scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

Jansatta Editorial: अर्थव्यवस्था में कायम असंतुलन दूर करने का जब तक प्रयास नहीं होगा, महंगाई पर काबू पाना कठिन

महंगाई को सहनशील स्तर पर लाने के लिए जरूरी है कि बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़े, मगर बेरोजगारी बढ़ने, प्रति व्यक्ति आय घटने और क्रयशक्ति छीजती जाने की वजह से बाजार में संतुलन नहीं बन पा रहा।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 16, 2024 07:44 IST
jansatta editorial  अर्थव्यवस्था में कायम असंतुलन दूर करने का जब तक प्रयास नहीं होगा  महंगाई पर काबू पाना कठिन
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
Advertisement

सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए कई वर्ष से प्रयास कर रही है, मगर इसमें स्थिरता नहीं आ पा रही। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई पांच फीसद के नीचे रखने की मंशा से कई बार बैंक दरों में बढ़ोतरी की और अभी तक वह उनमें कटौती करने के बारे में सोच भी नहीं पा रहा। खुदरा महंगाई पिछले महीने बढ़ कर 7.74 फीसद पर पहुंच गई।

Advertisement

अब थोक महंगाई अपने तेरह महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। पिछले महीने यह 1.26 फीसद दर्ज हुई। पिछले वर्ष मार्च में यह 1.41 फीसद थी। थोक महंगाई पिछले दो महीने से लगातार बढ़ रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का कहना है कि अप्रैल महीने में खाद्य वस्तुओं, बिजली, कच्चे तेल तथा प्राकृतिक गैस, खाद्य उत्पाद विनिर्माण और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों में उत्पाद की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से थोक महंगाई बढ़ी है।

Advertisement

इस स्थिति में कब तक सुधार की संभावना है, इसे लेकर कोई आकलन पेश नहीं किया गया है। कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में कब नरमी दर्ज होगी, कहना मुश्किल है। विश्व में जिस तरह संघर्ष की स्थितियां और मंदी का दौर है, उसमें कीमतों में कमी को लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता।

विनिर्माण और बिजली क्षेत्र में महंगाई बढ़ने की वजहें भी साफ हैं। कोयला उत्पादन क्षेत्र में विकास दर सुस्त बनी हुई है। कोयला आयात बढ़ा है। ऐसे में बिजली उत्पादन पर असर पड़ना स्वाभाविक है। विनिर्माण में लागत पर खुदरा महंगाई का भी असर होता है। कोयला और बिजली की कीमतें बढ़ने से भी इस क्षेत्र में महंगाई बढ़ती है। इससे जाहिर है कि अभी आने वाले समय में जल्दी इस स्थिति में किसी सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।

Advertisement

महंगाई का एक बड़ा कारण विकास दर में असंतुलन भी है। कुछ क्षेत्रों में विकास दर काफी ऊंची है, तो कुछ में नीचे का रुख बना हुआ है। थोक महंगाई बढ़ने का अर्थ है कि खुदरा महंगाई पर उसका सीधा असर पड़ेगा। अगर वस्तुओं के उत्पादन पर लागत बढ़ेगी, तो खुदरा वस्तुओं की कीमतें उसके अनुपात में कहीं अधिक बढ़ी हुई दर्ज होंगी।

Advertisement

फिर, चूंकि महंगाई का आकलन थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर किया जाता है, वास्तविक महंगाई उससे कहीं अधिक होती है। इसीलिए अक्सर जब सरकारी आंकड़ों में महंगाई का स्तर घटा हुआ दर्ज होता है, तब भी आम उपभोक्ता कोई राहत महसूस नहीं करता।

आम चुनाव की सरगर्मी में विपक्षी दलों ने महंगाई और बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाया हुआ है। इसलिए थोक महंगाई के ताजा आंकड़े एक बार फिर उन्हें सत्तापक्ष की आलोचना का अवसर देंगे। यह एक अजीब तरह का असंतुलन है कि देश की अर्थव्यवस्था का रुख ऊपर की तरफ है, जबकि महंगाई एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसकी कुछ वजहें साफ हैं।

महंगाई को सहनशील स्तर पर लाने के लिए जरूरी है कि बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़े, मगर बेरोजगारी बढ़ने, प्रति व्यक्ति आय घटने और क्रयशक्ति छीजती जाने की वजह से बाजार में संतुलन नहीं बन पा रहा। जिस मौसम में नई फसल की आवक तेज होती है, उसमें भी खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें ऊंची रहती हैं। दूसरी तरफ किसान फसलों की वाजिब कीमत न मिल पाने से परेशान दिखते हैं। जब तक अर्थव्यवस्था में कायम असंतुलन दूर करने का प्रयास नहीं होता, महंगाई पर काबू पाना कठिन ही बना रहेगा।

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो