सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर: न पहले वाला शोर, न पहले जैसा जोश, ‘ऐतिहासिक जीत’ और तीसरी बार फिर ‘एनडीए गठबंधन’ की सरकार
चार जून की शाम! वही भाजपा मुख्यालय! वही नायक! वही समर्थक! एक हारी हुई खुशी चेहरों पर। न पहले वाला शोर, न पहले जैसा जोश, फिर भी ‘विजयोत्सव’ का माहौल और मोदी का संबोधन, कि ‘मंगल’ का दिन और ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ वाला भाव। ‘ऐतिहासिक जीत’ और तीसरी बार फिर ‘एनडीए गठबंधन’ की सरकार।
चैनलों में, एक कहे उसकी कटी, दूसरा कहे उसकी मुझसे ज्यादा कटी, सभी कहें सभी की कटी, फिर भी एक खिसियाहट भरी मुस्कान सबके चेहरे पर कि उसकी मेरे से ज्यादा कटी, हा… हा… हा।
बहसों में सब एक-दूसरे की मायूसी को देख खुश दिखते। एक कहता कि कहां हुए ‘चार सौ पार’, बल्कि हो चुकी है ‘नैतिक हार’ तब ‘काहे बनाते सरकार’। तो, जवाब आता कि भले नहीं ‘चार सौ पार’ लेकिन फिर भी ‘यह है ऐतिहासक जीत’ और ‘तीसरी बार फिर मोदी सरकार।’
जनता दिखा चुकी सबको उनकी औकात, फिर भी बहसों में छाया रहा अहंकार और दुरहंकार।
एक ओर नई गठबंधन सरकार बनाने की कवायद और हर पल संशय कि ‘बकरा किस्तों में कटेगा, कि कटेगा एक झटके में?’
बहसों में ‘हार’ का ‘कारण विचार’ कि ‘चार सौ पार’ न जा पाने का असली कारण ‘भितरघात’, कि ‘गद्दारों की गद्दारी’, कि भाजपा की ‘अंतर्कलह’, कि भाजपा द्वारा ‘बाहर वालों को टिकट देने से पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी’, कि भाजपा द्वारा अपने को ‘इंडिपेडेंट’ दिखाने से ‘संघ नाराज और अक्रिय’, कि विपक्ष के छापामार हमले कामयाब, कि उलटा पड़ा ‘अबकी बार चार सौ पार’ का बड़बोलापन, कि विपक्ष का ‘नैरेटिव’ कामयाब, कि ‘चार सौ पार’ तो संविधान खत्म, जनतंत्र खत्म, चुनाव खत्म और ‘संविधान व जनतंत्र बचाओ’ की पुकार, कि ‘बेरोजगारी, महंगाई’ की मार, कि अग्निवीर योजना की अव्यावहारिकता से हाहाकार, कि ‘अल्पंसख्यकों’ ने विपक्ष को जिताया, कि ‘दलितों’ ने जिताया, कि ‘यूपी के दो लड़कों’ ने हराया, कि बंगाल में ममता का ‘खैला’ एक बार फिर चला।
मगर, ‘मार खा रोई नहीं’ की मुद्रा वाले नेता कहिन कि सब मिलकर करेंगे विचार कि कैसे न हो पाए ‘चार सौ पार’, फिलहाल बनाने दो तीसरी बार मोदी की एनडीए सरकार।
और पल-पल बनती सरकार और पल-पल बढ़ता संदेह कि कब तक चलेगी ऐसी सरकार, कि कब तक ‘पलटूराम’ नहीं मारेंगे ‘पलटी’, कि कैसे होगी ‘अल्पसंख्यकों’ को चार फीसद आरक्षण देने की मांग पर ‘सहमति’, कि ‘अग्निवीर’ और ‘यूसीसी’ पर पुनर्विचार, कि किस-किस को क्या-क्या दोगे महाराज। कई कहें कि बेहतर हो न बनाओ ये सरकार। लेकिन जवाब आता कि हमें तो बनानी है तीसरी बार मोदी सरकार। जनादेश मिला है कि बनाओ मोदी सरकार।
लेकिन ऐसी ही रही खींचतान, तो बन ली सरकार और बन भी गई, तो सवाल कि कब तक चलेगी ऐसी सरकार। और तब तो बन लिया विकसित ‘भारत महान’!
इधर बनती सरकार, उधर सुल्तानपुर से लेकर सहारनपुर तक में उपद्रव की खबरें। इधर बनती सरकार कि उधर चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर सीआइएसएफ की एक अफसर द्वारा नई चुनी भाजपा सांसद कंगना रनौत के गाल पर थप्पड़ और जब कंगना पूछीं कि क्यों मारा, तो कहिन कि मेरी मां किसान धरने पर थी, तबके तेरे बयान के लिए मारा।
एक चैनल पर चलती चर्चा में जब एंकर ने इसे गलत कहा, तो एक ‘विपक्षी’ ने कहा कि यह तो ‘डिस्सेंट’ है, ‘असहमति’ है!
फिर एक शाम विपक्ष के एक बड़े नेता ने एक प्रेस वार्ता के जरिए आरोप लगाया कि देश के दो बड़े सत्तासीन नेताओं ने अपने बयानों से ‘शेयर मार्केट’ को ‘मैनीपुलेट’ किया, जबकि जानते थे कि सरकार नहीं बन रही, मतदान पश्चात सर्वेक्षणों और कुछ चैनलों की मिलीभगत से भी ‘शेयर बाजार’ को ‘मैनीपुलेट’ किया गया। संयुक्त संसदीय समिति जांच करे।
जब एक महिला पत्रकार ने सवाल किया कि हर बार जेपीसी की मांग होती है, हर बार संसद का सत्र बेकार हो जाता है, तो तुरंत कटाक्ष आया कि यह भाजपा की लाइन है।
कुछ देर बाद ही, सत्तापक्ष के एक बड़े नेता ने साफ किया कि यह सब बदनाम और जनता को गुमराह करने की कोशिश है।
बहरहाल, पुराने संसद भवन में एक बार फिर कुछ पुराने सदाबहार ‘मोदी मोदी’ वाले ‘ताली मार’ दृश्य दिखे। राजग के नए सांसदों की बैठक में मोदी के स्वागत में घटक दलों के सभी नेताओं ने मोदी को सर्वसम्मति से अपना नेता चुनते हुए उनकी जैसी प्रशंसा की, वह अश्रुतपूर्व दिखी और मोदी भी अपने भाषण में ‘योद्धा भाव’ में दिखे। उन्होंने ‘चार सौ पार’ न पाने की ‘हताशा’ को ‘आशा’ में बदल दिया। उन्होंने कहा कि यह ‘एनडीए’ की ‘महाविजय’ है! न हम हारे थे न हारे ह। जो कहते थे कि ‘चार जून को मोदी पीएम नहीं रहेंगे’, उन्हीं के लिए मानो मोदी ने कहा कि फिर वही सरकार लाया हूं।