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इतिहास: इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव हारने वाली अकेली प्रधानमंत्री

जून 1975 में राजनारायण की याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने 1971 के रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को रद्द कर दिया था। उसके बाद ही 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी।
Written by: अनिल बंसल | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 09, 2024 14:10 IST
इंदिरा गांधी। फाइल फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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देश के राजनीतिक इतिहास में इंदिरा गांधी के अलावा कोई भी प्रधानमंत्री लोकसभा चुनाव नहीं हारा। इंदिरा गांधी 1977 में आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनाव में अपनी रायबरेली सीट से जनता पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण से हार गई थीं। इस चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। तब उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 85 सीट थी और बिहार में 54 सीट।

दरअसल जून 1975 में राजनारायण की ही याचिका पर इलाहबाद हाईकोर्ट ने 1971 के रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा निर्वाचन को रद्द कर दिया था। उसके बाद ही 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। रायबरेली से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1977 में हराने के कारण राजनारायण उस दौर के नायक बन गए थे। उनका नारा था- पहले हराया कोर्ट से, फिर हराया वोट से।

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इससे पहले जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री, दोनों का ही प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए निधन हुआ था। इंदिरा गांधी की हार के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। वे सूरत से लोकसभा सदस्य थे। लेकिन अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही उन्हें 1979 में इस्तीफा देना पड़ा था। उनके बाद चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री रहते बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते।

इंदिरा गांधी वैसे तो 1978 में जनता पार्टी के शासन में ही कर्नाटक की चिकमगलूर सीट से लोकसभा उपचुनाव जीत गई थीं। लेकिन 1980 में जब वे फिर प्रधानमंत्री बनीं तो आंध्र प्रदेश की मेडक और उत्तर प्रदेश की रायबरेली दोनों सीटों से चुनाव जीती थीं। अक्तूबर 1984 में प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान ही उनकी हत्या कर दी गई थी। इंदिरा गांधी के बाद राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते 1984 और 1989 का चुनाव अमेठी सीट से लड़ा और जीते। जिस समय 1991 में उनकी हत्या हुई तब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री रहते चंद्रशेखर भी 1991 का चुनाव अपनी बलिया सीट से जीत गए थे।

पीवी नरसिंह राव जब 1991 में प्रधानमंत्री बने तो वे संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने आंध्र की नांदयाल सीट से पहले उपचुनाव जीता और फिर 1996 में आम चुनाव। लेकिन 1996 में वे सत्ता से हट गए। संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी तो एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। वे तब कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे राज्यसभा सदस्य बने। लोकसभा उपचुनाव उन्होंने नहीं लड़ा। एक साल के भीतर ही उन्हें पद से हटना पड़ा। उनकी जगह प्रधानमंत्री बने इंदर कुमार गुजराल भी राज्यसभा के सदस्य ही रहे।

संयुक्त मोर्चे की सरकार से कांगे्रस ने 1998 में समर्थन वापस ले लिया तो सरकार गिर गई। मध्यावधि चुनाव हुआ और 1998 में लखनऊ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद संभाला। प्रधानमंत्री रहते ही वाजपेयी 2004 में लखनऊ से लोकसभा चुनाव जीते पर राजग इस चुनाव में सत्ता से बाहर हो गया। वाजपेयी के बाद 2004 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। पर वे लगातार राज्यसभा में ही रहे।

दरअसल 1999 में उन्होंने दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा चुनाव तो लड़ा था पर वे हार गए थे। प्रधानमंत्री पद से 2014 में हटने के बाद भी वे राज्यसभा के सदस्य रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव जीतकर 2014 में प्रधानमंत्री बने और 2019 में भी वाराणसी से ही लोकसभा के सदस्य चुने गए। तीसरी बार भी लोकसभा चुनाव वे वाराणसी से ही लड़ रहे हैं।

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