Indian Army: सैनिकों की टूटती शादियां बचाने के लिए कपल्स की गई काउंसलिंग
हमारे सैनिक सीमा पर रखवाली करते हैं तब हम अपने घरों में शांति से सोते हैं। भारतीय आर्मी हर मुश्किल में देश की सेवा करती है। कई सैनिकों को उनकी पोस्टिंग के कारण घरों से दूर रहना पड़ता है। उनके कारण हम तो चैन से रहते हैं मगर उन्हें अपनी पर्सनल लाइफ में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। वे अपने परिवार से दूर रहते हैं। कई-कई महीने अपनी पत्नी से मिल नहीं पाते हैं। कई बार दूरियों के कारण कपल्स में अलगाव की स्तिथी पैदा हो जाती है। जिससे कई बार नौबत तलाक तक की आ जाती है, जिससे उनकी शादियां टूट जाती हैं। इस तरह उनका हंसता-खेलता परिवार बिखर जाता है।
दूरियों के कारण टूट जाती हैं शादियां
कहा जाता है कि किसी सैनिक की पत्नी बनना छोटी बात नहीं होती है। एक सैनिक की पत्नी को भी कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार उसे पति की जरूरत होती है मगर वह उसके साथ नहीं होता है, क्योंकि वह अपनी ड्यूटी पर तैनात होता है। इस कारण आर्मी सैनिक की पत्नी को नीजि जिंदगी में काफी कंप्रोमाइज करना पड़ता है। अब जो रिश्ते निभ जाते हैं उनकी बात अलग है मगर बहुत की शादियों की उम्र काफी छोटी होती है।
कैसे दूर रहकर भी बचा सकते हैं रिश्ते
इसी बात को ध्यान में रखते हुए सेना की दक्षिणी कमान ने पुणे में सैनिक जोड़ों के लिए 'सुलह और शादी बचाने में सलाहकारों की भूमिका' नामक संगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें कई सलाहकार शामिल हुए। संगोष्ठी में रिलेशनशप काउंसलिंग और फैमली लॉ के क्षेत्र में कई स्पेशलिस्ट शामिल हुए थे।
माई माइंड मैटर्स की संस्थापक-निदेशक डॉ अरुणा कुलकर्णी और वरिष्ठ एडवोकेट वृशाली वैद्य ने दक्षिणी कमान के अधिकारियों और उनके लाइफ पार्टनर की सभा को संबोधित किया। सभा में कपल्स को बताया गया कि वे दूर रहकर भी अपने रिश्ते को कैसे बचा सकते हैं। उन्हें बताया कि शादी के बंधन को किस तरह मजबूत बनाया जा सकता है। इस इवेंट में आर्मी के जोड़ों ने सीखा कि कैसे अपने रिश्ते को हेल्दी बना सकते हैं।
सैनिकों की होती है स्क्रीनिंग
आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन (AWWA) के सदर्न कमांड रीजनल चैप्टर की पदेन अध्यक्ष सुबीना अरोड़ा ने लंबे समय तक अलग रहने वाले सेना के जोड़ों के परेशानियों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि काउंसलिंग के बाद जोड़ों के बीच रिश्ता मजबूत होगा औऱ उनका जीवन खुशहाल बनेगा। सभी प्रमुख सशस्त्र बलों के अस्पतालों में साइकोलॉजिस्ट हैं जो सैनिकों की मदद करते हैं। यहां पर नियमित रूप से सैनिकों की स्क्रीनिंग की जाती है ताकि उन्हें कोई स्ट्रेस ना हो। इतना ही नहीं सैनिकों की मदद के लिए एक टेलीफोन हेल्पलाइन, 'मानसिक सहायता' का भी इंतजाम है।