कर्नाटक में JDS की कमजोर हुई धार, 1999 के बाद पहली बार बुरे दौर में है पार्टी; परिवार में भी कलह
जद (एस) सांसद और पार्टी सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना (32) ने उम्मीद जताई है, "जद (एस) के लिए फिर से अच्छा समय आएगा। हमें उस समय के आने का इंतजार करना होगा।” 13 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और यह स्पष्ट हो गया कि जनता दल (सेक्युलर) 1999 के बाद से अब तक के सबसे खराब प्रदर्शन की ओर बढ़ रही है।
जद (एस) ने इस बार लगभग सब कुछ सही ढंग से किया। अपने दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों भाजपा और कांग्रेस से बहुत पहले चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी, और दिसंबर 2022 की शुरुआत में 93 उम्मीदवारों की पहली सूची का ऐलान भी कर दिया। लगभग 60 "जिताऊ" सीटों पर अपना अभियान भी शुरू कर दिया। हालांकि 224 सदस्यीय विधानसभा में इसको 19 सीटें ही मिल सकीं। यानी 2018 में जीती गईं 37 सीटों में से लगभग आधी सीट मिल सकीं। इसका वोट शेयर भी घटकर 18% से 13% हो गया।
24 साल पहले जद (एस) को मिली थीं 10 सीटें
पिछली बार जद (एस) ने 1999 में इतना बुरा प्रदर्शन किया था। तब यह 10 सीटों पर गिर गया था। 1994 में अविभाजित जनता दल के सत्ता में आने के बाद 115 सीटों के उच्च स्तर के बाद ऐसा हुआ था। 1994 और 1999 के चुनावों के बीच, इसका वोट शेयर 33.54% से घटकर 10.42% हो गया। देवगौड़ा 1996 से 1997 तक प्रधान मंत्री बने। कांग्रेस ने 1999 में 132 सीटों के साथ जीत हासिल की थी, जो इस बार की 135 सीटों के लगभग बराबर थी।
हाल के चुनावों में जद (एस) को व्यापक रूप से कोलेटरल नुकसान हुआ है। वोटरों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया, लेकिन यह ध्यान रखा कि त्रिशंकु जनादेश नहीं है। 2018 में इस तरह के स्थिति के बाद भाजपा ने एक साल के भीतर कांग्रेस-जद (एस) सरकार को गिराने में कामयाबी हासिल की थी।
जद (एस) की गिरावट के कारणों में से एक धारणा यह हो सकती है कि यह भाजपा के करीब थी। कांग्रेस इसको लेकर प्रचार करती रही है। जद (एस) ने अतीत में भाजपा के साथ सरकार बनाई थी। जेडी(एस) के मुस्लिम वोटों का स्पष्ट रूप से बड़े पैमाने पर कांग्रेस के पक्ष में जाना भी एक अन्य महत्वपूर्ण वजह थी।
हालांकि, अब लग रहा है कि देवगौड़ा परिवार के पास ज्यादा कुछ न बचे। पार्टी के निर्विवाद सुप्रीमो देवेगौड़ा काफी वृद्ध हो गये हैं। गुरुवार को वह 91 वर्ष के हो गए और बीमार चल रहे हैं। पार्टी से पहले परिवार में विभाजन साफ दिख रहा है। जद (एस) को अब वोक्कालिगा क्षेत्र का भी समर्थन घट रहा है। उसमें अब भाजपा और कांग्रेस भी आ गई हैं। जद (एस) के लिए एक और खतरा वोक्कालिगा नेता के रूप में कांग्रेस के दिग्गज डी के शिवकुमार का उदय है।