CAA लागू होने के बाद नागरिकता मिलने का इंतजार कर रहे शरणार्थी, पढ़ें पाकिस्तान से आए प्रताड़ित लोगों की कहानी
CAA Implementation: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने पिछले महीने ही चुनावी अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू करते हुए उसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया था। इसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। बता दें कि देश के अलग-अलग इलाकों में ये शरणार्थी मुसीबतों का सामना करते हुए जिंदगी काट रहे हैं। सीएए उनके लिए एक बड़ी खुशखबरी बन कर आया है।
उत्तरी दिल्ली के आदर्श नगर हिंदू प्रवासी राहत शिविर में काफी संख्या में शरणार्थी रहते हैं। सीएए के अधिनियम के तहत 180 लोगों ने नागरिकता के लिए स्थानीय स्कूल में बने एक छोटे कार्यलय में अपना आवेदन किया। ऐसा ही एक आवेदन शिविर के प्रधान, 48 वर्षीय नेहरू लाल ने भी किया। उनका कहना है कि उनसे उनके पासपोर्ट, वीजा आवेदन और 2013 में भारत के लिए रवाना होने पर मिले आवासीय परमिट की एक प्रति मांगी गई थी।
उनका नाम स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम पर रखा गया। उनका कहना है कि सिंध (पाकिस्तान में) में मेरे इलाके के लोगों के लिए अपने बच्चों का नाम लोकप्रिय भारतीय राजनेताओं के नाम पर रखना काफी आम बात थी।
1500 ज्यादा शरणार्थियों को है नागरिकता का इंतजार
सफेद पठानी सूट पहने नेहरू ने बताया कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के कारण वह पाकिस्तान के सिंध से भाग आए थे। आज उनका 65 सदस्यीय परिवार शिविर में रहता है। इसमें उनकी पत्नी, उनके 10 बच्चों में से आठ, छह भाई और उनके संबंधित परिवार शामिल हैं। शिविर में रहते हैं, जो स्थित है। उन्होंने कहा कि हम अपने बेटों के वेतन पर जीवित रहते हैं, जो एक मोबाइल फोन की रिपेयरिंग की दुकान में काम करता है। हमारे यहां आने के बाद जहां मेरी छह बेटियों की शादी दिल्ली में हुई, वहीं दो सिंध में बस गई हैं।
शरणार्थी होने के चलते वह बिना अनुमति के भारत में घूम नहीं सकते और न ही संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। दिल्ली में उनके जैसे किसान के लिए दिल्ली में जमीन नहीं है। उन्होंने कहा कि वे सिंध में खेती करते थे और यहां भी वहीं करना चाहते हैं। उनका कहना है कि वह उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड में जमीन खरीदना चाहते हैं और इसके लिए वह पैसे भी बचा रहे हैं। आदर्श नगर के अलावा पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए दिल्ली में चार और शिविर हैं, जो कि रोहिणी, शाहबाद डेयरी में और दो मजनू का टीला में है। नेहरू ने बताया कि इन पांच शिविरों में केवल लगभग 1,000 लोग ही सीएए के तहत नागरिकता के लिए पात्र हैं।
2013 में अपने माता-पिता के साथ भारत आईं बहनों राजनंदिनी (16) और जमना (15) ने भी 5 अप्रैल को कैंप के स्कूल में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया था। उन्होंने कहा था कि सिंध हमारा घर था, लेकिन भारत जल्द ही हमारा नया घर होगा। हमारे पिता पाकिस्तान में अपने खेत में प्याज उगाते थे। वह यहां एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान में काम करते हैं, जबकि हमारी मां गद्दे बनाती हैं।
शरणार्थी शिविरों में सुधार पर उदासीनता
शरणार्थी शिविरों के सुधार की बात करें तो नेहरू को इस मामले में ज्यादा कोई उम्मीद नहीं है। उन्होंने कहा कि जब मैं यहाँ आया था तब लगभग 25 परिवार यहाँ रहते थे। आज, यहां 250 परिवार हैं, जिनमें अधिकतर मूल कैदियों के दोस्त और रिश्तेदार हैं। यहां हालात इतने खराब हैं कि हमें दिसंबर 2022 में पहली बार बिजली मिली थी, जो कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद दी गई थी। केंद्र ने अक्टूबर 2021 में शिविर में बिजली उपलब्ध कराने पर इस आधार पर आपत्ति जताई थी कि शरणार्थी डिफेंस की जमीन पर अवैध रूप से अतिक्रमण कर रहे थे।
प्रधान का कहना है कि 2013 के बाद से विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल के लोगों बड़ी संख्या में लोग उनकी नागरिकता की स्थिति के बारे में उनसे मिलने आ रहे हैं। इसके बावजूद शरणार्थियों के लिए कुछ भी नहीं बदला है। नेहरू कहते हैं, यहां तक कि नौकरी पाना भी एक समस्या है। उनका दावा है, ''शिविर के कई लड़कों ने आदर्श नगर की दुकानों में तब तक काम किया, जब तक कि उनके नियोक्ताओं को उनकी शरणार्थी स्थिति का पता नहीं चला।
नागरिकता मिलने के साथ ही उन्हें इस मुश्किल स्थिति से राहत मिलेगी। इसको लेकर उन्होंने कहा कि वह खेती कर सकेंगे, अपना खुद का व्यवसाय स्थापित कर सकेंगे और यहाँ तक कि देश भर में स्वतंत्र रूप से घूम सकेंगे। हम अभी किसी से नहीं लड़ सकते, लेकिन नागरिकता मिलने के बाद हमें विरोध करने का भी अधिकार मिल जाएगा, जो कि बेहद अहम है।