सिर्फ मोदी का चेहरा नहीं चलता… गुजरात में इन जातियों का समर्थन हर पार्टी के लिए है जरूरी
गुजरात में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री और राजकोट से बीजेपी उम्मीदवार पुरषोत्तम रूपाला ने क्षत्रियों पर विवादित टिप्पणी कर दी। इसके बाद 23 मार्च से ही क्षत्रियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। पुरषोत्तम रूपाला का टिकट काटने की मांग स्वीकार नहीं किए जाने के बाद क्षत्रिय समुदाय ने भाजपा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए राज्य में अपने 92 संगठनों की एक समन्वय समिति बनाई है। क्षत्रिय प्रदर्शनकारियों ने अपने लोकसभा क्षेत्रों में कुछ भाजपा उम्मीदवारों के प्रचार को भी रोका है।
हालांकि भाजपा ने क्षत्रिय संगठनों की मांग नहीं मानी है लेकिन पुरषोत्तम रूपाला और पार्टी के अन्य नेताओं ने समुदाय से माफ़ी जरूर मांगी है। आइए नजर डालते हैं गुजरात की राजनीति को प्रभावित करने वाली जातियों पर:
क्षत्रिय
गुजरात में ऊंची जाति के क्षत्रियों या राजपूतों की आबादी पर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है। राजपूत संगठनों की समन्वय समिति ने दावा किया है कि समुदाय की राज्य में 10% आबादी है। इसके समन्वयक रामजुभा जड़ेजा ने कहा कि क्षत्रियों की संख्या लगभग 70 लाख है। जाडेजा का दावा है कि समुदाय जामनगर, राजकोट, सुरेंद्रनगर, भावनगर, कच्छ, बनासकांठा, साबरकांठा, आनंद और भरूच सहित कई लोकसभा सीटों पर चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकता है। राज्य की सभी 26 सीटों पर 7 मई को मतदान होना है। बीजेपी के एक क्षत्रिय समुदाय के नेता का दावा है कि समुदाय की आबादी 17% है।
अहमदाबाद के समाजशास्त्री गौरांग जानी के अनुसार राजपूतों की जनसंख्या लगभग 7-8% होगी। जानी ने कहा कि इतनी ताकत को देखते हुए राजपूतों का चुनावी नतीजों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि क्षत्रियों का एक वर्ग भाजपा का समर्थन कर रहा है।
गुजरात बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ''हम इस क्षत्रिय आंदोलन से ज्यादा चिंतित नहीं हैं। वे संख्या के रूप से बहुत मजबूत नहीं हैं और उनमें से सभी हमारे ख़िलाफ़ नहीं हैं। इनमें से कई बीजेपी के साथ हैं। इसलिए इस आंदोलन से हम पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में क्षत्रियों के ख़िलाफ़ अन्य समुदायों के वोटों के ध्रुवीकरण से हमें फ़ायदा हो सकता है।"
हालांकि 2 मई को सौराष्ट्र में अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षत्रिय समुदाय को आश्वस्त करने की कोशिश की और लोगों से कांग्रेस के लिए अपने वोट बर्बाद न करने के लिए कहा। पीएम मोदी ने जामनगर में नवानगर शासक परिवार के पितामह शत्रुशल्यसिंहजी जड़ेजा से भी मुलाकात की।
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)
ओबीसी समुदाय पूरे गुजरात में फैली हुई हैं। इसकी आबादी राज्य में लगभग 45-50% है। राज्य में दो प्रमुख ओबीसी समूह कोली और ठाकोर हैं। कुछ अन्य प्रमुख ओबीसी समुदायों में चौधरी, मालधारी और खानाबदोश-जनजाति और गैर-अधिसूचित जनजाति (एनटी-डीएनटी) शामिल हैं।
राज्य में कुल मिलाकर 146 समुदाय हैं जिन्हें ओबीसी के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है, जिनमें कुछ मुस्लिम समूह भी शामिल हैं। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "पाटीदार समुदाय राज्य में हमारे समर्थन की रीढ़ है। हालांकि हमारी पार्टी ओबीसी की उपेक्षा न करने का सचेत प्रयास करती है। बीजेपी की कोशिश रही है कि 1980 के दशक में कांग्रेस द्वारा बनाया गया KHAM (क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी-मुस्लिम) समीकरण दोबारा हावी न हो और इसलिए हमारी पार्टी बहुत सचेत रूप से यह सुनिश्चित करती है कि ओबीसी के हित और प्रतिनिधित्व को नजरअंदाज न किया जाए।"
1980 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के नेतृत्व में कांग्रेस ने पार्टी के खिलाफ हो गए पाटीदारों के खिलाफ चुनावी रूप से जीतने वाला सामाजिक गठबंधन बनाने के लिए KHAM फॉर्मूले का प्रयोग किया था।
पाटीदार
गुजरात में पाटीदार समुदाय सबसे अधिक ताकतवर है। इनका कृषि, व्यापार और शिक्षा सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में प्रभुत्व है। यह राज्य में भाजपा के समर्थन आधार का मूल भी है। इनकी जनसंख्या लगभग 12-15% है। 2015 के पाटीदार आरक्षण आंदोलन के कारण भाजपा और पाटीदारों के बीच रिश्ते ख़राब हो गए थे। इसने 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को डरा दिया जब पार्टी राज्य की 182 सीटों में से केवल 99 सीटें जीत सकी, जबकि कांग्रेस ने 77 सीटें जीतीं। लेकिन बीजेपी ने तब से समुदाय के साथ अपने संबंधों में सुधार किया है। यहां तक कि पाटीदार नेता भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री भी बनाया। एक बीजेपी नेता ने कहा, ''संख्या के हिसाब से ओबीसी पाटीदारों से ज्यादा हैं। लेकिन अपनी जनसंख्या ताकत के अलावा पाटीदार राज्य में धन भी लाते हैं। पाटीदार समुदाय अमरेली, राजकोट, पोरबंदर, जूनागढ़, जामनगर, भावनगर, कच्छ, मेहसाणा, सूरत और अहमदाबाद सहित कई लोकसभा सीटों पर चुनावी परिणाम निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।"
आदिवासी
गुजरात की लगभग 15% जनसंख्या अनुसूचित जनजाति (ST) है। 26 सीटों में से चार एसटी-आरक्षित हैं जिनमें दाहोद, छोटा उदेपुर, बारडोली और वलसाड शामिल हैं। आदिवासी आबादी राज्य के पूर्वी हिस्से में फैली हुई है। चार एसटी सीटों के अलावा साबरकांठा, भरूच, बनासकांठा और पंचमहल जैसे लोकसभा क्षेत्रों में आदिवासी जनसंख्या महत्वपूर्ण है।
विपक्षी इंडिया गठबंधन के सहयोगियों कांग्रेस और AAP ने क्रमशः साबरकांठा और भरूच में आदिवासी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भरूच से अनुभवी आदिवासी नेता और छह बार के सांसद मनसुख वसावा को भी मैदान में उतारा है, जो आप के चैतर वसावा से मुकाबला कर रहे हैं।
मुसलमान
अनुमान है कि गुजरात की आबादी में मुसलमान लगभग 10% हैं। वे कम से कम 15 सीटों पर अच्छी खासी संख्या में हैं, जिनमें कच्छ, जामनगर, जूनागढ़, भरूच, भावनगर, सुरेंद्रनगर, पाटन, बनासकांठा, साबरकांठा, अहमदाबाद पश्चिम, अहमदाबाद पूर्व, गांधीनगर, नवसारी, पंचमहल और आनंद शामिल हैं। हालांकि प्रचार अभियान में मुस्लिम मुद्दे प्रमुखता से नहीं उठाए गए हैं। भाजपा और कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वे इसे 'सामरिक कारणों' से नहीं उठा रहे हैं। कांग्रेस के दिग्गज अहमद पटेल राज्य के सबसे बड़े मुस्लिम नेता थे। 2020 में उनकी मृत्यु के बाद से गुजरात में मुस्लिम नेतृत्व में एक खालीपन आ गया है।
वर्तमान में जमालपुर-खड़िया से कांग्रेस विधायक इमरान खेड़ावाला गुजरात विधानसभा में एकमात्र मुस्लिम सदस्य हैं। राज्य के कुछ अन्य प्रमुख मुस्लिम नेताओं में पूर्व कांग्रेस विधायक ग्यासुद्दीन शेख और कांग्रेस नेता कादिर पीरजादा शामिल हैं।
दलित
लगभग 8% की आबादी के साथ अनुसूचित जाति (एससी) गुजरात में महत्वपूर्ण समूहों में से एक है। राज्य में दो एससी-आरक्षित सीटें, अहमदाबाद पश्चिम और कच्छ हैं। दलित आबादी वाले कुछ अन्य लोकसभा सीटों क्षेत्रों में बनासकांठा, पाटन, जामनगर और सुरेंद्रनगर शामिल हैं। अपने चुनाव अभियान में इंडिया गठबंधन की पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि भाजपा ने सत्ता में आने के बाद संविधान को बदलने और आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने के लिए '400 पार' का नारा दिया है। भाजपा ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है और झूठ फैलाने के लिए कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर पलटवार किया है।