यूपी, महाराष्ट्र से मणिपुर तक बीजेपी पर प्रेशर, साथी तो बोले ही, बीजेपी से भी उठी आवाज
लोकसभा चुनाव 2024 में अपने दम पर बहुमत पाने से दूर रही बीजेपी को अब एनडीए के अंदर से ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बीजेपी के लिए ये चुनौतियां मणिपुर से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से सामने आई हैं।
इतना ही नहीं बीजेपी के अंदर भी कई नेताओं ने हार को लेकर बयानबाजी की है और इससे पार्टी की अंदरुनी लड़ाई सड़कों पर आ गई है। इसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की हार के बाद उनके और बीजेपी के पूर्व विधायक संगीत सोम के बीच हुई जुबानी जंग का मामला भी शामिल है।
लक्ष्य हासिल नहीं कर सका एनडीए
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए 400 पार का नारा दिया था जबकि खुद के लिए उसने 370 सीटें जीतने का टारगेट रखा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित तमाम नेताओं और पार्टी के फ्रंटल संगठनों ने एनडीए और पार्टी को इस लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए पूरा जोर लगाया लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा नेतृत्व को बेहद निराशा हुई।
हालांकि बीजेपी लगातार तीसरी बार एनडीए में शामिल सहयोगी दलों के दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही है लेकिन सरकार बने हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ है कि सहयोगी दलों की ओर से और पार्टी के भीतर से भी उसे परेशान करने वाली आवाज उठ रही है।
जिन तीन बातों से बीजेपी नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ी हैं, उनमें उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल का आरक्षित सीटों पर नियुक्ति के मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखना, महाराष्ट्र में बीजेपी के सहयोगी और उपमुख्यमंत्री अजित पवार से गठबंधन तोड़ने की मांग और पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर से एनडीए के विधायकों का दिल्ली आना शामिल है।
अनुप्रिया पटेल का योगी को पत्र
पहले मामले में जब केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा तो इससे यह संदेश गया कि बीजेपी का यह सहयोगी दल उस पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। यहां याद रखना होगा कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में इस बार बीजेपी का प्रदर्शन पिछली बार के मुकाबले खराब रहा है।
किस राज्य में कितनी सीटों का हुआ नुकसान
राज्य | 2019 में मिली सीटें | गंवाई सीटें |
उत्तर प्रदेश | 62 | 29 |
महाराष्ट्र | 23 | 14 |
पश्चिम बंगाल | 18 | 6 |
राजस्थान | 25 | 11 |
बिहार | 17 | 5 |
कर्नाटक | 25 | 8 |
हरियाणा | 10 | 5 |
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की समीक्षा बैठक में यह सामने आया है कि पार्टी को एससी, एसटी ओबीसी वर्ग के मतदाताओं की बेरुखी का सामना करना पड़ा है। ऐसे में अनुप्रिया पटेल ने इन वर्गों के अभ्यर्थियों की नौकरियों का मामला उठाकर बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया था हालांकि योगी सरकार ने अपने जवाब में कहा केंद्रीय राज्य मंत्री के आरोपों को पूरी तरह गलत बताया है।
महाराष्ट्र में एनडीए के अंदर घमासान
उत्तर प्रदेश के जैसा ही हाल महाराष्ट्र का भी है। महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ ही एनडीए को भी इस बार बड़ा झटका लगा है। जबकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एनडीए के लिए महाराष्ट्र की सभी 48 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था।
किसे मिली कितनी सीटें
राजनीतिक दल | मिली सीटें |
बीजेपी | 9 |
कांग्रेस | 13 |
एनसीपी | 1 |
एनसीपी (शरद चंद्र पवार) | 8 |
शिवसेना (यूबीटी) | 9 |
शिवसेना | 7 |
महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में हुई बगावत के बाद इनके बागी धड़े बीजेपी के साथ आ गए थे। शिवसेना से आए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि एनसीपी से आए अजित पवार उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद महाराष्ट्र में बीजेपी के अंदर से ही एनसीपी से गठबंधन को लेकर खुलकर नाराजगी सामने आ रही है।
एनसीपी से गठबंधन तोड़ने की वकालत
कुछ दिन पहले बीजेपी की पुणे इकाई के जिला उपाध्यक्ष सुदर्शन चौधरी ने इस बात की जोरदार वकालत की थी कि अजीत पवार की अगुवाई वाली एनसीपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया जाना चाहिए। इसके बाद एनसीपी की ओर से भाजपा नेता के बयान के खिलाफ सख्त नाराजगी जताई गई थी।
इसके साथ ही अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी में भी भगदड़ के संकेत मिल रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में लिखे गए एक लेख में भी महाराष्ट्र में बीजेपी के एनसीपी के साथ गठबंधन करने के फैसले को गलत बताया गया था।
गठबंधन को लेकर असंतोष
बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक में भी गठबंधन को लेकर असंतोष सामने आया था और विशेषकर एनसीपी को एनडीए में शामिल करने को लेकर नाराजगी दिखी थी। साथ ही शिवसेना को लेकर भी दबी जुबान में निराशा जाहिर की गई है। दिल्ली में हुई भाजपा की कोर कमेटी की बैठक में जब लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन की समीक्षा की गई तो यह बात सामने आई थी कि गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों के बीच सामंजस्य की कमी थी।
लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद से ही यह सवाल उठ रहा है कि बीजेपी-एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी अगुवाई वाला यह गठबंधन कितने दिनों तक चलेगा। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी अपने दोनों सहयोगियों में से किसी एक या फिर दोनों से अलग हो सकती है?
विधानसभा चुनाव में हो सकता है नुकसान?
अगर बीजेपी इसी तरह असमंजस में रही तो महाराष्ट्र में जल्द होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उसके लिए सहयोगी दलों के साथ सीटों का बंटवारा करना मुश्किल हो जाएगा। जबकि दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के दल लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी से बेहद जोश में हैं और जोर-शोर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।
मणिपुर में हिंसा नहीं रोक पा रही राज्य सरकार
तीसरा मामला मणिपुर का है। मई, 2023 से जातीय हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर से एनडीए के विधायक दिल्ली आए थे। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सूत्रों ने बताया कि कई विधायकों ने राज्य में चल रहे संकट से राज्य सरकार जिस तरह निपट रही है, उस पर नाखुशी जाहिर की और वे केंद्रीय नेतृत्व तक यह बात पहुंचाना चाहते हैं कि उन्हें जनता के दबाव का सामना करना पड़ रहा है। एनडीए के सहयोगी दल के एक विधायक ने कहा कि वह चाहते हैं कि मणिपुर को लेकर कोई सख्त राजनीतिक फैसला लिया जाना चाहिए।
विधायकों के दिल्ली पहुंचने के बाद से ही यह बात सामने आ रही है कि राज्य में एनडीए के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। विपक्षी दल कांग्रेस लगातार मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को उनके पद से हटाने की मांग कर रहा है।
मणिपुर में दोनों सीटें जीती है कांग्रेस
मणिपुर में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे भी बीजेपी के लिए खराब रहे हैं। 2019 में जहां कांग्रेस को इस राज्य में कोई सीट नहीं मिली थी वहीं इस बार पार्टी ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की है और बीजेपी ने उसे पिछली बार मिली एक सीट भी गंवा दी है।
(Source-FB)
सहयोगियों के सामने झुकना है मजबूरी
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था और तब उसे अपनी सरकार चलाने के लिए एनडीए के सहयोगी दलों पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने की जरूरत नहीं थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है और पार्टी बहुमत के आंकड़े से दूर है और वह जानती है कि उसे सहयोगियों के दम पर ही अपनी सरकार चलानी है और इसके लिए उसे सहयोगियों के सामने झुकना ही होगा।