सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर: नया संविधानवाद और पक्ष-विपक्ष में ‘सुंदर सहमति’ के दृश्य, सत्ता के लिए 'ध्वनि मत का महत्व'
लगता है कि दुर्भाग्य सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा। कोई न कोई आफत आती ही रहती है! एक ओर ‘नीट पेपर लीक’ और ‘नेट पेपर लीक’ है, दूसरी ओर राम मंदिर की छत तक में ‘लीक’ की खबर है। उधर दिल्ली के हवाईअड्डे ‘टी-1’ की छत के एक हिस्से के गिरने की खबर है। इधर ऐसे दृश्य, उधर विपक्ष आक्रामक! प्रवक्ता कहिन कि ये कैसी सरकार है जो कोई भी काम कायदे से नहीं कर सकती! हर चैनल पर पर्चाफोड़ की चर्चा। आंकड़ेबाज बताते कि अब तक साठ से अधिक पर्चाफोड़ की घटनाएं हुईं।
अपेक्षाकृत मजबूत विपक्ष ‘फार्म’ में कि शिक्षामंत्री शपथ लिए तो करने लगा मांग कि शिक्षामंत्री इस्तीफा दो। ‘लीक प्रकरण’ के साथ-साथ कुछ बहसें ‘एनसीईआरटी’ की नई किताबों पर भी रहीं। एनसीईआरटी का पक्ष बताता रहा कि ‘बाबरी मस्जिद’ के जिक्र की जगह ‘तीन गुंबदों वाला ढांचा’ लिखा गया है और दंगों में हिंसा के विवरण हटा दिए गए हैं, ताकि बच्चों पर उस हिंसा का असर न हो, जबकि आलोचक पक्ष कहता रहा कि इतिहास को ‘सेनिटाइज’ करना ठीक नहीं। जो हुआ है, उसे न बताना और भी गलत बात है।
लोकसभा में ‘प्रोटेम अध्यक्ष’ पर पंगा रहा। सत्ता पक्ष ने अपना ‘नामित’ दे दिया तो विपक्ष ने भी अपना पत्ता खेल दिया। फिर भी सत्ता पक्ष के ‘नामित’ ही ‘प्रोटेम अध्यक्ष’ बने! इसी तरह लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव पर भी पंगा रहा। एक संविधानविद् कहिन कि लोकसभा अध्यक्ष सर्वसम्मति से चुना जाता है, फिर भी विपक्ष ने चुनाव पर जोर दिया, लेकिन आधे दिल से। जब ‘प्रोटेम अध्यक्ष’ ने ‘ध्वनिमत’ से सत्ता दल के नामित ओम बिरला को विजयी घोषित कर दिया तब विपक्ष ने सदन में ‘मत विभाजन’ की मांग नहीं की।
इस बीच राहुल गांधी विपक्ष के नेता चुने गए! बहुत दिन बाद विपक्ष को अपना नेता मिला। फिर विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद राहुल गांधी का प्रधानमंत्री के साथ जाकर लोकसभा अध्यक्ष से हाथ मिलाकर उनका स्वागत करने के दृश्य दो मिनट की ‘सुंदर सहमति’ के दृश्य की तरह दिखे।
प्रधानमंत्री ने अपने अभिभाषण में लोकसभा अध्यक्ष महोदय की पिछले पांच बरस की उपलब्धियां गिनाईं और आगे की भूमिका को रेखांकित किया तो विपक्ष के नेताओं ने लोकसभा अध्यक्ष को संविधान के अनुसार कार्य करने को कहा और यह भी चेताया कि जरा-सी बात पर सांसदों के निलंबन की कार्रवाई से परहेज करना चाहिए। और सदैव ‘मुदित मुख’ ओम बिरला सारी आलोचना और सलाहों पर मुस्कुराते रहे।
फिर आए विपक्षी सांसदों द्वारा संविधान के ‘लाल कवर’ के ‘पाकेट संस्करण’ को हाथ में लेकर ‘जय संविधान’ कह कर शपथ लेने के दृश्य! इसके बाद लोकसभाध्यक्ष महोदय का आपातकाल की निंदा करने वाला प्रस्ताव आया तो कुछ हंगामा हुआ, लेकिन कुछ शांति भी रही। विपक्ष के एक हिस्से में आपातकाल की आलोचना प्रस्ताव पर ‘एतराज’ दिखा।
फिर आया एक सपा सांसद का ‘सेंगोल’ पर सीधा हमला कि ये राजतंत्र का प्रतीक है, जनतंत्र के मंदिर में इसका क्या काम… इसकी जगह संविधान की बड़ी-सी प्रति रखी जाए। जवाब में सत्ता प्रवक्ता ‘सेंगोल’ के बचाव में ही लगे रहे। वे बताते रहे कि यह राजतंत्र का प्रतीक न होकर ‘इंडिक सभ्यता’ के ‘न्याय’ का प्रतीक है, जबकि विपक्ष कहता रहा, यह तानाशाही का प्रतीक है।
विपक्ष के एक नेता ने तो चुटकी भी ली कि जब लगा था तो प्रधानमंत्री ने प्रणाम भी किया था, लेकिन इस बार भूल गए। उनके सांसद शायद यही याद दिलाना चाहते हैं। विपक्ष की इस ‘कूट चातुरी’ का जवाब भाजपा प्रवक्ताओं के पास नहीं दिखा। वे वही पुराने तर्क देते रहे कि ‘सेंगोल’ अगर राजतंत्र का प्रतीक है तो अशोक का ‘धम्मचक्र’ किसका प्रतीक है? क्या उसे भी हटाएं? भाजपा प्रवक्ता के ऐसे मासूम तर्क सुनकर एक पत्रकार ने कहा कि विपक्ष के लिए ‘सेंगोल’ तो बहाना है, असली इरादा भाजपा की छवि को ‘संविधान विरोधी’ बताना है।
बहरहाल, नई संसद के सांसदों की शपथ के दृश्यों ने भी कुछ ‘नई जनतांत्रिक ऊंचाइयां’ छुईं। एक सांसद ने शपथ के बाद कह दिया ‘जय फिलिस्तीन’ तो सत्ता पक्ष से आई- ‘हाय-हाय’। जब एक और सांसद जी ने शपथ के बाद कह दिया कि ‘जय हिंदूराष्ट्र’ तो विपक्ष से आई ‘हाय-हाय’। फिर मांग हुई कि ‘जय फिलिस्तीन’ को रिकार्ड से निकाला जाए और सांसद के खिलाफ कार्रवाई हो। बहसों में सत्ता प्रवक्ता बार-बार कहते रहे कि आप फिलिस्तीन के समर्थक हो सकते हैं, लेकिन संसद में शपथ लेते वक्त किसी दूसरे देश का ‘महिमामंडन’ नहीं कर सकते। शुक्रवार के दिन विपक्ष के नेता ने चाहा कि संसद पहले ‘नीट घोटाला’ पर चर्चा करे, लेकिन जब अध्यक्ष ने कहा कि राष्ट्रपति का भाषण एजंडे पर है तो विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया और फिर सत्र को स्थगित कर दिया गया।