क्या गुना में 2019 का परिणाम दोहराएगा? सिंधिया के सामने फिर 'यादव', KP जैसा ही है मामला
Guna Lok Sabha Seat: ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट से बीजेपी के उम्मीदवार हैं। साल 2019 में वह बतौर कांग्रेस प्रत्याशी यहां से चुनाव लड़े थे लेकिन बीजेपी के केपी यादव से उन्हें एक लाख वोटों से भी ज्यादा के अंतर से मात दी थी। केपी यादव कभी कांग्रेस में रहे थे और उन्होंने 2019 का चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा था।
2024 के रण में केपी यादव तो चुनाव मैदान में नहीं हैं लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला फिर यादव समुदाय से आने वाले एक प्रत्याशी से ही हैं। खास बात ये है कि जब सिंधिया कांग्रेस के प्रत्याशी थे तब उनका मुकाबला कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आने वाले केपी यादव से हुआ था। इस बार सिंधिया बीजेपी में हैं और अब उनका मुकाबला बीजेपी छोड़ कांग्रेस में जाने वाले राव यादवेंद्र सिंह यादव से हैं।
कांग्रेस ने यादव प्रत्याशी पर क्यों लगाया दांव?
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, गुना में यादव समुदाय की तादद चार लाख के ज्यादा है। यादवेंद्र सिंह यादव पिछले साल एमपी में हुए विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के अशोक नगर जिला पंचायत अध्यक्ष हुए करते थे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर मुंगावली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और वो सिर्फ 5422 वोट से बीजेपी के बृजेंद्र सिंह यादव से हार गए।
क्या यादवेंद्र को टिकट देने से उत्साहित हैं कांग्रेसी?
ऐसा नहीं है कि यादवेंद्र को टिकट मिलने पर कांग्रेस के सभी नेता उत्साहित हैं। गुना कांग्रेस के एक सीनियर नेता सवाल खड़े कहते हैं कि आप ऐसा नेता पर कैसे विश्वास कर सकते हैं जिसकी मां, भाई और परिवार के अन्य सदस्य बीजेपी में हैं? क्या उन्होंने कांग्रेस पार्टी के इन नेताओं के बारे में नहीं सोचा जो 15 सालों से बीजेपी से फाइट कर रहे हैं?
द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में वो कहते हैं कि राज्य में अब एक यादव सीएम है। क्या यादव समुदाय एक सीएम के कहने पर वोट करेगा या फिर एक छोटे पंचायत लीडर के लिए वोट करेगा। वो कहते हैं कि हमें अरुण यादव जैसे पूर्व मंत्री को टिकट देना चाहिए था। पाला बदलने वाले को टिकट देना एक गलती साबित होगा।
हालांकि पार्टी के फैसले का बचाव करते हुए कांग्रेस के एक अन्य सीनियर नेता कहते हैं कि 2019 में सिंधिया को गुना में एक लोकल ने हराया था। गुना में यादव वोटर्स की अच्छी संख्या है, जिससे केपी यादव को मदद मिली थी। हमें उम्मीद है कि यादवेंद्र सिंह बीजेपी के वोट बैंक में भी सेंध लगाने में सफल रहेंगे। अरुण यादव के नाम पर वो कहते हैं कि उनका बेस खरगोन में है, वो सिंधिया के गढ़ में शायद ही उनका सामना कर पाते।
सिंधिया नाम घोषित होने से पहले मेहनत में जुटे
साल 2019 की हार से सबक लेते हुए सिंधिया इस बारे गुना में प्रत्याशी के तौर पर अपने नाम के ऐलान से पहले से ही घूम रहे हैं। वह विभिन्न समुदायों के कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। सिंधिया यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं कि अब वह पहले की तरह 'महाराज' नहीं बल्कि एक मेहनती कार्यकर्ता हैं।
हालांकि सिंधिया के लिए अच्छी बात ये है कि वह पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार गुना में काफी बेहतर स्थिति में मालूम पड़ते हैं। उनकी मदद से बीजेपी ने इस इलाके में 2018 के मुकाबले अपना ग्राफ बढ़ाया है। बीजेपी यहां की 34 विधानसभा सीटों में अपनी टैली 7 से 18 विधानसभा सीटों तक पहुंचाने में सफल रही।