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चीन ने चांद के दुर्गम क्षेत्र के लिए लॉन्च किया मून मिशन, जानें आखिर क्यों खास है ये प्रोजेक्ट

China Moon Mission: भारत के चंद्रयान 3 की सफलता के बाद अब चीन ने चांद पर एक नया मिशन लॉन्च किया है। चीन इससे पहले चांद से जुड़े कई मिशन में सफल हो चुका है।
Written by: न्यूज डेस्क
नई दिल्ली | Updated: May 04, 2024 19:33 IST
चांद पर रिसर्च में एक कदम आगे बढ़ान वाला है चीन (सोर्स - AP)
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China Moon Mission: चीन ने हाल ही में अपना नया मून मिशन कार्यक्रम लॉन्च किया है। इसके तहत 3मई को पड़ोसी मुल्क ने शक्तिशाली रॉकेट लॉन्च किया था। अगर यह मिशन सफल होता है, यह चंद्रमा के उस हिस्से से नमूने वापस लाने वाला दुनिया का पहला मिशन होगा जिसे पृथ्वी कभी नहीं देख पाती है, और यह चीन के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट माना जा रहा है।

चीन द्वारा लॉन्च किया गया ये अंतरिक्ष यान मूल रूप से पिछले मिशन चांग’ई 5 के लिए बैकअप के रूप में बनाया गया था, जो 2020 में चंद्रमा के पास से 1.73 किलोग्राम चंद्र रेजोलिथ यानी मिट्टी लेकर आया था। चांग’ई 6 मिशन के चार अलग-अलग अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के दूर वाले भाग से 2 किलोग्राम तक रेगोलिथ को सफलतापूर्वक वापस लाने के लिए कोऑर्डिनेशन में काम करेंगे।

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साल 1959 में जब सोवियत संघ का लूना 3 प्रोब चंद्रमा के सुदूर हिस्से की पहली तस्वीरें लाया था, तो उन्होंने भारी गड्ढे वाली सतह दिखाई थी, चांग’ई 6 का लक्ष्य सबसे पुराने चंद्र प्रभाव क्रेटर, दक्षिणी ध्रुव-एटकेन बेसिन से नमूने कलेक्ट करना है।

कहां पहुंचेगा चीन का यह मिशन

चांग’ई 6 मिशन आंशिक रूप से चांद के क्षेत्र के अंधेरे गड्ढों में पानी और बर्फ की खोज और भविष्य के ठिकानों से संबंधित है। जिससे चीन को यह जानने के करीब पहुंचेगा कि चांद का सुदूर भाग किस चीज से बना है और इसकी उम्र क्या है। इससे हमें सौर मंडल के प्रारंभिक इतिहास को समझने में मदद मिल सकेगी।

नमूने लेकर वापस धरती पर आएगा मॉड्यूल

चांग’ई 6 मिशन रचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक उदाहरण है। इस मिशन में फ्रांस, इटली, पाकिस्तान और स्वीडन द्वारा प्रदान किए गए उपकरण शामिल हैं। इस मिशन में पाकिस्तान का एक उपग्रह भी शामिल है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चांग'ई-6 53 दिनों तक चलने वाला मिशन है। चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद, मिशन का ऑर्बिटर उपग्रह का चक्कर लगाएगा जबकि इसका लैंडर चंद्रमा की सतह पर 2,500 किलोमीटर चौड़े दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन में उतरेगा।

जानकारी के मुताबिक स्कूपिंग और ड्रिलिंग के माध्यम से नमूने कलेक्ट करने के बाद, लैंडर एक एसेंट वाहन लॉन्च करेगा, जो नमूनों को ऑर्बिटर के सर्विस मॉड्यूल में स्थानांतरित करेगा। इसके बाद यह मॉड्यूल पृथ्वी पर लौट आएगा।

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