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विपक्ष का भाजपा रोको अभियान: 2019 में पड़े वोट का 60 फीसदी अकेले BJP को, पटना में जुटी पार्टियों के कुल वोट इसके आधे भी नहीं

पटना में विपक्षी एकता की बैठक में जो पार्टियां जुटी हैं, वो 2019 में एक होतीं तो कैसा होता रिजल्ट? समझिये
Written by: Prabhat Upadhyay
June 23, 2023 13:38 IST
विपक्ष का भाजपा रोको अभियान  2019 में पड़े वोट का 60 फीसदी अकेले bjp को  पटना में जुटी पार्टियों के कुल वोट इसके आधे भी नहीं
पटना विपक्षी एकता की बैठक हो रही है। फाइल फोटो
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बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को करीब डेढ़ दर्जन से ज्‍यादा विपक्षी दलों के नेता म‍िले। नीतीश कुमार की पहल पर आयोजित इस बैठक का एक ही एजेंडा है- 2024 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना। विपक्षी एकता की इस बैठक में कांग्रेस, एनसीपी, जेडीयू और डीएमके समेत कुल 15 पार्टियों के नेता शाम‍िल रहे।

सियासी गलियारों में लंबे वक्त से चर्चा है कि यदि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष लामबंद हुआ तो 2024 में प्रत्येक सीट पर विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार उतारा जा सकता है, जिससे वोट बिखरने से रोका जा सके। लेकिन क्या यह रणनीत‍ि कारगर रहेगी? 2019 लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आए, उनका व‍िश्‍लेषण कर इस सवाल का जवाब जानने की कोश‍िश करते हैं। आंकड़ों से समझते हैं...

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2019 के आंकड़े क्या बताते हैं?

बीजेपी के खिलाफ जो पार्टियां विपक्षी एकता की बैठक में शामिल हुई हैं, अगर साल 2019 में यह सारी पार्टियां एक साथ चुनाव लड़तीं तो बीजेपी को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचता। 2019 के चुनाव आंकड़ों पर नजर डालें तो इन सभी पार्टियों की कुल सीटें, अकेले बीजेपी द्वारा जीती गई सीटों की आधी भी नहीं हैं और वोट शेयर भी बीजेपी से आधा ही है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं। कुल ज‍ितने लोगों ने मतदान क‍िया, उनमें से 59.7 प्रतिशत ने बीजेपी को वोट द‍िया था।

जबकि पटना में विपक्षी एकता की बैठक में शामिल सभी पार्टियों की की सीटें मिलाकर 148 थीं और वोट शेयर 24.15 फीसदी ही था। इसमें जदयू और शिवसेना द्वारा जीती गईं 34 सीटें भी शामिल हैं। अब शिवसेना में दो फाड़ हो चुकी है, तो जेडीयू, एनडीए गठबंधन से बाहर हो चुकी है।

विपक्ष एक हो भी गया तो बीजेपी को रोकना मुश्किल

विपक्षी एकता की बैठक में जो पार्टियां शामिल हैं, उनमें सीटों के मामले में 2019 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। उसके खाते में सर्वाधिक 52 सीटें आई थीं और वोट शेयर 8.1% था। इसी तरह डीएमके दूसरी बड़ी पार्टी है, जिसने 23 सीटें और 4.3 वोट शेयर हासिल किया था। इसी तरह तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थी और 4.5 फीसदी वोट शेयर अपने नाम किया था। इसके अलावा बैठक में शामिल अन्य दलों में किसी को 5 तो किसी एक सीट ही नसीब हुई थी और वोट शेयर एक फीसदी के अंदर था।

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विपक्षी एकता की बैठक में शामिल दलों का 2019 में प्रदर्शन (देखें टेबल)

पार्टी2019 में सीट2019 में वोट प्रतिशत
कांग्रेस528.1%
डीएमके234.3%
टीएमसी224.5%
शिवसेना183.2%
जेडीयू162.7%
समाजवादी पार्टी50.9%
एनसीपी50.7%
सीपीएम30.5%
सीपीआई20.3%
आम आदमी पार्टी10.1%
झारखंड मुक्ति मोर्चा10.2%
वोट शेयर की गणना, प्रत्येक पार्टी को मिले कुल वोटों को कुल वैध वोटों की संख्या से भाग देकर (विभाजित) की गई है। सोर्स- ADR

कैसा था बीजेपी का प्रदर्शन?

अब बात करते हैं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अकेले 303 सीटें मिली थीं और वोट शेयर 59.7 फ़ीसदी था। अगर सहयोगी दलों यानी एनडीए की बात करें तो कुल सीटों का आंकड़ा 353 तक पहुंच गया था। 2014 के मुकाबले न सिर्फ बीजेपी की सीटें बढ़ी थीं, बल्कि वोट शेयर में भी इजाफा हुआ था। 2014 में बीजेपी को कुल 282 सीटें मिली थीं और 53.40 वोट शेयर हासिल किया था।

दूसरी ओर, विपक्षी एकता की बैठक में शामिल एनसीपी और आरजेडी जैसे दलों को नुकसान उठाना पड़ा था। 2019 में आरजेडी 4 सीटों से शून्य पर पहुंच गई थी।

बीजेपी को रोकना क्यों है मुश्किल?

ऐसे में 2019 के चुनाव नतीजे जो कहानी कह रहे हैं, और विपक्षी एकता की बैठक में जो पार्टियां शामिल हुई हैं वो 2024 में एक हो भी जाती हैं तो बीजेपी को रोकने में सफल होंगी, यह कहना मुश्किल है। विपक्षी एकता की राह में दूसरी चुनौतियां भी हैं। मसलन ममता बनर्जी लेफ्ट पार्टियों के खिलाफ हैं, तो अरविंद केजरीवाल की शर्त है कि पहले दिल्ली सरकार के खिलाफ लाए गए अध्यादेश पर चर्चा होनी चाहिए। इसी तरीके से अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ हैं। ऐसे में साझा विपक्ष की तस्वीर भी साफ नहीं है।

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