क्या है सेंगोल? नई संसद में स्थापित होने के बाद अब क्यों हो रही चर्चा
Sengol Controversy: संसद में स्पीकर की कुर्सी के पास लगे सेंगोल को लेकर नया विवाद हो गया है। लोकसभा सांसद की शपथ लेने के साथ ही समाजवादी पार्टी के सांसद आरके चौधरी ने तत्कालीन स्पीकर को पत्र लिखकर मांग कर डाली कि संसद से सेंगोल हटाया जाना चाहिए, और वहां संविधान की एक प्रति लगाई जाने चाहिए। आरके चौधरी ने कहा है कि यह राजशाही प्रतीक है, जबकि देश में लोकतंत्र का राज है।
आरके चौधरी के इस पत्र को लेकर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा है कि मुझे लगता है कि हमारे सांसद शायद ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जब इसे (सेंगोल) स्थापित किया गया था, तो प्रधानमंत्री ने इसके सामने सिर झुकाया था। शायद शपथ लेते वक्त वह इसे भूल गए, हो सकता है कि मेरी पार्टी ने उन्हें यह याद दिलाने के लिए ऐसा कहा हो। जब प्रधानमंत्री इसके सामने सिर झुकाना भूल गए, तो शायद वह भी कुछ और चाहते थे।
सेंगोल को लेकर कांग्रेस ने किया सपा का समर्थन
वहीं कांग्रेस पार्टी ने सेंगोल मुद्दे पर समाजवादी पार्टी का समर्थन किया है। पार्टी ने कहा कि सेंगोल पर एसपी की मांग गलत नहीं है। कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने कहा कि बीजेपी ने अपनी मर्जी से सेंगोल लगा दिया। सपा की मांग गलत नहीं है। सदन तो सबको साथ लेकर चलती है लेकिन बीजेपी सिर्फ मनमानी करती है।
बीजेपी ने बताया गुमराह कराने की नीति
बीजेपी के लोकसभा सांसद खगेन मुर्मू ने आरके चौधरी के बयान पर कहा कि इन लोगों को कोई दूसरा काम नहीं है। इन्होंने संविधान के बारे में गुमराह किया है। ये लोग संविधान को मानते ही नहीं हैं। मोदी जी संविधान को बहुत सम्मान देते हैं। वहीं सपा के बयान पर बीजेपी सांसद महेश जेठमलानी ने कहा कि सेंगोल राष्ट्र का प्रतीक है। सेंगोल को स्थापित किया गया था, उसको अब कोई नहीं हटा सकता।
सेंगोल का क्या है इतिहास
अब सवाल उठता है कि आखिर यह सेंगोल क्या है जिसको लेकर नए सिरे से विवाद हो रहा है। संसद में स्थापित किए गए सेंगोल का आधुनिक इतिहास भारत की आजादी के साथ जुड़ा हुआ सामने आया है, जब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल सौंपा गया।
सत्ता हस्तांतरण को लेकर थी अहमियत
इसके अलावा प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो सेंगोल के सूत्र चोल राज शासनकाल से जुड़ते हैं, जहां सत्ता का उत्तराधिकार सौंपते हुए पूर्व राजा, नए बने राजा को सेंगोल सौंपता था। यह सेंगोल राज्य का उत्तराधिकार सौंपे जाने का जीता-जागता प्रमाण होता था और राज्य को न्यायोचित तरीके से चलाने का निर्देश भी होता है।
राजदंड से है संबंध
सेंगोल के इतिहास को लेकर इतिहास पर नजर डालें तो तमिल शब्द 'सेम्मई' से बताई गई है। सेम्मई का अर्थ है 'नीतिपरायणता', यानी सेंगोल को धारण करने वाले पर यह विश्वास किया जाता है कि वह नीतियों का पालन करेगा। यही राजदंड कहलाता था, जो राजा को न्याय सम्मत दंड देने का अधिकारी बनाता था। परंपरा के अनुसार राज्याभिषेक के समय, राजा के गुरु के नए शासक को औपचारिक तोर पर राजदंड उन्हें सौंपा करते थे।
रामायण-महाभारत से भी जुड़ा है इतिहास
सेंगोल को लेकर जिक्र रामायण-महाभारत के कथा में भी मिलता है। इनके प्रसंगों में भी ऐसे उत्तराधिकार सौंपे जाने के ऐसे जिक्र मिलते रहे हैं। इन कथाओं में राजतिलक होना, राजमुकुट पहनाना सत्ता सौंपने के प्रतीकों के तौर पर इस्तेमाल होता दिखता है, लेकिन इसी के साथ राजा को धातु की एक छड़ी भी सौंपी जाती थी, जिसे राजदंड कहा जाता था। इसका जिक्र महाभारत में युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के दौरान भी मिलता है।