सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर: 'राहुल नाम चढ़ती कला', चुनाव से लेकर NEET तक हर तरफ राजनीति का जोर
एंकर : संघ के बयान पर आप इतने खुश क्यों हो रहे हैं? विपक्षी प्रवक्ता : अहंकार में विवेक मर जाता है? विश्लेषक : भाजपा और संघ बंटे हैं। भाजपा में दो धड़े बने हैं- एक मोदी के साथ, दूसरा संघ के साथ। एक प्रवक्ता : संघ अन्योन्य अलंकार है, संघ अतुलनीय है, संघ की तुलना सिर्फ संघ से ही की जा सकती है। फिर एक दिन खबर टूटी कि अरुंधती राय द्वारा 2010 में दिए गए बयान को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा यूएपीए के अंतर्गत मुकदमा चलाने के आदेश यानी फिर ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने’ की राजनीति! इस बीच प्रधानमंत्री का जी-7 के लिए इटली दौरा, उनका पोप से झुक कर गले मिलना, विश्व के नेताओं से मिलना, साथ ही इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी द्वारा मोदी के साथ हंसते हुए एक ‘सेल्फी टीजर’ देकर लोगों का मनोरंजन करना।
कई चैनल चुनावों के ‘मानी’ खोजते रहे कि क्या एनडीए गठबंधन टिक सकता है, क्या मोदी गठबंधन सरकार चला सकते हैं। एक पक्ष कहिन कि गठबंधन टिकेगा, क्योंकि यह चुनाव पूर्व का है। नायडू अमरावती में व्यस्त रहेंगे और नीतीश अपनी ‘लीगेसी’ के चक्कर में रहेंगे। फिर मोदी ने आपातकाल के दिनों में ‘अंडर ग्रांउड’ रहकर एक ओर ‘संघ भाजपा’ के नेताओं और दूसरी ओर ‘जमात’ के नेताओं के बीच ‘कोआर्डिनेशन’ का काम किया! वे गठबंधन चला सकते हैं।
ऐसी बहसों में संघ के उन विशेषज्ञ की मांग बढ़ गई जो भाजपा द्वारा अपेक्षाकृत कम सीटें पाने के कारणों के बारे में लिख चुके थे। इसी बीच एक वैश्विक ‘साइबर बिल्ली’ ने ईवीएम पर निशाना क्या साधा कि सारी देसी बंदूकें गरजने लगीं कि ईवीएम जाए, बैलट पेपर आए। एक कहिन कि जब इतनी बड़ी वैश्विक हस्ती ने ईवीएम को ‘म्याऊं’ किया है तो कुछ तो सच होगा। ईवीएम के पक्षधर बोले कि बैलट पेपर लाओ, ताकि अतीत की तरह ‘बैलट लुटेरे’ जीत हार तय कर सकें।
फिर आया एक चैनल पर उत्तर प्रदेश में सबसे ‘लोकप्रिय कौन’ वाला सर्वे, जिसने बताया कि चुनाव के बाद यूपी की जनता में राहुल की लोकप्रियता छत्तीस फीसद है, जबकि मोदी की लोकप्रियता बत्तीस फीसद है। जब यही सवाल दूसरे ‘सेफालाजिस्ट’ से पूछा तो जवाब मिला कि हमारा आंकड़ा ऐसा नहीं दिखाता। फिर एक दिन राहुल भाई ने ‘शुक्रिया वायनाड जनता’ कहा और कहा कि मेरी बहन प्रियंका वायनाड का प्रतिनिधित्व करेंगी और वे स्वयं रायबरेली सीट रखेंगे। उसके बाद भाई-बहन की जोड़ी देर तक केंद्र में रही। इसे कहते हैं राहुल नाम चढ़ती कला!
फिर भी भाजपा प्रवक्ता पहले की तरह ही ‘परिवारवाद’ को कोसते रहे, जबकि इस चुनाव ने परिवारवाद के आरोप को खारिज कर दिया है। शायद इसीलिए एक कांग्रेसी प्रवक्ता ने पहली बार एक चैनल पर खुलकर कहा कि हां हम हैं परिवारवादी।
फिर आया राहुल का जन्म दिन, जिसे पहली बार कई चैनलों ने देर तक जम के दिखाया। राहुल भाई चौवन बरस के हुए। एक चैनल ने लाइन दी कि राहुल ‘जननायक’! एक ने कहा कि राहुल को कांग्रेस ने ‘जननायक’, ‘पार्टी का चेहरा’ बनाया जो एक दिन प्रधानमंत्री बन सकते हैं। एक कांग्रेसी नेता ने कहा कि कार्यकर्ताओं की इच्छा है कि वे देश की बागडोर संभालें। चुनाव के दौरान वे ‘महानायक’ के रूप में सामने आए हैं।
ऐसे माहौल में भी भाजपा प्रवक्ताओं के आरोप रहे कि राहुल की खटाखट वाली योजनाओं पर सवाल उठ रहे हैं कि वे ‘तीसरी बार नाकाम’ हैं। एक पत्रकार ने कहा कि राहुल को लोगों ने बधाइयां दी हैं। कार्यकर्ता आज अधिक सम्मान करते हैं… वे ‘प्रधानमंत्री पद के लिए पसंद’ हैं जब अवसर होगा।
एक एंकर कहती दिखी कि राहुल का आत्मविश्वास बढ़ा है, अब वे पप्पू नहीं हैं। इस पर एक भाजपा प्रवक्ता कहिन कि आपने कभी इतनी तारीफ नहीं की राहुल की। एंकर ने कांग्रेस पक्षधर से सवाल किया कि अभी से जननायक कैसे बना दिया तो जवाब आया कि राहुल की यात्रा में जनता से जुड़ाव ने उनको बनाया। एंकर ने कहा राहुल ‘गति अवरोधक’ हैं, जिन्होंने मोदी की गति रोकी।
और फिर एक दिन ‘नीट’ परीक्षा में कुछ को ‘ग्रेसमार्क’ और फिर ‘पेपरलीक’ के पटना से तार जुड़े होने की खबरें। फिर सत्रह-अठारह दिन से चलता छात्र आंदोलन और फिर ‘नेट’ परीक्षा में पेपर लीक की खबरें। यों शिक्षा मंत्री ने संवाददाता सम्मेलन के जरिए आग बुझाने की कोशिश की कि छात्रों की चिंता सर्वोपरि, कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, कि कमेटी बनाएंगे, कि परीक्षा पद्धति में सुधार करेंगे। बहरहाल, कल तक सरकार की लाइन लेने वाले चैनल तक सरकार के प्रति आलोचनात्मक नजर आए। एक चैनल ने लाइन लगाई कि ‘भारत एक ‘लीक प्रधान’ देश है?’ इसी बीच केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिलना और फिर ईडी का हाइकोर्ट जाना और जमानत पर रोक लगना, तिस पर महीने भर से दिल्ली में पानी की किल्लत, ‘आप’ का अनशन और विपक्ष की ‘घड़ा फोड़’ राजनीति।