Post Graduate Chai Waali: 'पहले ऑर्डर देते, फिर पूछते मुस्लिम हो क्या? हां, बोलते ही कर देते थे इनकार'
बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक संकट के बीच खुद को आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए कई लोग कई तरह के काम करते हैं। कुछ लोग अपनी स्किल के अनुरूप कोई छोटा जॉब करने लगते हैं तो कुछ लोग कहीं से पैसों की व्यवस्था करके अपना व्यवसाय शुरू कर देते हैं। बिहार के दरभंगा की रहने वाली नाज बानो ने यही तरीका अपनाया। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद खुद को आत्मनिर्भर बनाने को सोचा। दकियानूसी सोच से बाहर निकलकर बिना इस बात की परवाह किये कि लोग क्या कहेंगे, उन्होंने अपने शहर में चाय की एक दुकान खोली।
सुनने पड़े ताने, लेकिन नहीं की किसी की परवाह
यह काम आसान नहीं था। कई लोग ऐसा करने में खुद हीन भावना से पीड़ित पाते हैं तो कई लोग शर्म महसूस करते हैं। लेकिन नाज बानो इसकी परवाह नहीं की। उनका मानना है कि रोजगार कोई भी मेहनत करनी चाहिए। उन्होंने वही किया। इस दौरान उनको कई तरह के ताने सुनने पड़े, कई लोगों ने उनसे कहा कि तुम मुसलमान परिवार की हो, तुम्हें बुर्का में रहना चाहिए। तुम्हारे पापा टीचर हैं, तुम्हें यह सब नहीं करना चाहिए।
नाम रखने के बाद बढ़ गई कस्टमर की संख्या
नाज बानो का कहना है कि पिता टीचर हैं तो वह पिता हैं, मैं नहीं हूं। पिता कोई अफसर होते, तब भी मैं अपना कोई न कोई रोजगार करती। इसमें शर्म किस बात की है। हालांकि नाज अपने शहर में काफी ताने सुनने के बाद पटना चली आईं और यहां पर मरीन ड्राइव पर अपनी चाय की दुकान खोल लीं। शुरू में उनकी दुकान पर कम ही कस्टमर आते थे, लेकिन जब उन्होंने अपनी दुकान का नाम 'पोस्ट ग्रेजुएट चाय वाली' रखा तो कस्टमर की संख्या बढ़ गई। अब उनको ठीकठाक इनकम हो रही है।
चाय को टेस्टी बनाने के लिए डालती हैं कई तरह के मसाले
नाज बानो के मुताबिक वह अपनी स्कूटी से रोजाना सामान लेकर यहां आती हैं और दिनभर चाय बेचने के बाद वापस चली जाती हैं। कई बार उनको भेदभाव का भी सामना करना पड़ा। कुछ कस्टमर पहले आते थे और चाय का आर्डर देते थे। इसके बाद वे पूछते थे कि हिंदू हो या मुसलमान। मुसलमान बताने पर वे बिना चाय पीए चले जाते थे। हालांकि अब सब कुछ सही चल रहा है। नाज बानो अपनी चाय को टेस्टी बनाने के लिए उसमें अदरक, इलायची के अलावा भी कई तरह के मसाले डालती हैं।