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चीन के साथ रिश्ते: Modi 3.0 में नीति और नीयति में कितना बदलाव देखने को मिलेगा?

सभी के मन में सवाल है कि चीन के साथ भारत के रिश्ते इस बार कितने बदलने वाले हैं, आखिर नीति और नीयति में कितना बदलाव देखने को मिलेगा।
Written by: शुभजीत रॉय | Edited By: Sudhanshu Maheshwari
नई दिल्ली | Updated: June 21, 2024 16:32 IST
चीन के साथ रिश्ते  modi 3 0 में नीति और नीयति में कितना बदलाव देखने को मिलेगा
मोदी की चीन नीति डीकोड
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता पर काबिज जरूर हो गए हैं, लेकिन इस बार उन्हें वैसा जनादेश नहीं मिला जिसे मजबूत सरकार का तमगा दिया जा सके। इस बार की सरकार गठबंधन वाली है जहां पर सहयोगियों पर निर्भर रहना भी जरूरी रहेगा। ऐसे में इस गठबंधन वाली सरकार की वजह से विदेश नीति पर भी इसका असर दिख सकता है। इसी कड़ी में सभी के मन में सवाल है कि चीन के साथ भारत के रिश्ते इस बार कितने बदलने वाले हैं, आखिर नीति और नीयति में कितना बदलाव देखने को मिलेगा।

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बयानों की राजनीति, रिश्तों में आएगा सुधार?

अब अभी तक कोई बड़ा फैसला नहीं हुआ है, लेकिन तीन और चार जुलाई को SCO समिट जरूर होने वाला है जहां पर दोनों भारत और चीन उपस्थित रहेंगे। अब मोदी और जिनपिंग की मुलाकात होती है या नहीं, इस पर सस्पेंस है, लेकिन दोनों ही नेताओं के पुराने बयान कुछ सुधार की उम्मीद जरूर जगा रहे हैं। असल में लोकसभा चुनाव के वक्त पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू में चीन के साथ रिश्ते पर बयान दिया था। पीएम मोदी ने कहा था कि चीन और भारत के मजबूत रिश्ते सिर्फ दो देशों के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए जरूरी है। मुझे पूरी उम्मीद है कि सकारात्मक द्विपक्षीय वार्ता के जरिए मिलिट्री और कूटनीतिक स्तर पर हम शांति स्थापित कर पाएंगे और बॉर्डर पर स्थिति सुधरेगी।

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पीएम मोदी के उस बयान का चीन ने भी स्वागत किया था। चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत और चीन के रिश्ते सीमा विवाद से ज्यादा बड़े हैं। सीमा को लेकर जो भी विवाद चल रहे हैं, उन्हें सुलझाने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर लगातार बातचीत चल रही है, सकारात्मक परिणाम दिख रहे हैं। अब यह बयान ही इस समय बदले हुए रिश्ते का आधार बन सकते हैं।

ताइवान को लेकर भारत का रुख, चीन असहज

वैसे सीमा विवाद को अगर छोड़ दिया जाए तो ताइवान के साथ भारत कैसे रिश्ते रखता है, उसका असर भी चीन के साथ रिश्तों पर पड़ने वाला है। ताइवान को चीन अपना हिस्सा बताता है, दूसरी तरफ खुद ताइवान अपने आप को स्वतंत्र देश घोषित कर चुका है। भारत की बात करें तो उसने ताइवान के साथ अपने रिश्तों में एक संतुलन बनाकर चला है। आधिकारिक तौर पर दोनों देशों के बीच कोई कूटनीतिक रिश्ते देखने को नहीं मिलते हैं, लेकिन शिक्षा और संस्कृति जैसे क्षेत्र में जरूर साथ में काम किया जा रहा है।

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लेकिन इस बार पीएम मोदी की जीत के बाद जिस तरह से ताइवान ने भी बधाई संदेश दिया और मोदी ने भी उस पर प्रतिक्रिया दी, इससे चीन खुश नजर नहीं आया। असल में जून 5 को ताइवान के राष्ट्रपति विलियम लाई ने पीएम मोदी की जीत पर कहा कि वे ताइवान-भारत के रिश्ते के और ज्यादा मजबूत होने की उम्मीद करते हैं, आशा करते हैं कि ट्रेड, टेक्नोलॉजी और दूसरे सेक्टर में सहयोग बढ़ेगा। पीएम मोदी ने भी वही उम्मीद जताते हुए शुक्रिया अदा कर दिया। बस उसी औपचारिकता पर चीन भड़क गया और उसने एक बयान जारी किया।

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चीन ने दो टूक कहा कि भारत को वन चाइना पॉलिसी से पीछे नहीं हटना चाहिए। इससे पहले भी ताइवान के साथ किसी भी तरह की बातचीत को चीन ने पसंद नहीं किया है। वो इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ मानता है। ऐसे में भारत का ताइवान को लेकर क्या रुख रहता है, उसका असर चीन पर भी पड़ने वाला है। वैसे पिछले कुछ दिनों में एक और कूटनीतिक रिश्ता बनता दिखा है जिसने चीन को कुछ असहज कर दिया है।

तिब्बत को लेकर भारत से नाराज चल रहा चीन

असल में अमेरिकी कांग्रेस के एक 7 सदस्यी कमेटी ने दलाई लामा से धर्मशाला में मुलाकात की थी। उस मुलाकात के दौरान पूर्व हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ने साफ शब्दों में कहा कि तिब्बत के अध्यात्मिक गुरू की लैगेसी हमेशा जिंदा रहने वाली है और शी जिनपिंग को कोई याद नहीं करेगा, उन्हें कोई किसी चीज के लिए क्रेडिट नहीं देगा। बड़ी बात यह रही कि उसी कमेटी ने बाद में पीएम मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से बात की। क्या बात हुई साफ नहीं, लेकिन चीन उससे नाराज हो गया था।

चीन ने जोर देकर कहा कि Xizang को उसका हिस्सा ही माना जाए और अमेरिका अपनी प्राथमिकताओं और सिद्धांतों से पीछे ना हटे। समझने वाली बात यह है कि चीन तिब्बत को Xizang बोलता है और उसे अपने देश का ही हिस्सा मानता है। अब यह सारे वो मुद्दे हैं जो भारत और चीन के रिश्ते में दरार पैदा करने का काम करते हैं। वहां भी सीमा विवाद को लेकर सबसे ज्यादा तनाव देखने को मिलता है।

गठबंधन मजबूरियां, चीन को लेकर मोदी नीति कैसी?

ऐसा कहा जा रहा है कि अगर इस बार प्रचंड बहुमत पीएम मोदी को मिल जाती तो सबसे पहले चीन-भारत के सीमा विवाद पर फैसला होता, निर्णायक नीति पर काम किया जा सकता था। लेकिन कमजोर जनादेश और गठबंधन मजबूरियों की वजह से अब प्राथमिकताएं कुछ बदल गई हैं। अब इन बदली हुई प्राथमिकताओं में नीति और नीयति में कितना बदलाव देखने को मिलेगा, Modi 3.0 में यह देखना दिलचस्प रहेगा।

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