NDA vs INDIA: ये कैसा गठबंधन! मोदी के सामने एकता दिखाने में फ्लॉप होता क्यों दिख रहा 'इंडिया', यहां समझिए इनसाइड स्टोरी
NDA vs INDIA: लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Chunav 2024) के लिए तय कार्यक्रम के तहत अब तक 4 फेज की वोटिंग के बाद 380 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है और अब महज 3 चरणों की वोटिंग होनी है। इस बीच एनडीए के लिए 400 सीटें जीतने का दावा करने वाले पीएम मोदी ने वाराणसी लोकसभा सीट से तीसरी बार अपना नामांकन दाखिल कर दिया है, दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी रायबरेली सीट पर अपनी दावेदारी ठोक दी है।
दोनों गुटों के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं के सियासी कदम के बीच सवाल, पीएम मोदी के खिलाफ बने, इंडिया गठबंधन की एकजुटता को लेकर उठने लगे हैं। दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी और एनडीए गुट पूरी सक्षम चुनावी मशीनरी से विपक्षी दलों का सामना कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि एनडीए के नेता भी खुलकर एक दूसरे को डिफेंड करते नजर आ जाते हैं। नीतीश कुमार और चिराग पासवान इस दावे का एक बड़ा उदाहरण भी हैं।
अहम मौके चूक रहे हैं INDIA गठबंधन के नेता!
एक तरफ जहां पीएम मोदी और उनके सहयोगियों की मजबूत मशीनरी है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा इंडिया गठबंधन है, जो कि लगातार अपनी एकता को लेकर सवालों का सामना कर रहा है। इसकी वजह यह है कि जब अहम मौकों पर इंडिया गठबंधन के घटक दलों को एकता दिखानी होती है, तो इसके नेता मौके चूक जाते हैं और यह एक बार फिर साबित होता दिख रही है।
लोकसभा चुनाव के लिए वाराणसी लोकसभा सीट से जब तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना नामांकन करने काशी पहुंचे तो उनके नामांकन में एनडीए गुट ने शक्ति प्रदर्शन किया। मोदी के नामांकन के लिए एनडीए के साथी पूर्व पश्चिम उत्तर और दक्षिण सभी क्षेत्रों से पहुंचे थे। मोदी के नामांकन के लिए एनडीए के 26 नेता काशी में मौजूद रहे हैं। इनमें से 16 राष्ट्रीय अध्यक्ष भी शामिल थे।
काशी से किया शक्ति प्रदर्शन
इन नेताओं की बात करें तो इसमें रिपल्बिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रमुख रामदास अठावले से लेकर, टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू, जनसेना पार्टी अध्यक्ष पवन कल्याण, लोजपा प्रमुख चिराग पासवान, ओपी राजभर, जयंत चौधरी, डॉ.संजय निषाद, उपेंद्र कुशवाहा, पशुपति पारस, यूपीपीएल प्रमुख प्रमोद बोरो, अंबुमणि रामदास, तुषार वेलपल्ली, जीके वासन शामिल थे।
इन नेताओं की मौजूदगी के क्या हैं मायने
इसके अलावा मोदी के नामांकन के लिए सीएम योगी के अलावा महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और मेघालय के सीएम कॉनराड संगमी भी मौजूद थे। वहीं, तमिलनाडु में बीजेपी के मशहूर नेता देवनाथ यादव से लेकर, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल और अतुल बोरा भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री के नामांकन में इन नेताओं का शामिल होना काफी अहम है। यह दिखाता है कि बीजेपी की लीडरशिप पर एनडीए के सभी नेताओं को भरोसा है, हालांकि कुछ मतभेद हैं लेकिन फिर भी सभी एक मंच पर खड़े होने में सभी पूरी तरह सहज हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार दावा कर रहे हैं कि इस बार उनके नेतृत्व में एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीतेगा। चुनावी राजनीति में अपने गठबंधन की एकता के जरिए NDA ने यह भी दिखाने की कोशिश की है कि कैसे विपक्षी दलों के बिखराव के बीच अलग-अलग सोच के बावजूद वे सभी पीएम मोदी के साथ खड़े हैं।
इंडिया गठबंधन की एकता पर सवाल
अब सवाल यह है कि इंडिया गठबंधन की एकता कहां है? पिछले लगभग एक साल से विपक्षी दलों के नेता एकता का दावा कर रहे हैं लेकिन वह एकता कभी एनडीए की तरह एकजुट दिख नहीं पाई। पीएम मोदी की हर रैली में एनडीए के सभी स्थानीय नेता और बड़े चेहरे भी होते हैं लेकिन इंडिया गठबंधन की साझा रैलियां इतनी कम हुई हैं कि हथेलियों पर गिनी जा सकती हैं। कन्नौज में अखिलेश यादव के लिए संजय सिंह और राहुल गांधी ने प्रचार तो किया था, लेकिन वह एकता के प्रदर्शन का एक अपवाद सा नजर आता है।
राहुल के साथ क्यों नहीं दिखते 'इंडिया' के नेता
माना जा रहा था कि राहुल गांधी अमेठी लौटेंगे, लेकिन राहुल रायबरेली से चुनावी मैदान में उतर गए, जिसकी घोषणा भी आखिरी दिन ही की गई थी। राहुल के अमेठी से न लड़ने के चलते कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा होने तक की बातें कहीं गई थीं। ऐसे में राहुल चाहते तो वे अमेठी से नामांकन के लिए प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा के साथ जा सकते थे लेकिन राहुल क्या, किशोरी लाल के साथ तो गांधी परिवार का कोई नेता नहीं गया।
इसके अलावा पूरी कांग्रेस के पास इंडिया गठबंधन की एकता दिखाने का मौका था। कांग्रेस रायबरेली से राहुल के नामांकन के दौरान इंडिया गठबंधन के नेताओं को शक्ति प्रदर्शन के लिए इनवाइट कर सकती थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसकी एक वजह यह रही कि राहुल की उम्मीदवारी पर फैसला ही अंतिम क्षणों में लिया गया।
भले ही यह दावा किया जाता रहे कि राहुल की उम्मीदवारी एक रणनीति का हिस्सा थी, लेकिन राहुल के नामांकन में इंडिया गठबंधन के नेताओं की मौजूदगी होती तो यह दावा कुछ हद तक सही साबित हो सकता है, लेकिन ऐसा न होने पर सवाल उठ रहे हैं कि जब घटक दल सीधे तौर पर एक साथ नहीं दिख सकते, तो पीएम मोदी जैसे नेता के खिलाफ चुनावी ताकत कैसे दिखाएंगे?
केजरीवाल और ममता बनर्जी ने भी बना रखी है दूरी
दिल्ली के मुख्यमंत्री को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग के केस में गिरफ्तार किया था, उन्हें हाल ही में चुनाव प्रचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। केजरीवाल के जेल से बाहर आए हफ्ता भर होने को है, लेकिन राहुल गांधी के साथ केजरीवाल नहीं दिखे हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने चुनाव के पहले ही कांग्रेस से दूरी बना ली थी और यह तक कह दिया था कि कांग्रेस को वो एक भी सीट नहीं देंगी और पार्टी 40 सीटें भी पूरे देश में मुश्किल से नहीं जीत पाएगी।