scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

लुटियंस दिल्ली में कैसे रहने लगे सांसद, वर्ल्ड वॉर II से क्या है कनेक्शन?

लुटियंस दिल्ली में सांसदों के रहने और उन्हें बंगले आवंटित होने के सिरे द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़े हुए हैं। चक्षु राय के इस लेख में जानिए पूरी कहानी।
Written by: ईएनएस
नई दिल्ली | Updated: July 01, 2024 10:47 IST
लुटियंस दिल्ली में कैसे रहने लगे सांसद  वर्ल्ड वॉर ii से क्या है कनेक्शन
लुटियंस दिल्ली में कैसे रहने लगे सांसद? (Source- Financial Express)
Advertisement

आम चुनाव के नतीजे आने के बाद अब देशभर से नए जन प्रतिनिधि और सांसद सामने आए हैं। वहीं, कुछ पुराने सांसदों को हार का सामना भी करना पड़ा है। इस चुनावी हार के बाद निवर्तमान सांसदों को उस आधिकारिक आवास को खाली करना पड़ेगा जिसमें वह अभी रह रहे थे। वहीं, आने वाले सांसद फिर दिल्ली के इन लुटियंस बंगलों के लिए मारामारी करना शुरू कर देते हैं। आइये जानते हैं लुटियंस दिल्ली में कैसे रहने लगे सांसद और वर्ल्ड वॉर II से इनका क्या कनेक्शन है?

आम धारणा के विपरीत आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने इन लुटियंस बंगलों को डिज़ाइन नहीं किया था। राजधानी दिल्ली में रॉबर्ट रसेल, डब्ल्यू एच निकोल्स, सी जी ब्लॉमफील्ड, वाल्टर साइक्स जॉर्ज और हर्बर्ट बेकर जैसे आर्किटेक्ट ने औपनिवेशिक सरकारी अधिकारियों के आवासों को डिजाइन किया। इन आवासों का आवंटन सीधा इस आधार पर था कि ब्रिटिश सरकार में किसी व्यक्ति की स्थिति जितनी अधिक होगी, उसका आवास उतना ही बड़ा और वायसराय हाउस के करीब होगा। उदाहरण के लिए, तीन मूर्ति भवन, सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ का निवास सबसे बड़ा और वायसराय हाउस के निकटतम था।

Advertisement

इस दौरान सांसदों के लिए आधिकारिक आवास का सवाल कोई महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं था। 1921 में शुरू हुई केंद्रीय विधान सभा में 145 सदस्य थे और इसकी बैठक तीन महीने से भी कम समय के लिए होती थी। कुछ सभा सदस्यों के पास औपनिवेशिक सरकार में आधिकारिक जिम्मेदारियाँ भी थीं और वे सरकारी आवास के हकदार थे। सरकार ने अन्य निर्वाचित सदस्यों के आवास के लिए संसद भवन के करीब छोटे बंगले भी बनाए थे।

लोकसभा अध्यक्ष का आधिकारिक निवास आज भी वही

मुहम्मद अली जिन्ना जैसे कुछ सदस्यों के पास अपने बंगले खरीदने के साधन थे। केंद्रीय विधानसभा के पहले निर्वाचित अध्यक्ष (तब स्पीकर को इसी नाम से जाना जाता था) विठ्ठलभाई पटेल को उनके आधिकारिक निवास के रूप में 20 अकबर रोड पर बंगला आवंटित किया गया था और लगभग 100 साल बाद भी यह लोकसभा अध्यक्ष का आधिकारिक निवास बना हुआ है।

द्वितीय विश्व युद्ध से लुटियंस बंगलों का कनेक्शन

1946 में विधायिका सचिवालय को भारत के संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए नियुक्त लगभग 300 संविधान सभा सदस्यों को एक जगह रखने की समस्या सामने आई। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने से इस समस्या का समाधान हो गया। संसद भवन के नजदीक एक बैरक परिसर जिसमें अमेरिकी सशस्त्र बल के जवान रहते थे खाली हो गया। विधानसभा सचिवालय ने इन बैरकों की मांग की और इमारत का नाम बदलकर संविधान भवन कर दिया गया।

Advertisement

सचिवालय ने इस दौरान ध्यान रखा कि प्रत्येक यूनिट के पास टेलीफोन हों और सदस्यों को यूरोपीय और इंडियन दोनों तरह का खाना उपलब्ध हो। संविधान सभा के अधिकांश सदस्य दिल्ली में रहने के दौरान इन्हीं बैरकों में रुके थे। सदस्यों के पास इंपीरियल और मेडेंस जैसे निजी होटलों में रहने का विकल्प भी था, जहां कमरे का किराया कॉन्स्टिट्यूशन हाउस की तुलना में अधिक था।

ऐसे हुई कॉन्स्टिट्यूशन क्लब की शुरुआत

यह बैरक और उसका डिनर हॉल संवैधानिक मामलों पर चर्चा का मंच बन गया। 1946 के अंत तक सदस्यों के लिए एक कॉन्स्टिट्यूशन क्लब इन बैरकों के पास शुरू हुआ और इन चर्चाओं के लिए एक और स्थान बन गया। हालांकि, संविधान सभा के सभी सदस्य संविधान भवन में नहीं रहते थे। राजेंद्र प्रसाद क्वीन विक्टोरिया रोड (अब उनके नाम पर) पर रहते थे। संविधान सभा में उनके कार्यकाल के दौरान जवाहरलाल नेहरू का आधिकारिक निवास यॉर्क रोड (अब मोतीलाल नेहरू रोड) पर था, वल्लभभाई पटेल औरंगजेब रोड (अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड) पर रहते थे। स्वतंत्रता के बाद सरकार ने 400 से अधिक सांसदों की सुविधा के लिए संसद भवन परिसर के करीब घरों का निर्माण किया।

सांसदों को आवास आवंटित करने की प्रक्रिया

1952 में संसद ने सांसदों को आवास आवंटित करने की प्रक्रिया भी स्थापित की और इन मामलों से निपटने के लिए एक सदन समिति की स्थापना की। सरकार ने दिल्ली में विभिन्न प्रकार के बंगलों को भी पूलों में विभाजित किया, जैसे मंत्रियों और अधिकारियों के लिए, लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों के लिए आवास। दोनों सदनों की समितियां अपने सदस्यों के लिए आवास आवंटन पर निर्णय ले सकती हैं। वे यह तय करने के लिए कि किसी सांसद को बड़ा बंगला मिलेगा या छोटा आवास, संसद में कार्यकाल की संख्या, राज्य या केंद्र में मंत्री जैसे पिछले पद जैसे मानदंडों का उपयोग करते हैं।

किसी सांसद को उसकी पात्रता से अधिक आवास दिलाने के लिए दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी भी हस्तक्षेप कर सकते हैं। अधिकांश सांसद अब संसद के करीब घरों और बहुमंजिला अपार्टमेंट परिसरों में रहते हैं।

लंबे समय तक आवास नहीं खाली करते सांसद

सालों वर्षों से सांसदों ने अपने आवास विशेषाधिकारों का उपयोग और दुरुपयोग किया है। आधिकारिक आवास का उपयोग करने का मतलब यह भी है कि सदस्यों को सार्वजनिक कार्यालय छोड़ने पर परिसर खाली करना होगा। शुरुआत में सदस्य ऐसा करते भी थे। जब बी आर अंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दिया, तो उन्होंने तुरंत अपना बंगला खाली कर दिया। हालांकि, समय के साथ पूर्व सदस्यों और मंत्रियों ने कार्यालय छोड़ने और न्यूनतम या कोई किराया नहीं देने के बाद लंबे समय तक इन परिसरों पर कब्जा करना शुरू कर दिया।

तब से लेकर आज तक लुटियंस बंगले का आकर्षण सांसदों और नेताओं में कम नहीं हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में, आवास विशेषाधिकारों के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ गया है। तवलीन सिंह की टिप्पणी इस मामले में जायज है, "विशेषाधिकार प्राप्त संसद सदस्य करदाताओं के खर्च पर उस जीवन शैली में रहते हैं जिसकी उन्हें कभी आदत नहीं पड़ने दी जानी चाहिए। कोई भी आधुनिक लोकतांत्रिक देश अपने अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऐसे घरों में ठहराने के लिए पैसे नहीं चुकाता जिसे केवल अरबपति ही वहन कर सकते हैं।''

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो