Blog: हिंद महासागर का बिगड़ता मिजाज, बढ़ता तापमान दे रहा विनाश का संकेत
हिंद महासागर के साथ-साथ दूसरे महासागरों का तापमान बढ़ना किसी बड़े विनाश का सूचक बताया जा रहा है। महासागरों का तापमान गर्म होने के बीच, सतह के तापमान के मौसमी चक्र में बदलाव होने का अनुमान है। वर्ष 1980 से 2020 के दौरान हिंद महासागर में अधिकतम औसत तापमान पूरे साल 26 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। वैज्ञानिक इससे अनुमान लगा रहे हैं कि भारी उत्सर्जन परिदृश्य के तहत इक्कीसवीं सदी के अंत तक न्यूनतम तापमान पूरे साल 28.5 डिग्री सेल्सियस और 30.7 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा।
महासागरों का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इनमें हिंद महासागर तेजी से गर्म हो रहा है। प्राकृतिक आपदाएं बार-बार उथल-पुथल मचाने लगी हैं। इनकी वजह से तटीय इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिए खतरा पैदा हो गया है। विज्ञान पत्रिका ‘जर्नल साइंस डायरेक्ट’ में प्रकाशित अध्ययन से इसकी जानकारी मिली है। पिछले पांच दशक से प्राकृतिक संसाधनों में अनेक प्रकार के बदलाव देखे जा रहे हैं। इनके असर से ऋतुचक्र और वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यह महज भारत की समस्या नहीं है, वैश्विक स्तर पर जलवायु में बदलाव देखा जा रहा है। पत्रिका के मुताबिक समुद्र की सतह का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने का अनुमान है। अध्ययन के मुताबिक हिंद महासागर का गर्म होना सिर्फ सतह तक सीमित नहीं है, इसके जल का तापमान भी बढ़ता जा रहा है। इससे समुद्री ऊष्म तरंगें बननी शुरू हो गई हैं। समुद्री जैव विविधता पर इसका बुरा असर देखा जा रहा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार शताब्दी के अंत तक अत्यधिक द्विध्रुवीय घटनाओं में 66 फीसद तक वृद्धि का अनुमान है। एक अध्ययन के मुताबिक इक्कीसवीं सदी के अंत तक हिंद महासागर का तापमान तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। इसकी सिर्फ सतह नहीं, बल्कि दस किलोमीटर नीचे तक पानी गर्म हो रहा है। महासागर का तापमान बढ़ने से कई देशों पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका असर पर्यावरण पर व्यापक रूप से पड़ेगा। वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि वर्ष 2020 से 2100 के बीच हिंद महासागर की समुद्री सतह के तापमान में 1.4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं आने की आशंका है। इससे मानसून पर असर पड़ेगा, चक्रवात आएगा और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होगी। आने वाले पचहत्तर साल में जैव विविधता पर बहुत बड़ा खतरा आ सकता है। हजारों किलोमीटर की जैव विविधता नष्ट हो सकती है।
अध्ययन के मुताबिक समुद्री लू (समुद्र का तापमान असामान्य रूप से अधिक रहने का समय) वर्ष 1970 से 2000 के दौरान हर साल बीस दिन होती थी। अब उसके बढ़कर हर साल 220-250 दिन होने का अनुमान है। इसके चलते उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर इक्कीसवीं सदी के अंत तक स्थायी लू की स्थिति के करीब पहुंच जाएगा। इस हालात में समुद्र की पारिस्थितिकी पर गहरा असर होगा। समुद्र में पाए जाने वाली तमाम चीजों के रंग में बदलाव हो सकता है, जिसमें समुद्री घास, मूंगों और मछलियों का रंग भी बदल जाएगा। चक्रवात बहुत कम वक्त में ही जोर पकड़ने लगता है। समुद्र का तापमान बढ़ने से नई समस्याएं पैदा होंगी। समुद्र से इंसान का सीधा रिश्ता है, इसलिए वैज्ञानिक हिंद महासागर के बढ़ते तापमान से बेहद चिंतित हैं। जाहिर तौर पर धरती के बढ़ते तापमान के साथ समुद्र का तापमान बढ़ना मानव सभ्यता के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है।
‘उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के लिए भविष्य के पूर्वानुमान’ शीर्षक अध्ययन के मुताबिक, हिंद महासागर के जल के तापमान का तेजी से बढ़ना महज इसकी सतह तक सीमित नही है। हिंद महासागर में, उष्मा की मात्रा सतह से 2,000 मीटर की गहराई तक वर्तमान में 4.5 जेटा-जूल प्रति दशक की दर से वृद्धि होने का अनुमान है और आने वाले वक्त में इसके 16 से 22 जेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ने का अनुमान है। जाहिर तौर पर इससे हिंद महासागर क्षेत्र के आसपास ही नहीं, कई किलोमीटर क्षेत्र में कई तरह के बदलाव होने का अनुमान है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऊष्मा की मात्रा में होने वाली वृद्धि एक परमाणु बम (हिरोशिमा में हुए) विस्फोट से पैदा होने वाली ऊर्जा के समान होगी। इसके अलावा, अरब सागर सहित उत्तर पश्चिम हिंद महासागर में बहुत ज्यादा मात्रा में गर्मी हो सकती है, जबकि सुमात्रा और जावा के तटों पर कम गर्मी होने का अनुमान है। बेहद तेज तूफानों से समुद्री तटों पर कई तरह के विनाशकारी मंजर नजर आ सकते हैं।
हिंद महासागर के साथ-साथ दूसरे महासागरों का तापमान बढ़ना किसी बड़े विनाश का सूचक बताया जा रहा है। महासागरों का तापमान गर्म होने के बीच, सतह के तापमान के मौसमी चक्र में बदलाव होने का अनुमान है, जिससे भारतीय उपमहाद्वीप में चरम मौसमी बदलाव की घटनाएं बढ़ सकती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 1980 से 2020 के दौरान हिंद महासागर में अधिकतम औसत तापमान पूरे साल 26 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। वैज्ञानिक इससे अनुमान लगा रहे हैं कि भारी उत्सर्जन परिदृश्य के तहत इक्कीसवीं सदी के अंत तक न्यूनतम तापमान पूरे साल 28.5 डिग्री सेल्सियस और 30.7 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा।
गौरतलब है कि 28 डिग्री सिल्सियस से ऊपर की सतह का तापमान आमतौर पर गहरे संवहन और चक्रवात के लिए अनुकूल माना जाता है। अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 1950 के दशक से भारी बारिश की घटनाएं और भंयकर चक्रवात पहले भी कहर ढा चुके हैं। सागर के तापमान में वृद्धि के साथ इसके और बढ़ने का अनुमान है। इससे बहुत सारे विपरीत प्रभाव दिखाई पड़ सकते हैं।
हिंद महासागर में गर्मी बढ़ने से इसका जलस्तर भी बढ़ सकता है। पानी में गर्मी का विस्तार हिंद महासागर में समुद्र के जल स्तर में आधे से अधिक वृद्धि में योगदान देता है, जो ग्लेशियर और समुद्री बर्फ के पिघलने से होने वाली बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा है। अध्ययन के मुताबिक सदी के अंत तक समुद्र का अम्लीकरण तेज हो सकता है। इससे सतह का पीएच 8.1 से ऊपर से घटकर 7.7 से नीचे आ सकता है। पीएच में अनुमानित बदलाव समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इस वजह से मूंगे और ऐसे जीव, जो अपनी खोल के निर्माण और रखरखाव के लिए कैल्सिफिकेशन पर निर्भर रहते हैं, प्रभावित होंगे। इस बदलाव को पीएच में बदलाव के आधार पर हम समझ सकते हैं। जैसे इंसान के रक्त के पीएच में मामूली 0.1 की गिरावट से सेहत पर गंभीर असर पड़ जाता है और कई अंग काम करना बंद कर देते हैं, उसी तरह सागर के पानी के पीएच मान में बदलाव के असर का अनुमान लगाया जा सकता है। इसके अलावा क्लोरोफिल और उत्पादकता में भी गिरावट आने का अनुमान है। इससे पश्चिमी अरब सागर की पारिस्थितिकी ज्यादा प्रभावित होगी।
मानसून और चक्रवात निर्माण को प्रभावित करने वाली एक घटना, हिंद महासागर द्विध्रुव, में भी बदलाव आने का अनुमान वैज्ञानिक लगा रहे हैं। इसमें इक्कीसवीं सदी के अंत तक बहुत तेज बदलाव वाली घटनाओं की आवृत्ति में 66 फीसद तक की वृद्धि हो सकती है, वहीं मध्यम घटनाओं की आवृत्ति में 52 फीसद की कमी आने का अनुमान है। हिंद महासागर चालीस देशों की सीमा को छूता है। दुनिया की आबादी के एक तिहाई हिस्से के घर, हिंद महासागर क्षेत्र में आते हैं। जलवायु परिवर्तन का सामाजिक और आर्थिक असर कितना गहरा पड़ेगा इससे अनुमान लगाया जा सकता है।
आज हिंद महासागर और इसके आसपास के इलाकों में वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं के सबसे ज्यादा खतरे वाले क्षेत्र के रूप में देखे जा रहे हैं। इसलिए हिंद महासागर और दूसरे महासागरों से बढ़ते खतरों पर चौकन्ना रहने की बेहद जरूरत है।