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लाशों के ढेर में बेटे को ढूंढ़ते रहे बेबस रवींद्र शॉ, आधी रात से दोपहर तक यही करते रहे, फिर रोने लगे

दोनों बाप-बेटे परिवार पर हुए 15 लाख के कर्ज को चुकाने के लिए कमाने निकले थे। हादसे से ठीक पहले कर्ज चुकाने की योजना बना रहे थे।
Written by: संजय दुबे
June 04, 2023 06:44 IST
लाशों के ढेर में बेटे को ढूंढ़ते रहे बेबस रवींद्र शॉ  आधी रात से दोपहर तक यही करते रहे  फिर रोने लगे
ओडिशा के बालासोर में हादसे के बाद घायलों को ले जाते राहतकर्मी। (पीटीआई फोटो)
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ओडिशा में बालासोर ट्रेन हादसे के बाद एक स्कूल में लाशों का ढेर था। उसके बीच एक व्यक्ति किसी को ढूंढ़ रहा था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सफेद चादरों में छिपी हर लाश का चेहरा वह देखने के बाद, उसे बंद कर देता था। यह व्यक्ति बदहवास था और चीख रहा था। कुछ लाशों के चेहरे इतने खराब थे कि वह उन्हें देखकर अपनी आंखें बंद कर लेता और फिर अगली लाश की ओर आगे बढ़ता था। ट्रेन हादसे के बाद, रात में लाशों के ढेर के बीच पहुंचने वाला यह व्यक्ति दोपहर तक वहीं यही करता रहा। कुछ लोगों ने पूछा तो पता चला कि वह अपने बेटे की तलाश कर रहा है, जिसका कोरोमंडल ट्रेन हादसे के बाद से कुछ पता नहीं चल रहा था।

यह शख्स थे 53 वर्षीय पिता रवींद्र शॉ। वह अपने बेटे गोविंदा शॉ के साथ सफर कर रहे थे। दोनों बाप-बेटे परिवार पर हुए 15 लाख के कर्ज को चुकाने के लिए कमाने निकले थे। बेटा लापता है और अब पिता बदहवास। रवींद्र शॉ ने जो बताया उसे सुनकर ही रूप कांप जाए, लेकिन उन्होंने जो देखा, जरा सोचिए कि उन पर तब क्या गुजरी होगी।

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रवींद्र शॉ ने बताया कि वह और उनका बेटा बैठकर भविष्य की चर्चा कर रहे थे कि कितना कमाना है और कितना बचाना है। वह कब तक अपना कर्ज उतार सकते हैं। तभी अचानक कानों को चीर देने वाली आवाज आई और ट्रेन हादसा हो गया।

रवींद्र ने बताया कि उन्हें उसके बाद कुछ होश नहीं, कुछ मिनटों के लिए अंधेरा छा गया और उनका दिमाग सुन्न हो गया। जब होश आया तो सब तबाह हो चुका था। हर तरफ लाशें और शवों के टुकड़े पड़े थे। वह अपने बेटे को इन लाशों के टुकड़ों में ढूंढने लगे।

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कटे सर से लेकर धड़ों को वह गौर से देख रहे थे। किसी का कटा हाथ दिख जाता या पैर उसे भी गौर से देखते कि कहीं उनके बेटे के शरीर का कोई अंग तो नहीं। आधी रात तक वह बदहवाश ऐसे ही बेटे को खोजते रहे। उसके बाद वहां पहुंच गए जहां शवों का ढेर रखा गया था।

रवींद्र पास के एक स्कूल में पहुंचे जहां दर्जनों लाशें ढकी रखी थीं। वह उनके बीच में गए और एक तरह से एक-एक करके लाशों को देखने लगे। लेकिन उन्हें उनका बेटा नहीं मिला। रवींद्र वहीं बैठकर रोने लगे। कुछ लोगों ने उन्हें दिलासा दी और पीने के लिए पानी दिया। वह गुमसुम वहीं बैठ गए और फिर जो लाशें आती उन्हें देखने दौड़ पड़ते।

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