जोरहाट लोकसभा चुनाव परिणाम 2024: जान लगाकर भी बीजेपी को यह सीट नहीं दिला पाए असम सीएम सरमा
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों में असम में बीजेपी ने 14 में से 9 सीटों पर कब्जा जमाया है। इनमें से जोरहाट सीट पर कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने शानदार जीत दर्ज की है। जोरहाट में भाजपा ने आक्रामक अभियान चलाया था और मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने आगे बढ़कर नेतृत्व किया था ऐसे में असम भाजपा को यहां हार सबसे ज्यादा चुभेगी। बीजेपी ने गौरव के खिलाफ तपन गोगोई को उतारा था।
जोरहाट सीट पर भाजपा की हार के बाद पार्टी के भीतर असंतोष भी सामने आया, जहां गोगोई की जीत के तुरंत बाद एक भाजपा विधायक ने सार्वजनिक रूप से कहा कि 'अहंकार' के कारण उनकी पार्टी को यह सीट गंवानी पड़ी।
मंगलवार शाम एक सोशल मीडिया पोस्ट में भाजपा के खुमताई विधायक मृणाल सैकिया ने गोगोई की जीत को अद्भुत और महत्वपूर्ण बताया और लिखा, "परिणाम ने साबित कर दिया कि पैसा, बड़ा प्रचार, नेताओं का मेला और अहंकारी भाषण हमेशा चुनाव जीतने में मदद नहीं करते हैं।”
विधायक के पोस्ट से नाराज हुए हिमंता बिस्वा
विधायक के इस पोस्ट से हिमंता बिस्वा नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि सैकिया जल्द ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे। द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता मृणाल सैकिया ने कहा कि उनकी पार्टी छोड़ने की कोई योजना नहीं है। गोगोई की जीत पर अपनी टिप्पणियों पर बात करते हुए सैकिया ने कहा कि जोरहाट में एक व्यक्तिगत अभियान ने भाजपा को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा, ''यह सीएम और गौरव गोगोई के बीच की लड़ाई थी।''
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गोगोई के प्रति पैदा हुई सहानुभूति की लहर- बीजेपी विधायक
मृणाल सैकिया ने कहा, “यह असहमति नहीं है, यह मेरी राय है। जोरहाट में हमारी पार्टी का अभियान अच्छा नहीं था। मैं इसे अति-प्रचार कहूंगा और इसके परिणामस्वरूप गोगोई के प्रति सहानुभूति की लहर पैदा हुई। अगर आप किसी व्यक्ति को दिन-रात गाली देते हैं तो यह काम नहीं करता है।''
सीएम ने इसे अपने लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया- गौरव गोगोई
अपनी जीत के एक दिन बाद गौरव गोगोई ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “मुझे ऐसा लगता है जैसे मुख्यमंत्री ने इसे अपने लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया था क्योंकि अपने अभियान में उन्होंने कभी भी स्थानीय उम्मीदवार के नाम का उल्लेख नहीं किया। यहां तक कि उनकी कई बड़ी रैलियों में तो उम्मीदवार उनके साथ नजर ही नहीं आए। उम्मीदवार किसी दूर कोने में किसी रैली को संबोधित कर रहे थे और यह मुख्यमंत्री ही थे जिन्होंने खुद बड़ी रैलियों, साइकिल यात्राओं और पदयात्राओं की कमान संभाली थी।"
गोगोई ने कहा, “मुझे नहीं पता कि उन्हें यह दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई लेकिन साफ तौर पर वह जोरहाट के लोगों की नब्ज को नहीं पढ़ सके। मैं कह सकता हूं कि मुख्यमंत्री ने जोरहाट में जितना ज्यादा प्रचार किया उतना ही मेरे अभियान को लाभ हुआ। मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने जितना दुष्प्रचार किया उतना ही फायदा हुआ। ऐसे में मुख्यमंत्री मेरे लिए एक स्टार प्रचारक बन गए।”
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गौरव गोगोई की सीट को लेकर थी अनिश्चितता
ऐसे कई कारण हैं जिन्होंने असम की जोरहाट सीट को राज्य में सबसे बड़ी प्रतिष्ठा की लड़ाई बना दिया है। यह गोगोई के लिए नया क्षेत्र था जो पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर के एक प्रमुख सांसद के रूप में उभरे हैं। कालियाबोर सीट जिसका उन्होंने पिछले 10 सालों से प्रतिनिधित्व किया था, उसे परिसीमन के बाद बदल दिया गया और काजीरंगा नाम दिया गया। जोरहाट पर फैसला होने तक इस बात पर अनिश्चितता बनी हुई थी कि वह किस सीट से चुनाव लड़ेंगे।
तपन गोगोई की जगह उनके अभियान का मुख्य चेहरा मुख्यमंत्री सरमा थे
यह गौरव और तपन गोगोई के बीच दोतरफा मुकाबला था। हालांकि, तपन गोगोई की जगह उनके अभियान का मुख्य चेहरा मुख्यमंत्री सरमा थे। हिमंता सरमा ने सीट के विभिन्न हिस्सों में कई बड़े रोड शो और रैलियां कीं और उनके कई विधायक और मंत्री अभियान के दौरान लंबे समय तक जोरहाट में डेरा डाले रहे। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे एक वीडियो में हिमन्ता सरमा को अभियान के दौरान यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कांग्रेस को इस सीट पर सबसे बड़े अंतर से नुकसान होगा।
हिमंता बिस्वा और गौरव गोगोई के बीच व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता भी है। सरमा तरुण गोगोई के विश्वासपात्र थे लेकिन जब तरुण ने अपने बेटे को राजनीति में शामिल किया और कांग्रेस ने उसे बढ़ावा देना शुरू किया तो उनके बीच मतभेद हो गए। कई लोग कहते हैं कि इसने सरमा के भाजपा में जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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1.4 लाख वोटों के अंतर से जीते गौरव
इस सीट पर बीजेपी के आक्रामक प्रचार के बावजूद कांग्रेस ने 1.4 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक वोटों का विधानसभा क्षेत्र-वार वितरण प्रदान नहीं किया है। पर, कांग्रेस नेताओं ने कहा कि उनकी गणना से पता चलता है कि पार्टी माजुली को छोड़कर सभी 10 विधानसभा क्षेत्रों में आगे है।
यह असम सरकार और मुख्यमंत्री की हार- कांग्रेस
असम कांग्रेस के प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “यह असम सरकार और मुख्यमंत्री की हार है। पूरा मंत्रिमंडल वहां था, विधायक वहां थे। उन्होंने वहां कांग्रेस पदाधिकारियों को अपने पाले में कर लिया। उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष, महासचिव को ले लिया।”
बुधवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने लिखा, “न केवल पीएम निवर्तमान हैं, बल्कि मेरे युवा सहयोगी गौरव गोगोई की जोरहाट में 1 लाख से अधिक की प्रभावशाली बढ़त के साथ, असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के बाहर होने की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है।”
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जोरहाट सीट पर अहोम समुदाय के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा
जोरहाट में अन्य कारणों से भी भाजपा को नुकसान पहुंचा है। सरमा के नेतृत्व में असम में पार्टी नेताओं ने अक्सर कहा है कि कांग्रेस राज्य में केवल मुसलमानों से वोट प्राप्त करने तक सीमित रह गई है। हालांकि, जोरहाट सीट पर अहोम समुदाय के मतदाताओं का बड़ा हिस्सा है, इसके बाद मिसिंग आदिवासी मतदाता हैं।
असम भाजपा प्रमुख भाबेश कलिता ने नतीजे के बारे में बात करते हुए कहा कि जोरहाट अपवाद था और जोरहाट के अलावा कांग्रेस ने केवल अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में बढ़त हासिल की है। उन्होंने कहा, "हम इस पर चर्चा करेंगे और आत्मनिरीक्षण करेंगे कि सीट पर क्या गलत हुआ, हमें कहां फायदा हुआ, कहां हार मिली। समय आने पर हम सैकिया के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई पर विचार करेंगे।"
जोरहाट लोकसभा चुनाव 2019 परिणाम
2019 में बीजेपी ने 10, कांग्रेस ने 3 और एक सीट पर निर्दलीय ने जीत हासिल की थी। इस बार, भाजपा ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीन अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के लिए छोड़ दी थी। जिनमें से दो असम गण परिषद के लिए और एक यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल के लिए थी। जबकि कांग्रेस ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और डिब्रूगढ़ सीट अपने क्षेत्रीय सहयोगी, असम जातीय परिषदके लिए छोड़ दी थी।
इस बार भाजपा ने जीतीं 9 सीटें
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों की बात की जाये तो भाजपा ने नौ सीटें जीतीं, उसके सहयोगियों ने दो सीटें जीतीं और कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं। हालांकि, कुल वोट शेयर एक दिलचस्प तस्वीर पेश करता है। राज्य में कांग्रेस को 37.48% वोट शेयर मिला जबकि बीजेपी को 37.43% वोट शेयर मिला। 2019 की तुलना में दोनों पार्टियों का वोट शेयर बढ़ा है। पिछली बार कांग्रेस का शेयर 35.79% और भाजपा का 36.41% था।