Jansatta Editorial: दिल्ली में पानी की समस्या से पार पाने के लिए जुर्माना की जगह लोगों में संवेदना पैदा करने की जरूरत
यह देख कर अक्सर हैरानी होती है कि जिन समस्याओं को सामान्य नागरिकबोध से सुलझाया जा सकता है, उसके लिए भी अदालतों को फटकार लगानी पड़ती, सरकारों को कड़े दंड का प्रावधान करना पड़ता है। दिल्ली में पानी की समस्या से पार पाने के लिए दिल्ली सरकार ने बेवजह पानी बहाने वालों पर दो हजार रुपए का जुर्माना लगाने का आदेश दिया है।
इसके लिए जल बोर्ड को दो सौ टीमें बनाने को कहा गया है। प्राय: देखा जाता है कि लोग पाइप लगा कर गाड़ियों की धुलाई करते और देर तक पानी बहाते रहते हैं। इसी तरह टंकियों में पानी भरने के बाद बहता रहता है और लोग उसे रोकने का कोई उपाय नहीं करते। इस समय जब दिल्ली में बहुत सारे लोग पीने के पानी को तरस रहे हैं, कुछ लोग मनमानी पानी बहाते रहते हैं। ऐसे लोगों पर नकेल कसना जरूरी है। मगर जुर्माने के भय से कितने लोगों को अपनी नागरिक जिम्मेदारी का अहसास हो पाएगा, कहना मुश्किल है।
दिल्ली सहित तमाम महानगरों में गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत हो जाती है। सभी को जरूरत भर का पानी उपलब्ध कराना कठिन हो जाता है। इसे लेकर सरकारें और सामाजिक संगठन, रिहाइशी कालोनियों के प्रबंधन लोगों से पानी का सोच-समझ कर इस्तेमाल करने की अपील करते रहते हैं। महानगरों में माना जाता है कि पढ़े-लिखे और जागरूक लोग रहते हैं, वे ऐसी समस्याओं का समाधान खुद निकालेंगे।
मगर विडंबना है कि पढ़े-लिखे और जागरूक माने जाने वाले लोग ही गाड़ियों की धुलाई, बागों की सिंचाई और नहाने-धोने में सबसे अधिक पानी की बर्बादी करते हैं। दिल्ली जल बोर्ड के निगरानी दल ऐसे लोगों पर कितनी सख्ती कर पाएंगे, देखने की बात है। वे बाहर बहते पानी पर तो फिर भी नजर रख लेंगे, पर घर के भीतर जो लोग बेवजह पानी बहाते रहते हैं, उनका हाथ वे कैसे पकड़ पाएंगे। बर्तन और कपड़े धोने में जो मनमानी पानी बहाया जाता है, उस पर कैसे रोक लगेगी। दरअसल, इसके लिए लोगों में यह संवेदना पैदा करना जरूरी है कि पानी की एक-एक बूंद कुदरत को निचोड़ कर मिलती है।