Jansatta Editorial: भरतपुर में शौचालय की टंकी की सफाई के दौरान तीन युवकों की मौत, जिम्मेदार लोगों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत
इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि आधुनिक तकनीकी के जरिए जटिल कामों को भी आसान बनाने के इस दौर में कुछ लोगों को सीवर में या फिर शौचालय की टंकी में घुस कर उसकी सफाई करने के लिए उतारा जाता है और उनमें से कई मजदूर जहरीली गैस की चपेट में आकर मारे जाते हैं। गौरतलब है कि राजस्थान के भरतपुर में गुरुवार को शौचालय की टंकी की सफाई करने उतरे दो युवकों का दम घुटने लगा तो उन्होंने मदद के लिए आवाज लगाई।
उन्हें बचाने के लिए तीन अन्य युवक नीचे उतरे तो वे भी जहरीली गैस के कारण बेहोश हो गए। किसी तरह टंकी का एक हिस्सा तोड़ कर उन सबको बाहर निकाला गया, मगर तीन युवकों की जान चली गई। इसके बाद एक रस्म की तरह सरकार की ओर से मामले की जांच और पीड़ित परिवार को राहत प्रदान करने का निर्देश जारी किया गया, सहानुभूति जताई गई। मगर ऐसी घोषणाओं में शायद ही कभी ऐसी इच्छाशक्ति दिखती है कि सीवर या फिर शौचालय की टंकी की सफाई कराने वालों के जिम्मेदार लोगों को कठघरे में खड़ा किया जाए।
यह अफसोसनाक है कि आए दिन सीवर या शौचालय की टंकी की सफाई के दौरान मजदूरों की जान जाने की खबरें आती रहती हैं। पिछले लगभग एक महीने के दौरान सीवर की सफाई के दौरान कम से कम सात मजदूरों के मरने की घटनाएं हुईं। आंकड़ों के मुताबिक, हर वर्ष देश में इस तरह सौ से ज्यादा मजदूरों की मौत होती है।
दुनिया के विकसित देशों में जहां ऐसे कामों को मशीनों से कराए जाने की व्यवस्था बन चुकी है, वहीं भारत में इस मामले में कानूनों का पालन करने की तो दूर, किसी मजदूर को सीवर में उतारते हुए उन्हें कोई सुरक्षा उपकरण देना भी जरूरी नहीं समझा जाता। किसी मजदूर की मौत की घटना के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन की ओर से मुआवजे या राहत की घोषणा होती है, मगर ऐसा कोई उपाय नहीं निकाला जाता कि आगे इस तरह की घटना को पूरी तरह रोका जा सके।
आखिर इसके पीछे क्या कारण है कि निर्माण संबंधी भारी कामों में भी आधुनिक तकनीकी और मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, मगर सीवर या शौचालय की टंकी की सफाई के मामले में इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा जाता!