Decode Politics: क्यों विपक्ष के लिए इतना जरूरी है डिप्टी स्पीकर का पद? 1990 से 2014 तक कभी खाली नहीं रही ये सीट
लोकसभा का सत्र शुरू होने के बाद पक्ष और विपक्ष डिप्टी स्पीकर के सवाल पर आमने-सामने हैं। लोकसभा में विपक्ष की ताकत बढ़ी है, ऐसे में विपक्ष डिप्टी स्पीकर पद मिलने की उम्मीद कर रहा है। हालांकि 17वीं लोकसभा (2019 से 2024) तक डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहा था। 16वीं लोकसभा (2014 से 2019) तक एआईएडीएमके के थम्बी दुरई डिप्टी स्पीकर थे।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि विपक्ष एनडीए के स्पीकर पद के उम्मीदवार का समर्थन करने को तैयार है, बशर्ते सरकार संसदीय परंपरा का पालन करे और विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद दे। विपक्ष के पास 1990 से 2014 तक लगातार डिप्टी स्पीकर का पद रहा है।
अब सवाल यह है कि डिप्टी स्पीकर का पद क्यों इतना महत्वपूर्ण है और इसका रोल क्या होता है? स्पीकर पद के लिए सरकार ने विपक्ष से समर्थन मांगा था लेकिन विपक्ष ने डिप्टी स्पीकर पद की मांग की। जब बात नहीं बनी तो विपक्ष ने के सुरेश को ओम बिरला के सामने उतार दिया, आज मतदान होना है।
डिप्टी स्पीकर की क्या भूमिका है?
संविधान के अनुच्छेद 95(1) में डिप्टी स्पीकर की भूमिका को लेकर जानकारी दी गई है। जिसमें लिखा है कि स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर सदन की अध्यक्षता करेगा। सदन का संचालन करते हुए डिप्टी स्पीकर के पास वह सभी शक्तियां होंगी जो स्पीकर के पास होती हैं। संविधान में डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति को लेकर किसी तरह की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। प्रावधान में यह अंतर ही सरकारों को डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति में देरी करने या उसे टालने की अनुमति देता है।
अगर बात की जाए स्पीकर के चुने जाने से जुड़े नियमों को लेकर तो सामान्य तौर पर लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में नए सदन के पहले सत्र में चुनाव करने की प्रथा रही है। आमतौर पर चुनाव शपथ ग्रहण के बाद ही होता है। डिप्टी स्पीकर का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है, हालांकि नई लोकसभा या विधानसभा के पहले सत्र में इस चुनाव को कराने पर कोई रोक नहीं है। लेकिन डिप्टी स्पीकर का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र से आगे नहीं टाला जाता।
कैसे होता है चुनाव?
लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का चुनाव लोकसभा के प्रोसेस से जुड़े नियम 8 के तहत होता है। इसके मुताबिक स्पीकर द्वारा तय की गई तारीख पर चुनाव होता है। डिप्टी स्पीयकर का चुनाव तब होता है जब उनके नाम का प्रस्ताव पारित हो जाता है। एक बार निर्वाचित होने के बाद डिप्टी स्पीकर आमतौर पर सदन के भंग होने तक पद पर बने रहते हैं। आर्टिकल 94 के तहत स्पीकर या डिप्टी स्पीकर यदि लोक सभा की सदस्यता से हट जाता है तो वह स्पीकर के पद पर भी नहीं रहेगा।
अक्सर विपक्ष के पास ही रहा है डिप्टी स्पीकर का पद
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-I (2004-09) और यूपीए-II (2009-14) सरकारों के दौरान डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष के पास था। पहले शिरोमणि अकाली दल के चरणजीत सिंह अटवाल डिप्टी स्पीकर थे और इसके बाद भाजपा के करिया मुंडा इस पद पर रहे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी 1999 से 2004 तक प्रधानमंत्री थे, तब कांग्रेस के पी एम सईद इस पद पर थे। सईद 1998 से 1999 तक अल्पकालिक भाजपा सरकार के दौरान भी डिप्टी स्पीकर थे।
1997 से 1998 तक आई के गुजराल के नेतृत्व वाली एक साल की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान कोई डिप्टी स्पीकर नहीं था। 1996 और 1997 के बीच, जब एच डी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे, तब भाजपा के सूरजभान इस पद पर थे। 10वीं लोकसभा (1991-96) में जब पी वी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया डिप्टी स्पीकर थे।