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संजय गांधी और नसबंदी: डॉक्टरों की छुरी जमा कराने पर ही मिलता था एरियर का पैसा, ड्राइवर्स को लाइसेंस के लिए दिखाना होता था सर्टिफिकेट

रामचंद्र गुहा अपनी किताब India After Gandhi (2008) में लिखते हैं कि संजय गांधी एक साल में नतीजा चाहते थे और पूरी सरकार और पार्टी का तंत्र उनका उद्देश्य पूरा करने के लिए जुट गया था।
Written by: Pawan Upreti
नई दिल्ली | Updated: June 30, 2024 13:26 IST
नसबंदी अभियान में जुट गए थे संजय गांधी। (Source-(Express Archive))
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49 साल पहले 25 जून की आधी रात को तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल लगा दिया था। उस दौरान देश में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने नसबंदी अभियान छेड़ दिया था। बड़ी संख्या में लोगों की नसबंदी कर दी गई थी और इसके लिए पुलिस का सहारा लिया गया था।

जबरन नसबंदी का लोगों ने जमकर विरोध किया था और हालात बिगड़ने पर पुलिस ने गोली चला दी थी और इसमें कई लोगों को मौत हो गई थी।

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नसबंदी अभियान के प्रति संजय गांधी की आक्रामकता की वजह से अफसरों के बीच भी होड़ लग गयी। इससे जिला स्तर के अफसर भी नसबंदी के दिए टारगेट को पूरा करने के लिए जुट गए और जबरन लोगों की नसबंदी करने लगे।

संजय गांधी का "पांच सूत्रीय कार्यक्रम"

संजय गांधी इंदिरा गांधी सरकार में बिना किसी पद के बावजूद बहुत ताकतवर बन गए थे। उन्होंने "पांच सूत्रीय कार्यक्रम" तय किया था। जिनमें नसबंदी के अलावा पेड़ लगाना, दहेज उन्मूलन, निरक्षरता को दूर करना और झुग्गी-झोपड़ियों को हटाना भी शामिल था।

गुहा अपनी किताब India After Gandhi (2008) में लिखते हैं कि नसबंदी के अलावा संजय गांधी के पांच बिंदुओं में से बाकी अन्य चार दमदार नहीं थे। संजय गांधी एक साल में नतीजा चाहते थे और पूरी सरकार और पार्टी का तंत्र उनका उद्देश्य पूरा करने के लिए जुट गया था। इसके लिए देश भर में नसबंदी शिविर लगाए गए और बड़े टारगेट तय किए गए।

रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि निचले स्तर के अफसरों को अपना एरियर लेने के लिए डाक्टरों के औजार दिखाकर इस बात का सुबूत देना पड़ता था कि उन्होंने कितनी सर्जरी की हैं। अगर ट्रक ड्राइवर नसबंदी प्रमाण पत्र नहीं दिखा पाते थे तो उनके लाइसेंस को रिन्यू नहीं किया जाता था।

पुलिस ने चलाई गोली, मारे गए लोग

संजय गांधी के "पांच सूत्रीय कार्यक्रम" के तहत अप्रैल 1976 में, डीडीए के उपाध्यक्ष जगमोहन के आदेश पर दिल्ली में तुर्कमान गेट के पास झुग्गियों को हटाने के लिए बुलडोजर चलाया गया था। जब स्थानीय लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया तो पुलिस ने गोली चला दी और इसमें कई लोगों की मौत हो गई।

18 अक्टूबर, 1976 को यूपी के मुजफ्फरनगर में जबरन नसबंदी का विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें 50 लोगों की मौत हो गई।

इंदिरा को मिली बड़ी हार

इंदिरा गांधी ने 1977 की शुरुआत में आपातकाल हटाने का फैसला किया। 1977 के चुनावों में कांग्रेस की भयंकर हार हुई और जनसंघ, ​​कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल के विलय से बनी जनता पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की और मोरारजी देसाई भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने।

21 महीने तक चला था देश में आपातकाल का दौर। (Source-PTI)

तीस चालीस साल चुनाव नहीं कराएंगी मां: संजय

द इंडियन एक्सप्रेस में 3 फरवरी, 2019 को अपने कॉलम ‘इनसाइड ट्रैक’ में कूमी कपूर ने वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की एक क‍िताब (On Leaders and Icons) के हवाले से लिखा था कि आपातकाल हटाए जाने के बाद संजय गांधी ने कुलदीप नैयर को बताया था कि वह यह मान कर चल रहे थे कि उनकी मां इंदिरा गांधी तीस चालीस साल तक चुनाव नहीं कराएंगी।

क्यों लगाना पड़ा था आपातकाल?

1974 की शुरुआत में गुजरात में चिमनभाई पटेल की कांग्रेस सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन शुरू हुआ था जिसे नवनिर्माण आंदोलन कहा गया था। जब सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन हिंसक हो गया था तो पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था।

जेपी ने किया "संपूर्ण क्रांति" का आह्वान

नवनिर्माण आंदोलन के बाद बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्र सड़क पर आ गए थे। 18 मार्च 1974 को छात्रों ने विधानसभा तक मार्च किया था। इस दौरान आगजनी हुई और पुलिस कार्रवाई में तीन छात्र मारे गये। बाद में गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण भी आंदोलन में कूद गए और इसे "जेपी आंदोलन" कहा गया। जेपी ने "संपूर्ण क्रांति" का आह्वान किया। साल के अंत तक जेपी को पूरे भारत से समर्थन मिला और उन्होंने पूरे देश का दौरा किया।

जेपी की रैलियों में उमड़ी भीड़ से इंदिरा गांधी सरकार को मुश्किल होने लगी थी। 12 जून, 1975 को, इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जगमोहनलाल सिन्हा ने राज नारायण द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया गया।

इसके बाद कांग्रेस के अंदर भी इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग तेज होने लगी। 25 जून की देर शाम को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिये।

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Tags :
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