तवलीन सिंह का कॉलम: विकसित बनने का विश्वगुरु का सपना, बेशर्म बिगड़ैल 'बेटे' ने दिखा दिया आईना
सच पूछिए तो चुनावों के बारे में लिखने का इस सप्ताह मन ही नहीं हो रहा। कहने को अब है भी क्या, जब तक नतीजे नहीं आ जाते। ऊपर से, पिछले दिनों इतने दर्दनाक हादसे हुए हैं, जिन्होंने अपने तथाकथित प्रगतिशील, ‘विश्वगुरु’ भारत के चेहरे के सामने आईना दिखा कर साबित किया है कि ‘विकसित’ देश होने से हम कितनी दूर हैं। इन दर्दनाक, शर्मनाक घटनाओं में सबसे शर्मिंदा करने वाली घटना हुई थी पुणे में कुछ दिन पहले, जिस पर लिखने में भी तकलीफ होती है।
एक रईस के बिगड़ैल बेटे ने शराब पीकर पिता की दी हुई पोर्श गाड़ी तेज रफ्तार में चलाते हुए दो जवान लोगों को रौंद डाला। भीड़ जब इकट्ठा हुई और इस बिगड़े रईसजादे को गाड़ी में से घसीट कर उसकी पिटाई शुरू की तो उसने बेशर्मी से कहा कि ‘जितना पैसा चाहिए दे दूंगा, हमको मारो मत’। कहानी यहां खत्म हो गई होती, तो शायद कुछ कहने को न होता, इसलिए कि ऐसा तो विकसित देशों में भी हो सकता है। मगर जो आगे हुआ वह नहीं हो सकता है। बच्चे को जेल में बंद होने से बचाने के लिए उसके बाप और दादा ने अपने ही ड्राइवर को अगवा किया और उस पर दबाव डाला यह कहने के लिए कि गाड़ी वह चला रहा था। इतने में अस्पताल में डाक्टरों को रिश्वत दी गई हत्यारे बच्चे के खून की जांच कूड़े में फेंक कर दूसरे का खून रखने के लिए, ताकि सबूत न रहे कि उसने शराब पीकर गाड़ी चलाई थी। कहते हैं कि इस अपराध में साथ दिया कुछ नेताओं और पुलिसवालों ने भी।
ऐसी चीजें विकसित देशों में नहीं हो सकती हैं। विकसित देशों में कानून-व्यवस्था इतनी मजबूत होती है कि उसके साथ इस तरह की छेड़खानी कोई नहीं कर सकता है, न पैसों के बल से, न राजनीतिक दबाव से। ऐसी चीजें होती हैं उन देशों में जहां कानून-व्यवस्था इतनी कमजोर होती है कि देश की राजधानी में तीस फीसद अस्पताल चलाए जा रहे हैं नाजायज तरीके से। यह मालूम हुआ तब जब बच्चों के एक अवैध अस्पताल में आग लगी और उसमें कई नवजात बच्चों की मौत हो गई। ऐसी दर्दनाक घटना अगर किसी विकसित देश में होती तो कई दिनों तक खबर को मीडियावाले सुर्खियों में रखते, ताकि न्याय मिल सके उन बेचारों को, जिनके नवजात बच्चे उस अवैध अस्पताल के आइसीयू के अंदर जन्म लेते ही जिंदा जलकर मर गए थे। अपने भारत महान में बहुत कठिन है रास्ता न्याय का आम नागरिकों के लिए। न्याय मिलना आसान होता है सिर्फ धनवानों, राजनेताओं और आला सरकारी अफसरों के लिए।
हम जानते हैं कि अवैध निर्माण होता है अस्पतालों, स्कूलों और मनोरंजन स्थलों में भी, जहां बच्चे जाते हैं। इन जगहों में आग अक्सर लगती है, लोग अक्सर मरते हैं, जैसे पिछले दिनों राजकोट के एक मनोरंजन पार्क में तीस से ज्यादा लोगों की मौत हुई, जिनमें कई बच्चे थे। गुजरात हमारे विकसित राज्यों में है, लेकिन यहां कोई दो साल पहले मोरबी शहर में पुल के गिरने से 141 लोगों की मौत हुई थी और कोई 200 लोगों को चोटें आईं। बाद में मालूम हुआ कि पुल की मरम्मत का काम दिया गया था ऐसी कंपनी को जो घड़ियां बनाती थी, पुल नहीं।
उस हादसे के बाद कंपनी के मालिक कई दिनों तक फरार रहे। अब सजा हुई है कि नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन जब भी इस तरह के हादसे होते हैं, याद दिलाते हैं हमको कि भारत को विकसित देश बनने में अभी कई दशक लगेंगे। प्रधानमंत्री ने लक्ष्य रखा है 2047 तक भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाने का। लेकिन क्या इसके बारे में हम सोच भी सकते हैं, जब हर दूसरे दिन कोई ऐसी घटना घट जाती है, जिसमें लोग बेमौत मारे जाते हैं सिर्फ इसलिए कि अपने देश में कानून का डर किसी को नहीं है। यही कारण है कि हत्यारों, बलात्कारियों और आतंकवादियों को भी दंडित करने में कई दशक लग सकते हैं।
विकसित देशों में राष्ट्रपति भी दंडित किए जा सकते हैं, जैसे पिछले सप्ताह डोनल्ड ट्रंप को दंडित किया गया था न्यूयार्क की एक अदालत में। लाख बार कह चुके हैं ट्रंप कि उन पर चल रहे मुकदमे सब झूठे हैं, राजनीतिक बदला लिया जा रहा है उनसे, लेकिन मुकदमे फिर भी चल रहे हैं और वह भी इतनी पारदर्शिता से कि मीडिया मुकदमों के हर पहलू पर खुल कर टिप्पणी कर रहा है। इन पर चर्चाएं होती हैं टीवी पर, जिनमें लोग निडर होकर कहते हैं कि ट्रंप को याद रखना चाहिए कि कानून के सामने सब बराबर होते हैं, चाहे वह राष्ट्रपति क्यों न हो।
ऐसी कानून-व्यवस्था जब बनेगी भारत में तब हम वास्तव में देख सकेंगे विकसित होने का सपना। अभी हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि जो भी बनते हैं देश के अगले प्रधानमंत्री वे कानून-व्यवस्था को मजबूत करने पर अपना पूरा ध्यान लगाएंगे। अदालतों पर आम भारतीय नागरिकों का भरोसा इतना कमजोर है कि इस देश के कई ऐसे लोग हैं, जो अदालतों तक जाते ही नहीं हैं। एक तो न्याय मिलने में दशकों लग सकते हैं और दूसरा इसलिए कि बहुत कम लोग हैं इस देश में, जो इतने अमीर हैं कि वकीलों के पैसे दे सकें। पिछली बार जब मैंने किसी वकील से सलाह ली थी तो एक घंटे के लिए मुझे तीस हजार रुपए देने पड़े और वह भी एक ऐसे वकील को जो नामी नहीं थे। न्याय-व्यवस्था अपने देश में सिर्फ धनवानों के लिए है। विकसित देशों में ऐसा नहीं है। इसलिए फिलहाल हमको विकसित बनने का सपना भूल जाना चाहिए।