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भारत को अस्थिर म्यांमा में शांति स्थापित करने के लिए गंभीर कूटनीतिक प्रयास करने की जरूरत

दक्षिण पूर्व एशिया के तमाम देश चीन के दक्षिण और भारत के पूर्व में स्थित हैं। इन देशों पर दुनिया की दोनों महान प्राचीन सभ्यताओं का प्रभाव है और भू-राजनीतिक दृष्टि से भी ये देश भारत और चीन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | April 11, 2024 09:21 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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ब्रह्मदीप अलूने

म्यांमा में लोकतांत्रिक शक्तियों और सेना के बीच सत्ता संघर्ष की दशकों पुरानी जटिल स्थितियों में भी भारत ने बेहद संतुलित नीति अपनाई, लेकिन पिछले तीन वर्षों में म्यांमा की राजनीतिक स्थितियां बेकाबू हो गई हैं। लोकतांत्रिक नेताओं ने विद्रोही समूहों के साथ गठबंधन करके बर्मी सेना को देश के कई इलाकों से खदेड़ दिया है।

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देश में वैधानिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए कोई भी जिम्मेदार निकाय न होने से हिंसा और अराजकता बढ़ गई है। ‘जुंटा’ शासन और विद्रोही गुटों के बीच चल रही लड़ाई राजधानी यांगून तक पहुंच गई है। विद्रोही समूहों ने म्यांमा की सेना को कड़ी चुनौती देते हुए हवाई अड्डे, वायु सेना अड्डे और सैन्य मुख्यालय पर ड्रोन से हमला कर संकेत दिया है कि म्यांमा की सेना कमजोर पड़ गई है और इससे इस देश के टूटने का खतरा बढ़ गया है। म्यांमा के विद्रोही समूहों के भारत के पूर्वोत्तर के समूहों से मजबूत संबंध रहे हैं, चीन इन्हें बढ़ावा देता रहा है। इसलिए म्यांमा की अस्थिरता भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ा सकती है।

दक्षिण पूर्व एशिया के तमाम देश चीन के दक्षिण और भारत के पूर्व में स्थित हैं। इन देशों पर दुनिया की दोनों महान प्राचीन सभ्यताओं का प्रभाव है और भू-राजनीतिक दृष्टि से भी ये देश भारत और चीन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। म्यांमा जातीय विविधता वाला देश है, जिसमें काचिन, काया, कायिन, चिन, बामर, मोन, रखाइन और शान प्रमुख हैं।

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ये जातियां अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियों में रहकर अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए देश की व्यवस्थाओं को प्रभावित करती रही हैं। इस विविधता ने पृथकतावाद को बढ़ावा दिया है, जिसका फायदा चीन ने उठाया है। चीन की दीर्घकालिक रणनीति म्यांमा के सशस्त्र समूहों से संबंध मजबूत करके म्यांमा की सेना या देश की लोकतांत्रिक सरकारों पर दबाव बनाए रखने की रही है। म्यांमा से चीन के गहरे आर्थिक और सामरिक हित जुड़े हुए हैं। चीन के लिए म्यांमा, बंगाल की खाड़ी के जरिए हिंद महासागर तक सीधी पहुंच के कारण रणनीतिक महत्त्व रखता है।

चीन म्यांमा आर्थिक गलियारा चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल की एक प्रमुख आर्थिक और रणनीतिक कड़ी है। इसे विद्रोही गुट किसी प्रकार निशाना न बना सकें, इस नीति पर चलते हुए चीन ने म्यांमा की सेना और विद्रोहियों पर नियंत्रण तो किया है, लेकिन चीन की यह रणनीति भारत की सामरिक समस्या को बढ़ा सकती है। म्यांमा की सेना देश के कई इलाकों में सुसंगठित जातीय सेनाओं से हार रही है।

भारत के लिए म्यांमा की स्थिरता सामरिक और आर्थिक रूप से अति महत्त्वपूर्ण है। भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ की दशकों पुरानी नीति का संचालन म्यांमा के माध्यम से ही हो सकता है। करीब डेढ़ दशक पहले भारत ने ‘कलादान मल्टी माडल ट्रांजिट पोर्ट प्रोजेक्ट’ की अति महत्त्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से म्यांमा के साथ अपने हितों को निकटता से जोड़ने की दीर्घकालिक रणनीति पर कार्य शुरू किया था। यह परियोजना भारत के पूर्वी बंदरगाहों को म्यांमा के सितवे बंदरगाह और आगे पूर्वी भारत को म्यांमा के माध्यम से समुद्र, नदी और सड़क के माध्यम से जोड़ती है।

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील है। इन क्षेत्रों में जातीय विविधता अलगाववाद को बढ़ावा देती रही है। इसलिए अनिवार्य है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ सामंजस्य बनाए। दोनों देश एक-दूसरे के साथ सोलह सौ किमी से अधिक लंबी थल सीमा और बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा भी साझा करते हैं। म्यांमा भारत और चीन के बीच एक रोधक राज्य का काम करता है।

इस देश से भारत को पटकोई पर्वत शृंखला, घने जंगलों तथा बंगाल की खाड़ी ने अलग कर रखा है। चीन चाहता है कि वह म्यांमा के रास्ते बंगाल की खाड़ी तक पहुंचे। म्यांमा आर्थिक गलियारा से बंगाल की खाड़ी में चीन अपना प्रभाव बढ़ा सकता है, जिससे उसे हिंद महासागर में रणनीतिक बढ़त हासिल हो सकती है। भारत पूर्वोत्तर की सुरक्षा और व्यापार के लिए संकीर्ण सिलीगुड़ी गलियारे के विकल्प को तलाश रहा है और इसमें म्यांमा से सहयोग पर आधारित परियोजनाओं का पूर्ण होना बेहद जरूरी है।

भारत, लोकतांत्रिक सरकार न होने के बाद भी म्यांमा की सेना से संबंध बनाए रखते हुए पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति स्थापना के प्रयासों में सफल हो रहा था। मगर अब स्थितियां भारत के अनुकूल नहीं दिख रही हैं। सितवे शहर पर नियंत्रण के लिए म्यांमा सेना और अराकान सेना के बीच लड़ाई चल रही है। अराकान आर्मी म्यांमा के कई जातीय सशस्त्र समूहों में सबसे नए, लेकिन सबसे सुसज्जित समूहों में से एक है और कई वर्षों से राखीन राज्य और पड़ोसी चिन राज्य के कुछ हिस्सों में सेना से लड़ रहा है।

इस विद्रोही समूह ने रखाइन में महत्त्वपूर्ण बढ़त हासिल कर ली है। अब वह इस क्षेत्र में बहुत मजबूत है और म्यांमा की सेना को इन क्षेत्रों से भागना पड़ा है। रखाइन म्यांमा के दक्षिण पश्चिम में स्थित, बंगाल की खाड़ी का तटवर्ती और पश्चिमोत्तर में बांग्लादेश का सीमावर्ती राज्य है। म्यांमा के उत्तर पश्चिमी तट पर बसा सितवे, रखाइन प्रांत की राजधानी है।

सितवे बंदरगाह को लेकर कलादान परियोजना के सफल होने से भारत के पूर्वोत्तर हिस्सों में, बल्कि उत्तरी और मध्य म्यांमा में नए व्यापार, परिवहन और व्यवसाय को बढ़ावा मिल सकता है। बंगाल की खाड़ी से लगे रखाइन प्रांत और पूर्वोत्तर से लगे चिन प्रांत के बड़े हिस्से अब विद्रोहियों के कब्जे में आ चुके हैं।

भारत का पूर्वोत्तर का इलाका दशकों से अलगाववादी विद्रोहों से प्रभावित रहा है। पूर्वोत्तर भारत के कई विद्रोही गुटों ने म्यांमा के सीमावर्ती गांवों और कस्बों में अपने शिविर बना रखे हैं। ये विद्रोही समूह गुप्त स्रोतों से चीन म्यांमा सीमा पर हथियार हासिल करते हैं। म्यांमा के अस्थिर होने और विद्रोही संगठनों के प्रभाव में आने से पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठन पुन: मजबूत हो सकते हैं।

भारत के सामने यह भी चुनौती होगी कि वह म्यांमा में अपने हितों की सुरक्षा के लिए किस पर निर्भर रहे। म्यांमा से लगती सीमा पर पूर्ण बाड़बंदी से पूर्वोत्तर के जातीय समूह नाराज हो सकते हैं, वहीं प्राकृतिक जटिलताओं के कारण यह संभव भी नहीं है। ऐसे में भारत को नए सिरे से अपनी सैन्य रणनीति पर आगे बढ़ने की जरूरत होगी।

म्यांमा में तेल और ऊर्जा के असीम भंडार हैं। चीन इनका दोहन करना चाहता है और विद्रोही गुटों के लिए यह आय का प्रमुख साधन बन सकता है। पूर्वोत्तर में भारत के महत्त्वपूर्ण साझीदार रहे म्यांमा में सेना के कमजोर होने से इन राज्यों में अलगाव का एक नया दौर फिर शुरू हो सकता है। बहरहाल, भारत को म्यांमा में शांति स्थापित करने के लिए गंभीर कूटनीतिक प्रयास करने की जरूरत है।

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