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New Criminal Laws: 'यह संसद का अधिकार है', नए क्रिमिनल लॉ को लेकर केंद्र ने मद्रास हाई कोर्ट से जानिए ऐसा क्यों कहा?

New Criminal Laws: सुंदरेसन ने कहा, 'यह संसद की समझदारी या अधिकार है। हम सभी ने संसद को चुना है और इन सांसदों ने अपनी समझदारी से इसका नाम रखा है। नामों में उनकी इच्छा झलकती है।'
Written by: अरुण जनार्दनन
चेन्नई | Updated: July 04, 2024 12:08 IST
New Criminal Laws: नए क्रिमिनल लॉ को लेकर केंद्र ने मद्रास हाई कोर्ट को दी जानकारी। (फाइल)
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New Criminal Laws: केंद्र सरकार ने बुधवार को मद्रास हाई कोर्ट के समक्ष तीन नए आपराधिक कानूनों (New Criminal Laws) के हिंदी नामकरण का बचाव किया और असंवैधानिकता (Unconstitutionality) के आरोपों के विरुद्ध नामों की संवैधानिक वैधता (Constitutional Legitimacy) पर जोर दिया। एक्टिंग चीफ जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस मोहम्मद शफीक की पीठ के समक्ष यह दलील दी गई, जिन्होंने नए कानूनों के हिंदी नामों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की।

थूथुकुडी स्थित अधिवक्ता बी रामकुमार आदित्यन ने इसको लेकर याचिका दायर की थी। जिसने इस मुद्दे पर एक नई बहस को जन्म दे दिया। उन्होंने तर्क दिया कि नए कानूनों के हिंदी और संस्कृत नाम संविधान के अनुच्छेद 348 का उल्लंघन करते हैं, जिसमें कहा गया है कि कानूनों के नाम सहित आधिकारिक पाठ (Authoritative Texts) अंग्रेजी में होने चाहिए।

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केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एआरएल सुंदरेशन ने तर्क दिया कि नए नाम संसद की इच्छा को दर्शाते हैं, जिसने अपने विवेक से कानूनों का नामकरण किया था।

सुंदरेसन ने कहा, "यह संसद की समझदारी या अधिकार है। हम सभी ने संसद को चुना है और इन सांसदों ने अपनी समझदारी से इसका नाम रखा है। नामों में उनकी इच्छा झलकती है। अगर यह संविधान के खिलाफ है, तो ठीक है। लेकिन इससे किसी के अधिकार प्रभावित नहीं होते।" उन्होंने आगे तर्क दिया कि नाम भी अंग्रेजी अक्षरों में थे, जिससे वे सरल और सुलभ हो गए।

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कोर्ट में इस दौरान काफी बहस देखने को मिली। बहस के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अनुच्छेद 348 का संदर्भ दिया। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार, सभी आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होने चाहिए। नए कानूनों के नाम आधिकारिक पाठ हैं, जिन्हें अक्सर वकीलों द्वारा उद्धृत किया जाएगा। इसलिए, नाम भी अंग्रेजी में होने चाहिए।'

सुंदरेसन ने इसका खंडन करते हुए कहा, 'नए कानूनों के नाम भी अंग्रेजी में थे, क्योंकि अंग्रेजी अक्षरों का इस्तेमाल किया गया था। समय बीतने के साथ जनता और वकील नए नामों के आदी हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि नाम मौलिक अधिकारों को प्रभावित नहीं करते हैं, जिसके लिए कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता है।'

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