Jansatta Editorial: अर्थव्यवस्था में कायम असंतुलन दूर करने का जब तक प्रयास नहीं होगा, महंगाई पर काबू पाना कठिन
सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए कई वर्ष से प्रयास कर रही है, मगर इसमें स्थिरता नहीं आ पा रही। रिजर्व बैंक ने खुदरा महंगाई पांच फीसद के नीचे रखने की मंशा से कई बार बैंक दरों में बढ़ोतरी की और अभी तक वह उनमें कटौती करने के बारे में सोच भी नहीं पा रहा। खुदरा महंगाई पिछले महीने बढ़ कर 7.74 फीसद पर पहुंच गई।
अब थोक महंगाई अपने तेरह महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। पिछले महीने यह 1.26 फीसद दर्ज हुई। पिछले वर्ष मार्च में यह 1.41 फीसद थी। थोक महंगाई पिछले दो महीने से लगातार बढ़ रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का कहना है कि अप्रैल महीने में खाद्य वस्तुओं, बिजली, कच्चे तेल तथा प्राकृतिक गैस, खाद्य उत्पाद विनिर्माण और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों में उत्पाद की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से थोक महंगाई बढ़ी है।
इस स्थिति में कब तक सुधार की संभावना है, इसे लेकर कोई आकलन पेश नहीं किया गया है। कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में कब नरमी दर्ज होगी, कहना मुश्किल है। विश्व में जिस तरह संघर्ष की स्थितियां और मंदी का दौर है, उसमें कीमतों में कमी को लेकर कोई दावा नहीं किया जा सकता।
विनिर्माण और बिजली क्षेत्र में महंगाई बढ़ने की वजहें भी साफ हैं। कोयला उत्पादन क्षेत्र में विकास दर सुस्त बनी हुई है। कोयला आयात बढ़ा है। ऐसे में बिजली उत्पादन पर असर पड़ना स्वाभाविक है। विनिर्माण में लागत पर खुदरा महंगाई का भी असर होता है। कोयला और बिजली की कीमतें बढ़ने से भी इस क्षेत्र में महंगाई बढ़ती है। इससे जाहिर है कि अभी आने वाले समय में जल्दी इस स्थिति में किसी सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।
महंगाई का एक बड़ा कारण विकास दर में असंतुलन भी है। कुछ क्षेत्रों में विकास दर काफी ऊंची है, तो कुछ में नीचे का रुख बना हुआ है। थोक महंगाई बढ़ने का अर्थ है कि खुदरा महंगाई पर उसका सीधा असर पड़ेगा। अगर वस्तुओं के उत्पादन पर लागत बढ़ेगी, तो खुदरा वस्तुओं की कीमतें उसके अनुपात में कहीं अधिक बढ़ी हुई दर्ज होंगी।
फिर, चूंकि महंगाई का आकलन थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर किया जाता है, वास्तविक महंगाई उससे कहीं अधिक होती है। इसीलिए अक्सर जब सरकारी आंकड़ों में महंगाई का स्तर घटा हुआ दर्ज होता है, तब भी आम उपभोक्ता कोई राहत महसूस नहीं करता।
आम चुनाव की सरगर्मी में विपक्षी दलों ने महंगाई और बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाया हुआ है। इसलिए थोक महंगाई के ताजा आंकड़े एक बार फिर उन्हें सत्तापक्ष की आलोचना का अवसर देंगे। यह एक अजीब तरह का असंतुलन है कि देश की अर्थव्यवस्था का रुख ऊपर की तरफ है, जबकि महंगाई एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसकी कुछ वजहें साफ हैं।
महंगाई को सहनशील स्तर पर लाने के लिए जरूरी है कि बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़े, मगर बेरोजगारी बढ़ने, प्रति व्यक्ति आय घटने और क्रयशक्ति छीजती जाने की वजह से बाजार में संतुलन नहीं बन पा रहा। जिस मौसम में नई फसल की आवक तेज होती है, उसमें भी खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें ऊंची रहती हैं। दूसरी तरफ किसान फसलों की वाजिब कीमत न मिल पाने से परेशान दिखते हैं। जब तक अर्थव्यवस्था में कायम असंतुलन दूर करने का प्रयास नहीं होता, महंगाई पर काबू पाना कठिन ही बना रहेगा।