scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

संपादकीय: परिधान बनाम काम, शिक्षा विभाग के नए आदेश से पोशाक को लेकर बहस शुरू

एक बार फिर ऐसे फरमान के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं और उसके औचित्य पर बात हो रही है।
Written by: जनसत्ता
Updated: July 01, 2023 06:08 IST
संपादकीय  परिधान बनाम काम  शिक्षा विभाग के नए आदेश से पोशाक को लेकर बहस शुरू
आदेश में कहा गया है उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
Advertisement

बिहार में शिक्षा विभाग की ओर से जारी एक ताजा फरमान के बाद इस महकमे के कर्मचारी अब जींस-टीशर्ट नहीं पहन पाएंगे और उन्हें कार्यालय में औपचारिक कपड़े पहन कर आना होगा। विभाग का कहना है कि जींस पैंट और टीशर्ट कार्यालय संस्कृति के खिलाफ है, इसलिए इसे पहनने पर मनाही होगी।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पहनावे को लेकर आम धारणा यही रही है कि यह एक विदेशी कपड़े का अनुगमन है और इसे अनौपचारिक रूप से ही पहना जा सकता है। आमतौर पर कार्यालयों या किसी समारोह आदि में लोग कमीज-पैंट या अन्य कपड़ों को तरजीह देते रहे हैं। यही वजह है कि बिहार में शिक्षा विभाग के आदेश को लेकर कर्मचारियों या अन्य पक्ष की ओर से कोई खास आपत्ति सामने नहीं आई है। बिहार में इस तरह का आदेश कोई पहली बार नहीं आया है।

Advertisement

इससे पहले 2019 में भी सरकार ने राज्य सचिवालय में सभी कर्मचारियों के जींस और टीशर्ट पहनने पर पाबंदी लगा दी थी और उन्हें साधारण, हल्के और आरामदायक कपड़े पहनकर दफ्तर आने को कहा था। तब इसे लेकर कहा गया था कि इसका मकसद कार्यालय की मर्यादा बरकरार रखना है।

किसी विभाग में कर्मचारियों के लिए कोई खास नियम तय करना उसके अपने अधिकार क्षेत्र में है और पहनावे को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। लेकिन यह कैसे तय किया जाएगा कि कार्यालय संस्कृति के मुताबिक ‘औपचारिक’ परिधान में आने वाला कोई कर्मचारी जींस पैंट या टीशर्ट पहनने वाले किसी व्यक्ति से ज्यादा सक्षम, जिम्मेदार और अपने दायित्वों के प्रति सजग है!

Advertisement

आदेश में यह नहीं लिखा है कि टीशर्ट की जगह क्या पहनें

हालांकि बिहार के शिक्षा विभाग के आदेश में फिलहाल इसे किसी ‘ड्रेस कोड’ या एकरूप परिधान के आदेश की तरह नहीं देखा जा रहा है, क्योंकि इसमें कोई खास पहनावा तय नहीं किया गया है। लेकिन एक बार फिर ऐसे फरमान के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं और उसके औचित्य पर बात हो रही है। विशेष रूप से जींस पैंट और टीशर्ट पहनने पर पाबंदी के बाद यह सवाल उठा है कि किसी पहनावे को किन आधारों पर ‘औपचारिक’ या ‘अनौपचारिक’ घोषित किया जाता है।

Advertisement

किसी भी देशकाल में पहनावा एक ऐसा पहलू रहा है, जो वक्त और जरूरत के साथ बदलता रहा है और अलग-अलग संस्कृतियों में लोग इसे सुविधा, सहजता, पसंद, उपयोगिता, उपलब्धता आदि के लिहाज से अपनाते हैं या फिर उसके प्रति आकर्षित नहीं होते हैं। जींस और टीशर्ट कोई इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। जबकि पश्चिमी देशों में यह एक आम और सहज पहनावा है और अब यह हमारे देश में भी चलन में आ चुका है।

जींस पहनने पर लोगों की अलग-अलग नजरिया है

इसे बहुत सारे लोग औपचारिक या अनौपचारिक अवसरों पर पहनते हैं। लेकिन कुछ लोगों के भीतर इसके प्रति एक विचित्र आग्रह पाया जाता है। हमारे यहां खासतौर पर महिलाओं के लिए इस परिधान को स्वाभाविक नहीं माना जाता है और आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि किसी गांव, पंचायत या समुदाय की ओर से लड़कियों के जींस पहनने पर पाबंदी लगा दी गई। ऐसे

फरमान के पीछे एक संकीर्ण नजरिया होता है, जिसमें किसी पहनावे को लेकर नकारात्मक और कुंठा को दर्शाने वाले पूर्वाग्रह शामिल होते हैं। कई बार संस्कृति से जोड़ते हुए किसी खास पहनावे की वकालत की जाने लगती है। यह संभव है कि किसी पहनावे को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण हों, लेकिन जहां तक कार्यालय संस्कृति का सवाल है तो यह समझना मुश्किल है कि कामकाज में गुणवत्ता, समयबद्धता, दायित्वों के निर्वहन और तत्परता से तय होती है या फिर किसी परिधान से!

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
tlbr_img1 राष्ट्रीय tlbr_img2 ऑडियो tlbr_img3 गैलरी tlbr_img4 वीडियो