पी. चिदंबरम का कॉलम दूसरी नजर: भैंसों पर विरासत कर
इस वक्त चल रहे लोकसभा चुनाव के प्रचंड प्रचार में सबसे ज्यादा बहस किस मुद्दे पर हो रही है? एक तरफ नरेंद्र मोदी और उनके कुछ सहयोगी दल हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी और राज्यों के स्वतंत्र, ताकतवर तथा विशिष्ट कमांडरों द्वारा खड़ी की गई बहुआयामी तीखी चुनौतियां हैं। हर चुनौती देने वाले ने बेरोजगारी, महंगाई, सांप्रदायिक विभाजन, असमानता, कानूनों का हथियार की तरह इस्तेमाल करना और जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, महिलाओं के खिलाफ अपराध, भारतीय क्षेत्र पर चीनी सौनिकों का कब्जा, धन के हस्तांतरण में भेदभाव और मीडिया की अधीनता जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं।
मोदी जी ने इन मुद्दों को ध्यान भटकाने वाला कहकर खारिज कर दिया। उन्होंने चतुराई से उन्हें किनारे कर दिया, जसप्रीत बुमरा की तरह संयुक्त विपक्ष को ‘क्लीन बोल्ड’ कर दिया, और भैंसों पर विरासत कर के रूप में वास्तविक प्रेरक विचार के साथ एक अफसाना तैयार कर दिया। मुझे लगता है कि ‘एंटायर पोलिटिकल साइंस’ में वर्षों शोध के बाद यह विचार पैदा हुआ होगा। अब इस सवाल पर राष्ट्रव्यापी ‘एनिमलेटेड’ (पशुवत)- माफ करें, ‘एनिमेटेड’- बहस चल रही है कि ‘क्या केंद्रीय वित्तमंत्री भैंसों पर विरासत कर लगाएंगी?’ चलिए, इस बहस को थोड़ा विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।
पशुओं पर कर
मूल प्रश्न है कि क्या केंद्र सरकार द्वारा इस तरह का कर लगाना संवैधानिक होगा? सातवीं अनुसूची की सूची कक की प्रविष्टि 58 में, ‘मवेशियों और नावों पर कर’ का उल्लेख है। प्रथम दृष्टया, मवेशियों पर कर लगाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास सुरक्षित है। इसके बरक्स, केंद्र सरकार सूची क की प्रविष्टि 86, 87 या 88 के तहत कर को उचित ठहरा सकती है, जो क्रमश: संपत्ति के पूंजीगत मूल्य पर कर, संपत्ति शुल्क और संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में कर्तव्यों से संबंधित है।
कानूनी शब्दावली में, क्या भैंस हमेशा एक जानवर है या, जब वह ‘विरासत में’ मिलती या ‘उत्तराधिकार’ से प्राप्त होती है, तो वह एक संपत्ति बन जाती है? इस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति के संदर्भ और संविधान पीठ द्वारा निर्णय की आवश्यकता हो सकती है। उस वक्त वरिष्ठ वकील का पशु प्रेम देखने लायक होगा।
कर आधार
इस विचार के प्रणेता ने कहा कि, ‘अगर आपके पास दो भैंसें हैं, तो एक छीन ली जाएगी’, जिसका अर्थ है कि विरासत कर केवल दो या इससे अधिक भैंसों पर लगाया जाएगा और कर की दर 50 फीसद हो सकती है। मुझे डर है कि कर का प्रबंधन करना आसान नहीं होगा। अगर दो भैंसें हैं, तो किस भैंस पर कर लगेगा और कर संग्रहकर्ता किसे छीन लेगा? अगर दोनों एक ही लिंग और रंग की हैं, तो वह किसी एक को चुन सकता है, जब तक कि वह बुरिडन के गधे (पढ़ें: भैंस) के सामने आने वाली दुविधा में फंस न जाए और थकावट से मर न जाए।
दो भैंसों में से, अगर एक ‘नर’ और दूसरी ‘मादा’ है, तो वह किसे चुनेगा? इसके अलावा, भैंसें कम से कम चार रंग की होती हैं- भूरी, काली, सफेद और काली-भूरी। मान लीजिए कि दो भैंसों में से एक काली और एक सफेद है, तो कर संग्रहकर्ता किसे चुनेगा? लैंगिक पूर्वाग्रह या नस्लीय पूर्वाग्रह के आरोप से बचने के लिए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड को इस पर नियम बनाने की आवश्यकता पड़ सकती है। इसके अलावा, अगर संपत्ति में विषम संख्या में भैंसें हैं, तो एक अजीब समस्या उत्पन्न होगी: कर संग्रहकर्ता 50 फीसद की दर कैसे लागू करेगा और भैंस-हत्या के आरोप से कैसे बचेगा?
कर की दर
विचार के प्रणेता ने 50 फीसद की कर दर का प्रस्ताव रखा है। क्या इस कानून को चुनौती नहीं दी जाएगी, क्योंकि यह दर प्रथम दृष्टया जब्ती योग्य है? अगर कारपोरेट कर की वर्तमान दरें (15, 22 या 30 फीसद) या व्यक्तिगत आयकर दरें (42.8 फीसद तक) लागू की जाती हैं, तो प्रणेता द्वारा कल्पित यह स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण कर, ‘गब्बर सिंह टैक्स’ (जीएसटी) की तरह जटिल बन जाएगा, और ‘भैंस कर’ की सर्वत्र अवहेलना की जाएगी। अकेले इस दर पर बहस में संसद में कई दिन लग सकते हैं।
शुल्क अनुभाग
शुल्क अनुभाग कर कानून का सत्व होता है। दस्तावेज बनाने वाले को उपयुक्त शब्दों के चयन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। अंतत:, सीबीडीटी को एक भैंस-प्रधान दृष्टिकोण अपनाना होगा, विभिन्न आपत्तियों को संक्षेप में खारिज करके इस संभावना के प्रति पूरी तरह सचेत होकर एक पाठ पर निर्णय करना होगा कि शुल्क अनुभाग को विभिन्न आधारों पर न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है।
अनोखा कर?
विचार के प्रणेता ने एक अद्वितीय कर के रूप में भैंसों पर 50 फीसद की एक समान दर से विरासत कर लगाने पर विचार किया। निश्चित रूप से, उन्होंने मृतक की सभी संपत्तियों पर विरासत कर का प्रस्ताव नहीं रखा है। शायद, उन्होंने सोचा होगा कि भैंस एक विशेष व्यवहार की हकदार है। भारतीय पौराणिक कथाओं में मृत्यु के देवता यम, भैंसे पर सवार होकर आते हैं।
अगर यम के दिव्य वाहन को नश्वर मनुष्यों द्वारा आविष्कृत कार, बाइक या साइकिल जैसे वाहनों के साथ जोड़ा जाएगा तो यह पाप होगा। अगर कर की भूखी सीबीडीटी वित्तमंत्री को मृतक की सभी संपत्तियों पर विरासत कर लगाने के लिए मनाने में सफल हो गई, तो भैंस को अन्य कर योग्य संपत्तियों के साथ जोड़ दिया जाएगा और भैंसों पर विरासत कर एक ‘प्रगतिशील’ कर बन सकता है।
भैंस ही भविष्य है
नरेंद्र मोदी सार्वजनिक वित्त, खासकर कराधान सिद्धांतों के गहन ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने एक क्रांतिकारी कर का प्रस्ताव रखा है, जो भविष्य के कर-नवाचारों का मार्ग प्रशस्त करेगा। नकदी-भैंस का दूध निकालने के लिए, केंद्र सरकार भैंस-पालन को बढ़ावा देने संबंधी एक नया कार्यक्रम शुरू कर सकती है और 806,000 करोड़ रुपए (1000 करोड़ रुपए प्रति जिले की दर से) का प्रारंभिक परिव्यय प्रदान कर सकती है।
भैंसे खेती के लिए मशीनीकृत हलों की जगह ले सकते हैं, जिससे डीजल की बचत होगी। भैंसों की खाद हानिकारक रासायनिक उर्वरकों की जगह ले सकती है। भैंस का दूध भारत में पसंदीदा दूध बन सकता है। मैं इस विचार के प्रणेता के विकसित भारत के दष्टिकोण को प्रणाम करता हूं। अन्य देशों को पीछे छोड़ते हुए, भारत में दो राष्ट्रीय पशु होंगे: जंगल में शानदार बाघ और मानव बस्तियों में बहुउद्देशीय भैंस।