राजस्थान: अशोक गहलोत और सचिन पायलट में खींचतान जारी, भाजपा को दिख रहा आपदा में अवसर
राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान बढ़ती जा रही है। भाजपा इस विवाद में अपना फायदा देखती नजर आ रही है। यहां तक कि गहलोत पर निशाना लगाने के लिए सचिन पायलट भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का बहाना ले रहे हैं, लेकिन उन पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
भाजपा में वसुंधरा विरोधी कैंप को उम्मीद थी कि पायलट के कदम से उनको कुछ फायदा होगा, लेकिन कर्नाटक में हुए नुकसान से पार्टी राजस्थान में अपने सबसे लोकप्रिय नेता के खिलाफ कुछ भी कार्रवाई करने के प्रति सचेत हो गई है।
पायलट मामले को लेकर भाजपा में फिलहाल तीन तरह की धारणाएं हैं। वह इस पर निर्भर करता है कि आप किस ओर खड़े हैं - केंद्रीय मंत्री और जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के खेमे के साथ, राजे के साथ, या भाजपा कार्यकर्ता के पक्ष में जो किसी भी खेमे का सदस्य नहीं है।
भाजपा के आंतरिक सूत्रों का मानना है कि शेखावत कैंप पायलट के इस आरोप से बेहद खुश है, जिसमें "राजे और गहलोत के बीच संबंधों का खुलासा होने की बात कही गई है।" शेखावत और राजे दोनों लोग अगले चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने पर सीएम पद के दावेदार हैं। ऐसे में वसुंधरा राजे पर किसी भी तरह का दाग होने से शेखावत की दावेदारी मजबूत होगी। वैसे भी वसुंधरा राजे का हाईकमान में बहुत ही कम दोस्त हैं।
पायलट ने गहलोत सरकार पर आरोप लगाया है कि राजे के सीएम काल में भ्रष्टाचार पर कार्रवाई से बच रही है। यह इस बात का संकेत है कि कांग्रेस सीएम ने भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री से हाथ मिला लिया है। पायलट ने चेतावनी दी है कि इस महीने के अंत तक गहलोत सरकार ने वसुंधरा राजे पर कार्रवाई नहीं की तो वे आंदोलन शुरू कर देंगे।
गहलोत यह कहते हुए एकाधिकार के इस सियासत में शामिल हो गए हैं कि जब पायलट ने 2020 में उनके खिलाफ विद्रोह किया था तब वह राजे ही थीं, जिन्होंने विधायकों को "खरीदे" जाने के भाजपा की कोशिश के खिलाफ एक सैद्धांतिक रुख अपनाया था और उनकी सरकार को बचाने में मदद की थी। चारित्रिक रूप से पुराने योद्धा ने एक पत्थर से दो निशाने लगाने में कामयाब रहे। पहला लोगों को पायलट के "विश्वासघात" के बारे में याद दिलाकर, और दूसरा राजे के केस को कमजोर करते हुए, जो उनकी सत्ता में वापसी में मुख्य बाधा थी।