि वो पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ की गुड लिस्ट में हैं।
फिलहाल केस दर्ज होने के बाद से सुब्रत पाठक सपा चीफ अखिलेश यादव के निशाने पर हैं। अखिलेश लगातार पूछ रहे हैं कि सांसद पर केस तो दर्ज हो गया। लेकिन क्या पुलिस उनको अरेस्ट करने की जहमत भी उठाने जा रही है। पुलिस ने शनिवार को उनको नामजद किया था।
परफ्यूम के बिजनेस में 1911 से सक्रिय है सुब्रत का परिवार
कन्नौज को परफ्यूम का हब माना जाता है। सुब्रत पाठक का परिवार इस पेशे में कई दशकों से है। उनके पिता संघ की विचारधारा के समर्थक रहे हैं। माना जाता है कि सुब्रत पाठक को पिता से ही हिंदुत्व को अपनाने की प्रेरणा मिली। पाठक ने कन्नौज से पहली दफा किस्मत 2009 में आजमाई थी। लेकिन उनको अखिलेश यादव ने हरा दिया। उसके बाद वो 2014 में उनकी पत्नी डिंपल से हार गए। लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी और कन्नौज को ही अपनी कर्मस्थली बना लिया। उनको हिंदुत्व का अलंबरदार माना जाता है। 2019 में उन्होंने इसी छवि के दम पर डिंपल को 12353 वोटों से हराया।
2009 में गुजरात के सीएम मोदी ने किया था पाठक का प्रचार
पीएम मोदी से उनकी नजदीकी इस बात से ही जाहिर हो जाती है कि 2009 में जब वो कन्नौज से ताल ठोक रहे थे तब उनका प्रचार करने गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी खुद यूपी आए थे। वैसे उनका राजनीतिक रसूख अच्छा खासा है। कहते हैं कि 2007 में मायावती जब यूपी की सीएम बनीं तो उन्होंने सुब्रत को अपने पाले में लेने की भरसक कोशिश की। लेकिन पाठक ने बीजेपी का दामन नहीं छोड़ा।
सुब्रत का परिवार परफ्यूम बिजनेस में 1911 से है। उनके पिता ओम प्रकाश पाठक संघ के कट्टर समर्थक रहे। 2012 में ओम प्रकाश की पत्नी यानि सुब्रत की मां कन्नौज नगर पालिका की चेयरमैन भी बनीं। सुब्रत की शुरुआती शिक्षा संघ के स्कूलों सरस्वती विद्या मंदिर और सरस्वती शिशु मंदिर से हुई। डिग्री कॉलेज गए तो वहां छात्र संघ का चुनाव लड़े। बीजेपी से उनका पहली बार नाता 2000 में जुड़ा। 2006 में वो पार्टी की जिला कार्यकारिणी के अध्यक्ष बने। उस समय उनकी उम्र महज 26 साल थी। उसके एक माह बाद ही वो तब हिंदू नेता बन गए जब दो संप्रदायों के बीच हुए झगड़े में उनका नाम आया। हालांकि गवाहों के मुकरने की वजह से 2018 में कन्नौज की कोर्ट ने उनको बरी कर दिया।
अभी तक तीन केसों में हो चुके हैं नामजद, काशी रीजन के इंचार्ज भी रहे
पीएम मोदी के लिए वो कितने अहम हैं कि जब उनको संगठन में शामिल किया गया तो काशी रीजन का इंचार्ज बना दिया गया। 2020 में तहसीलदार के घर हुड़दंग मचाने के आरोप में उनके ऊपर फिर से एक केस दर्ज हुआ। हालांकि उनके नजदीकी लोग कहते हैं कि वो केस झूठा था तभी कुछ समय बाद खारिज कर दिया गया। फिलहाल पाठक को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। लेकिन उनसे जुड़े लोग कहते हैं कि वो खुद संगठन की जिम्मेदारी से अलग होना चाहते थे, क्योंकि वो अपना सारा ध्यान संसदीय क्षेत्र पर लगाना चाहते हैं। पाठक का कहना है कि इस बार अखिलेश के मैदान में उतरने की उम्मीद है। लिहाजा चुनौती काफी बड़ी होने जा रही है। वो अपने चुनाव को ध्यान में रखकर सारी एनर्जी कन्नौज में ही लगाना चाहते हैं।