ED के बाद CBI ने कैसे केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया? आप भी कन्फ्यूज तो यहां जानिए जवाब
Arvind Kejriwal CBI Arrest: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट के जमानत देने से पहले सीबीआई ने बुधवार को इसी मामले में हिरासत में ले लिया। राउज एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज अमिताभ रावत ने सीबीआई को सीएम केजरीवाल को औपचारिक तौर पर अरेस्ट करने की इजाजत दे दी।
प्रवर्तन निदेशाल यानी ईडी कथित शराब घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही है। वहीं, सीबीआई मामले में भ्रष्टाचार और रिश्वत की जांच करेगी। ईडी ने मार्च के महीने में केजरीवाल को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में अरेस्ट किया था। केजरीवाल के खिलाफ पैसों का लेनदेन और उसका इस्तेमाल ही आरोप था। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 3 में पैसों को छिपाना, किसी संपत्ति पर कब्जा करना और उनका इस्तेमाल करना क्राइम में आता है।
सीबीआई ने 2022 में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया, लेकिन इसमें सीएम अरविंद केजरीवाल को आरोपी नहीं बनाया गया। दरअसल, इस मार्च में जब ईडी ने केजरीवाल को हिरासत में लिया था, तब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने दिल्ली के कोर्ट से कहा था कि पीएमएलए के तहत आरोपी होने के लिए किसी को पहले से तय अपराध में आरोपी होने की जरूरत नहीं है।
अप्रैल के महीने में सीबीआई ने केजरीवाल को पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन उनके वकीलों ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह पूछताछ गवाह के तौर पर की गई थी, आरोपी के तौर पर नहीं। केजरीवाल को अब तक भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी नहीं बनाया गया है।
केजरीवाल को अब क्यों गिरफ्तार किया गया?
सीबीआई के पास अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने का ऑप्शन हमेशा से ही मौजूद था, लेकिन पहले उसे केजरीवाल को कथित घोटाले से सीधे तौर पर जोड़ने वाले कुछ ठोस सबूत इकट्ठा करने होंगे। ईडी के मामले में भी यह सीधा संबंध अभी संदिग्ध है। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक दोनों को सीधे तौर पर फंड से जोड़ने के लिए सबूत जुटाने होंगे। इसके अलावा पीएमएलए के तहत जमानत देने का नियम भी काफी सख्त है। इसलिए ईडी मामले में आरोपी को लंबे समय तक हिरासत में रखने की इजाजत मिलती है।
भ्रष्टाचार के मामले में कोर्ट कैसे देता है जमानत?
भ्रष्टाचार के मामले में कोई भी आरोपी अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दे सकता है। गैर-जमानती अपराधों में जमानत देना न्यायिक विवेक के अंदर आता है। पीएमएलए के उलट पीसी अधिनियम में जमानत के लिए नियम उतने ज्यादा सख्त नहीं है। पीसी एक्ट के अनुसार कोई भी आरोपी रेगुलर बेल के लिए कोर्ट का रुख करता है। हालांकि, 2014 में इसमें संशोधन भी किया गया था। इसके बाद कहा गया कि पीसी एक्ट के तहत किसी भी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि सरकारी वकील को जमानत अर्जी का विरोध करने का मौका न दिया जाए।
2019 में आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम को जमानत देते हुए पीसी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोप की प्रकृति और दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता, सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका या शिकायतकर्ता और गवाहों को धमकी की आशंका अभियुक्त के फरार होने की संभावना को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।