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तवलीन सिंह का कॉलम वक्त की नब्ज: राज के बजाय शासन, पीएम मोदी को रामलला का संदेश है अयोध्या में पराजय

पिछले हफ्ते मेरी बात हुई थी मुंबई के कुछ बड़े उद्योगपतियों से, जिन्होंने कहा कि मोदी अगर प्रधानमंत्री न बनते तो अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान हो सकता था, लेकिन साथ में यह भी कहा कि पूर्ण बहुमत अगर आया होता, तो देश को नुकसान हो सकता था।
Written by: तवलीन सिंह
नई दिल्ली | Updated: June 16, 2024 09:02 IST
तवलीन सिंह का कॉलम वक्त की नब्ज  राज के बजाय शासन  पीएम मोदी को रामलला का संदेश है अयोध्या में पराजय
पीएम मोदी के पुराने साथी मोहन भागवत ने जो कुछ कहा वह आलोचना कम और सकारात्मक सलाह ज्यादा है।
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बदले-बदले से लग रहे हैं नरेंद्र मोदी चुनाव नतीजों के बाद। जिस व्यक्ति ने कुछ हफ्ते पहले कहा था अपने बारे कि उनको परमात्मा ने भेजा है। जिस व्यक्ति ने चार सौ पार का नारा दिया था। अब लगता है उसके पांव जमीन पर उतार दिए हैं जनता जनार्दन ने। ऐसा करना जरूरी हो गया था। जैसे कि मोदी के पुराने साथी मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह कहा, ‘जो वास्तविक सेवक है वह मर्यादा का पालन करता है, लेकिन कर्मों में लिप्त नहीं होता। उसमें अहंकार नहीं आता कि मैंने किया है।’ यह आलोचना कम और सकारात्मक सलाह ज्यादा है, जिसको मोदी अगर भूलेंगे नहीं, तो अपने तीसरे कार्यकाल में बेहतर प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

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दूसरे कार्यकाल में अहंकार की सीमाएं लांघी गईं

दूसरे कार्यकाल में उनमें अहंकार इतना आ गया था कि कई बार ऐसा लगा जैसी कि वे अपने आप को राजनेता कम और मसीहा ज्यादा समझने लगे थे। कई चीजें की हैं उन्होंने पिछले पांच वर्षों में, जिनसे लगा आम लोगों को कि मोदी देश के लिए नहीं, अपनी शान बढ़ाने के लिए काम कर रहे थे। कोविड टीकों के सर्टिफिकेट से लेकर जितनी भी सरकारी योजनाएं थीं गरीबों को लाभ पहुंचाने वाली, उन सब पर उनकी फोटो चिपकाई जाती थी। बस अड्डों से लेकर पेट्रोल पंपों पर मोदी के विज्ञापन दिखते थे, किसी न किसी योजना का श्रेय लेते हुए। चुनाव प्रचार शुरू होने से कुछ महीने पहले उनके कटआउट लगाए गए थे हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर, ताकि उनके साथ मोदीभक्त सेल्फी ले सकें। अहंकार की सीमाएं ऐसी लांघी गईं कि रामलला की प्राण प्रतिष्ठा उन्होंने खुद की, जबकि यह काम महंतों, पुजारियों का होता है।

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चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अयोध्या (फैजाबाद चुनाव क्षेत्र) हरवा कर लगता है, मोदी को रामलला ने स्वयं संदेशा भेजा है। सच पूछिए तो जबसे नतीजे आए हैं, मैंने कई लोगों से बातें की और सबने यही कहा कि ‘अच्छा हुआ’। पिछले हफ्ते मेरी बात हुई थी मुंबई के कुछ बड़े उद्योगपतियों से, जिन्होंने कहा कि मोदी अगर प्रधानमंत्री न बनते तो अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान हो सकता था, लेकिन साथ में यह भी कहा कि पूर्ण बहुमत अगर आया होता, तो देश को नुकसान हो सकता था। मोदी ने देश के लिए कई अच्छी चीजें की हैं, लेकिन नुकसान भी काफी किया है।

CAA को लेकर पीएम ने मुस्लिमों को कोई आश्वासन नहीं दिया

नुकसान मेरी नजर में सबसे ज्यादा हुआ है दो चीजों से। एक तो दरार पैदा की गई है हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, जो बनी है मोदी सरकार की कुछ नीतियों की वजह से। गोरक्षा के नाम पर जो हत्याएं हुई हैं मुसलिम मांस व्यापारियों और पशुपालक किसानों की, उनकी निंदा प्रधानमंत्री की तरफ से एक बार नहीं हुई। जब नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर मुसलिम समाज में इतना भय फैल गया था कि देश भर के शहरों में वे इस नए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने निकले, तो प्रधानमंत्री की तरफ से लंबे समय तक कोई आश्वासन नहीं आया कि जो देश के असली मुसलिम नागरिक हैं, उनको चिंता नहीं करनी चाहिए।

धमकी भरे भाषण दिए गृहमंत्री ने। एक में उन्होंने बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए लोगों के बारे में कहा कि भारत में ‘दीमक की तरह फैल गए हैं’। दूसरे भाषण में स्पष्ट शब्दों में कहा कि नए कानून के बाद नागरिकता रजिस्टर बनेगा, जिसके तहत उन मुसलमानों को देश से निकाला जाएगा, जिनके पास नागरिकता साबित करने के दस्तावेज नहीं होंगे। कई गरीब नागरिक हैं भारत के, जिनके पास नागरिकता के सबूत नहीं हैं। हिंदू भी और मुसलमान भी। मुसलमान क्यों न डर जाएं? गरीब हिंदू जानते हैं कि उनसे नागरिकता के सबूत नहीं मांगे जाएंगे, सो उनको कोई डर नहीं था। मोदी के राज में मुसलमान वैसे भी इतने खौफजदा रहे हैं, तो नए कानून से उनको डर अगर लगा तो वह जायज था।

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समस्या यह भी थी कि भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में बुलडोजर न्याय की प्रक्रिया शुरू की गई थी, जिसके तहत बिना अपराध साबित किए, मुसलमानों के घर और उनके कारोबार तोड़े गए बुलडोजरों से, जब भी किसी हिंदू धार्मिक जुलूस पर पथराव किया गया। बुलडोजरों ने उन हिंदुओं के घर नहीं तोड़े, जिनके गलत नारों के कारण हिंसा भड़की। तोड़े गए सिर्फ मुसलमानों के मकान। और प्रधानमंत्री के मुंह से निंदा के दो शब्द नहीं निकले। नुकसान भारत की छवि को हुआ दुनिया भर में।

नुकसान और भी हुआ जब उन पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई हुई, जिन्होंने मोदीभक्ति नहीं दिखाई अपनी पत्रकारिता में। उन गैरसरकारी संस्थाओं का विदेशों से आने वाला चंदा रोक दिया गया, जो ईसाई या मुसलिम लोग चला रहे थे, लेकिन हिंदू धार्मिक संस्थाओं का विदेशों से चंदा इकट्ठा करना बरकरार रहा। इन सब चीजों के कारण मोदी की छवि इतनी बिगड़ गई थी उनके दूसरे दौर में कि विदेशों में जो संस्थाएं नजर रखती हैं लोकतंत्र को चोट पहुंचाने वाली सरकारों पर, उन सबने भारत के बारे में कहना शुरू किया कि भारत अब लोकतांत्रिक देश न रह कर अर्ध-लोकतांत्रिक देश बन गया है।

मोदी ने अपने आसपास जो चमचों की टोली इकट्ठा कर रखी थी, उन्होंने कभी उनसे कहने की कोशिश नहीं की कि उनको साथ देना चाहिए लोकतंत्र का, इसलिए कि लोकतंत्र सिर्फ चुनावों से नहीं जिंदा रहता, उसकी देखभाल चुनावों के बीच वाले समय में भी की जानी चाहिए। तो अब क्या होगा? अब मोदी सरकार निर्भर है ऐसे राजनेताओं पर, जो दुनिया की नजरों में पूरी तरह ‘सेक्युलर’ और ‘लोकतांत्रिक’ हैं, सो मोदी की चौकीदारी ये लोग करेंगे। इसलिए मोदी को राज करने के बजाय शासन चलाना होगा। असली सेवक बनना होगा।

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