टिकट मिलने के बाद भी चुनाव लड़ने को तैयार नहीं कांग्रेस नेता, इस राज्य में 35 में से 19 प्रत्याशियों ने ही लड़ा चुनाव, पुराने गढ़ में मिली सिर्फ एक सीट
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का हाल इस कदर हो गया है कि खुद उसकी ही पार्टी के नेताओं को अपने शीर्ष नेतृत्व और पार्टी पर ही भरोसा नहीं रह गया है। इसी वजह से पूर्वोत्तर के एक राज्य में पार्टी ने विधानसभा के चुनाव में 35 प्रत्याशियों को टिकट दिया था। लेकिन उसमें से केवल 19 प्रत्याशियों ने ही चुनाव लड़ा और उसमें से केवल एक उम्मीदवार ही चुनाव जीतने में कामयाब रहा। यानी पुरे राज्य में किसी तरह से पार्टी का खाता खुल पाया है।
देश में हुए लोकसभा चुनाव के साथ ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए हैं। इसमें से ही पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव हुए हैं। जहां कि 60 विधानसभा में से कांग्रेस को महज 1 सीट पर जीत मिली है। जबकि पिछली बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 4 सीटों पर जीत मिली थी। यानी पांच साल में पार्टी का 1 विधायक केवल जीत पाया है।
इस बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने राज्य की 60 विधानसभा में से 35 सीटों पर पार्टी ने टिकट जारी किया था। लेकिन 35 सीटों पर टिकट जारी होने के बाद बाद भी पार्टी के 10 प्रत्याशियों ने नामांकन ही नहीं किया। जबकि 5 ने नामांकन दाखिल करने के बाद नाम वापस ले लिया और एक प्रत्याशी ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया।
पार्टी के 9 उम्मीदवार ऐसे थे जिन्होंने टिकट लेकर भी चुनाव नहीं लड़ा। इस वजह से प्रदेश कांग्रेस ने सभी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए 6 साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। पार्टी के अनुसार इन प्रत्याशियों ने पार्टी को चुनाव नहीं लड़ने की सूचना नहीं दी थी।
2 जून को आए प्रदेश विधानसभा के नतीजे में 60 विधानसभा में से कांग्रेस को महज 1 सीट पर जीत मिली जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी के खाते में 46 सीटें गई है। बीजेपी ने इस बार चुनाव राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के नेतृत्व में लड़ा था। 10 सीटों की स्थिति तो ऐसी थी कि बीजेपी के 10 उम्मीदवार बिना चुनाव लड़े ही निर्विरोध चुनाव जीत गए। यानी 60 में से 50 सीटों पर ही मतदान हुआ था।
यानी 35 में से 19 उम्मीदवारों ने ही नामांकन दाखिल किया। जिसमें से 1 प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाया है। यानी की पार्टी को चुनाव जीतना तो प्राथमिकता बाद में है पहले संगठन और पार्टी को एकजुट करना सबसे बड़ी चुनौती है।