scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

Blog: भूख, भुखमरी और भोजन का संकट, एक अरब आबादी की जरूरत का खाना रोजाना हो रहा बर्बाद!

‘वैश्विक भूख सूचकांक 2023’ के मुताबिक, 28.7 अंक के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘भोजन’ से जुड़ी दो बेहद महत्त्वपूर्ण रपटें आईं। इनमें एक भोजन की बर्बादी से संबंधित है। पढ़ें चेतनादित्य आलोक का लेख।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: June 13, 2024 06:48 IST
blog  भूख  भुखमरी और भोजन का संकट  एक अरब आबादी की जरूरत का खाना रोजाना हो रहा बर्बाद
खाने की बर्बादी रोज हो रही है। लाखों लोग एक रोटी के लिए तरस रहे हैं, लेकिन इसके उपाय के लिए कोई खास कार्य नहीं किए जा रहे हैं। (फाइल फोटो)
Advertisement

भारतीय संस्कृति में ‘सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुखभाग भवेत्’ की भावना के साथ समस्त जीव-जगत के कल्याण की बात कही गई है। वहीं ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना इस संपूर्ण वसुधा को ही एक परिवार के रूप में स्वीकार करती है। हमारी संस्कृति ने जीवन में ‘एकल’ को स्वीकार करने, उसका मानवर्धन करने या उसकी ओर अग्रसर होने की बात नहीं सिखाई, बल्कि ‘एकल’ की जगह ‘सकल’ को स्थापित करने का कार्य किया। हमारे पूर्वजों ने ‘व्यष्टि’ के स्थान पर ‘समष्टि’ को महत्त्व और प्राथमिकता दी।

Advertisement

ऋषि-मुनियों ने सिखाया कि इस नश्वर संसार में ‘मैं’ का कोई महत्त्व नहीं

हमारे ऋषि-मुनियों ने सिखाया कि इस नश्वर संसार में ‘मैं’ का कोई महत्त्व नहीं है। यहां तो ‘हम’ के बिना मनुष्य के जीवन में कुछ होने ही वाला नहीं है। वैसे यह सच है कि मनुष्यता का ऐसा औदात्य भाव, संस्कारों की ऐसी तरलता, सरलता और ऐसी सांस्कृतिक गहराई दुनिया के किसी भी अन्य समाज, संस्कृति या धर्म में नहीं मिलती, जबकि हमारी संस्कृति में ये हमारी धमनियों में प्रवाहित रक्त के समान तथा हमारी श्वासों के साथ हमारी देह में प्रविष्ट करने वाली प्राण-धारा के समान हैं।

Advertisement

स्वयं से पहले दूसरों को भोजन कराने वाले देश में भोजन न मिलना दुखद

मगर क्या कारण है कि समस्त जीव-जगत के कल्याण की चिंता करने वाला समाज आज स्वयं इतना लापरवाह, लाचार और गैरजिम्मेदार हो गया कि अपने इर्द-गिर्द के भय, भूख, तड़प, पीड़ा, संकट और समाधान से उसका कोई वास्ता ही नहीं रहा। आखिर यह कैसे संभव हुआ कि स्वयं से पहले दूसरों को भोजन कराने वाले समाज में देश के करोड़ों लोगों को आज भी दो जून की रोटी नसीब नहीं हो पा रही है। ‘वैश्विक भूख सूचकांक 2023’ के मुताबिक 28.7 अंक के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘भोजन’ से जुड़ी दो बेहद महत्त्वपूर्ण रपटें आईं। इनमें एक भोजन की बर्बादी से संबंधित है और दूसरी भोजन के अभाव और भुखमरी से जुड़ी है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने भोजन की बर्बादी वाली रपट को अधिक महत्त्व प्रदान करते हुए पहले प्रकाशित किया और भोजन के अभाव यानी भुखमरी वाली रपट को बाद में जारी किया।

संभव है कि संयुक्त राष्ट्र ने ऐसा सोचा भी न हो और इन रपटों के आगे और पीछे होने का कारण महज कोई तकनीकि अवरोध, अड़चन या उन समितियों की कार्य प्रणाली रही हो, जो इन्हें तैयार करती हैं, क्योंकि रपटों के प्रकाशन की प्रक्रिया से कई मानवीय, तकनीकि और यांत्रिक पहलू भी जुड़े होते हैं, पर यह सच है कि कहीं न कहीं भोजन के अभाव का संबंध भोजन की बर्बादी से है। हालांकि भोजन के अभाव के अन्य भी कई कारण हो सकते हैं, पर इस समस्या की शुरुआत भोजन की बर्बादी से ही होती है। इसलिए अगर भोजन की बर्बादी सौ फीसद रोक दी जाए तो भोजन के अभाव की समस्या के बहुत बड़े हिस्से का निदान हो जाएगा।

अप्रैल के अंत में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘ग्लोबल रिपोर्ट आन फूड क्राइसिस’ में बताया गया है कि विश्व भर के कुल उनसठ देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोग भूखे रहने को मजबूर हैं। रपट के अनुसार, युद्धग्रस्त गाजा पट्टी और सूडान में बिगड़े खाद्य सुरक्षा के हालात के कारण 2022 में 2.4 करोड़ से अधिक लोगों को भूखे रहना पड़ा। गौरतलब है कि भोजन के अभाव को लेकर रपट जारी करने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने 2016 में की थी।

Advertisement

गौर करें तो पहली रपट की तुलना में ताजा रपट में भूखे लोगों की संख्या में चार गुना वृद्धि हो चुकी है। साथ ही, खाद्य सामग्री के अभाव में भूख से तड़पने वालों की यह संख्या अब तक की सर्वाधिक है। हालांकि भूखे रहने का कारण गरीबी और बेरोजगारी भी हो सकती है, जो भोजन के अभाव और भूख से संबद्ध भारतीय परिदृश्य में बिल्कुल सार्थक और सटीक प्रतीत होती है।

बहरहाल, भुखमरी की समस्या का विश्लेषण करते हुए विश्व भर के विशेषज्ञों ने भूख को समझने के लिए एक पैमाना निर्धारित किया है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अर्थशास्त्री मैक्सिमो टोरेरो के अनुसार इसके कुल पांच चरण हैं। इनमें भूख से सर्वाधिक पीड़ित लोगों को पांचवें चरण में रखा गया है, जिसके अंतर्गत भारत समेत पांच देशों के सत्तर लाख पांच हजार लोग शामिल किए गए हैं। इनमें से अस्सी फीसद यानी सत्तावन लाख सात हजार लोग तो अकेले युद्धग्रस्त गाजा पट्टी में हैं। गौरतलब है कि ‘वैश्विक भूख सूचकांक 2023’ के अनुसार भुखमरी के शिकार 125 देशों की सूची में भारत को 111वां स्थान प्राप्त हुआ है।

जरा सोचिए कि इक्कीसवीं सदी में पहुंच कर भी हमारे देश की पहचान भुखमरी से पीड़ित लोगों वाले देश के रूप में हो रही है, जबकि दूसरी ओर हम दुनिया के तमाम विकसित देशों के समांतर तमाम अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों को अंजाम तक पहुंचाने तथा रक्षा उपकरणों के निर्माण और निर्यात समेत विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन रहे हैं। आज हमारी विदेश नीति, कूटनीति, रक्षा प्रणाली और हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं कलात्मक अवदानों को दुनिया भर में स्वीकृति मिल रही है। हम पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुके हैं और हमारा लक्ष्य शीघ्र ही कुछ वर्षों के भीतर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है।

मार्च के अंत में जारी संयुक्त राष्ट्र की अधीनस्थ इकाई ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) की ‘खाद्य बर्बादी सूचकांक 2024’ की रपट में कहा गया है कि रोजाना दुनिया में जितने लोग भूखे सो जाते हैं, उससे कहीं ज्यादा अनाज बर्बाद हो जाता है, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका होटल और रेस्तरां वाले निभाते हैं। रपट के अनुसार वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर कुल अनाज उत्पादन का उन्नीस फीसद यानी लगभग 1.05 अरब टन अनाज बर्बाद हो गया था। रपट के अनुसार खेत से थाली तक पहुंचने में तेरह फीसद अनाज बर्बाद हो जाता है।

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य बर्बादी सूचकांक रपट वर्ष 2030 तक खाद्य बर्बादी को आधा करने के लिए देशों की प्रगति का विश्लेषण करती है। इस रपट में कहा गया है कि अगर अनाज की बर्बादी को रोक लिया जाए तो दुनिया से भुखमरी समाप्त हो सकती है, क्योंकि अभी दुनिया में रोजाना 78.3 करोड़ लोग गंभीर भूख का सामना करते हैं, जबकि एक अरब लोगों का खाना बर्बाद हो जाता है।

शोधकर्ताओं के अनुसार प्रति व्यक्ति लगभग 79 किलोग्राम प्रतिवर्ष भोजन बर्बाद हो जाता है, जो दुनिया भर में प्रतिदिन बर्बाद होने वाले कम से कम एक अरब लोगों के भोजन की थाली के बराबर है। देखा जाए तो भोजन की बर्बादी एक वैश्विक त्रासदी है, जिसे रोका जाना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह समस्या न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन तथा जैव विविधता के नुकसान के लिए भी जिम्मेदार है।

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो