तीन नए कानून आने में कुछ दिन बचे, लेकिन आधिकारिक अनुवाद अभी भी पेंडिंग; राज्य कर रहे इंतजार
New Criminal Laws: पांच दिनों में देश के आपराधिक कानूनों (Criminal Laws) में अमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा और इन नए कानूनों को लागू किया जाना तय है। यह कानून हैं- भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 (नई आईपीसी) (Bharatiya Nyaya (Second) Sanhita, 2023 (the new IPC); भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 (नई सीआरपीसी) (Bharatiya Nagarik Suraksha (Second) Sanhita, 2023 (the new CrPC); और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) अधिनियम, 2023 (नया साक्ष्य अधिनियम) Bharatiya Sakshya (Second) Act, 2023 (the new Evidence Act)।
जबकि राज्य सरकारें इसके क्रियान्वयन की तैयारी कर रही हैं, नौकरशाहों, न्यायाधीशों और पुलिस कर्मियों के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित कर रही हैं। एक प्रमुख चिंता यह बनी हुई है कि इन कानूनों को अभी तक क्षेत्रीय भाषाओं में आधिकारिक रूप से अधिसूचित नहीं किया गया है।
केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से लेकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल तक स्थानीय भाषा महत्वपूर्ण होगी, ताकि लोगों को पुलिस स्टेशन स्तर, ट्रायल कोर्ट और जेलों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित हो सके।
पता चला है कि केंद्र ने कानून पारित होने के तीन महीने बाद मार्च में राज्यों को पत्र लिखकर उन्हें अनुसूचित भाषाओं में अनुवाद करने के लिए कहा था। कानून के हिंदी और अंग्रेजी संस्करणों को पिछले साल दिसंबर में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। हालांकि आपराधिक कानून समवर्ती सूची में आते हैं, लेकिन तीनों संहिताएं केंद्रीय कानून हैं।
आधिकारिक राजपत्र में जारी अधिसूचना के अनुसार, तीनों संहिताएं 1 जुलाई से प्रभावी होंगी , लेकिन कई राज्यों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कानूनों का अनुवाद पूरा होने में छह महीने से अधिक का समय लगेगा।
कानून मंत्रालय के प्रवक्ता ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया, लेकिन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि, आमतौर पर, संबंधित राज्य अनुवाद करते हैं और समीक्षा के लिए केंद्र को भेजते हैं। अधिकारी ने कहा, "यदि कोई बदलाव किया जाना है, तो उन्हें मंत्रालय द्वारा शामिल किया जाता है और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है, जिसके बाद इसे राज्यों के राजपत्र में अधिसूचना के लिए वापस भेज दिया जाता है।"
अधिकारी ने कहा कि इसमें वक्त लग सकता है। हमने कानूनों के अनुवाद की सुविधा के लिए राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा था और पिछले महीने एक रिमाइंडर भी भेजा था…कुछ राज्यों ने साक्ष्य अधिनियम के अपने अनुवाद मंत्रालय को जांच के लिए भेजे थे। हालांकि, सभी राज्यों के लिए यह प्रक्रिया पूरी होने में छह महीने से अधिक का समय लग सकता है।"
बता दें, 22 अनुसूचित भाषाओं में से शुरुआत में 13 भाषाओं में कानूनों का अनुवाद करना ज़रूरी होगा, जिनमें तमिल, कन्नड़, मराठी, गुजराती, बंगाली और पंजाबी शामिल हैं। डोगरी और संथाली समेत कुछ आधिकारिक भाषाओं का इस्तेमाल अदालतों में नहीं किया जाता है।
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में विधि के प्रोफेसर अनूप सुरेन्द्रनाथ ने कहा कि कानूनों का स्थानीय अनुवाद एक लोकतांत्रिक अधिकार के रूप में तथा कानूनों को लागू करने के लिए नौकरशाही चिंता के रूप में महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, "सिर्फ़ अंग्रेज़ी और हिंदी में इन क़ानूनों का होना देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद विशाल नौकरशाही तंत्र के लिए प्रभावी पहुंच सुनिश्चित नहीं करेगा। इस देश में लाखों लोगों के लिए, आपराधिक कानून सड़क पर मौजूद पुलिस कांस्टेबल या पुलिस स्टेशन में मौजूद आईओ के हाथों में है। यह स्पष्ट रूप से साफ होना चाहिए कि ऐसे हज़ारों कर्मियों को इन क़ानूनों को समझने की दिशा में पहला कदम उठाने के लिए अपनी स्थानीय भाषाओं में इन क़ानूनों को पढ़ने की ज़रूरत होगी।"
कर्नाटक में राज्य के कानून एवं संसदीय मंत्री एच.के. पाटिल ने कहा कि फिलहाल, कर्नाटक पुलिस अकादमी (के.पी.ए.) ने इनका कन्नड़ में अनुवाद कर दिया है तथा पुलिस के लिए पुस्तकें तैयार कर दी हैं। उन्होंने कहा, "केपीए संस्करण को आधिकारिक अनुवाद नहीं माना जाएगा। राजपत्र में जो जारी किया जाएगा, वही अंतिम और आधिकारिक अनुवादित संस्करण होगा।"
पंजाब में गृह सचिव गुरकीरत किरपाल ने कहा कि सरकार कानूनों का पंजाबी में अनुवाद कराने की प्रक्रिया में है।
केरल में राज्य के विधि सचिव केजी सनल कुमार ने कहा कि राज्य ने केंद्रीय मंत्रालय को पत्र लिखकर कानूनों का मलयालम में अनुवाद करने के लिए उनकी सहमति मांगी है। उन्होंने कहा, 'हमें कानूनों का स्थानीय भाषा में अनुवाद करने के लिए उनकी सहमति की आवश्यकता है। केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद राज्य अनुवाद की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।'
(दामिनी नाथ, किरण पाराशर की रिपोर्ट)