Jansatta Editorial: सुशील मोदी का असामयिक निधन भाजपा ही नहीं, बिहार की राजनीति के लिए भी बड़ी क्षति
बिहार में भाजपा का प्रमुख चेहरा थे। यह उनके मिलनसार, भरोसेमंद व्यक्तित्व और राजनीतिक कुशलता का ही नतीजा था कि बहुमत हासिल न कर पाने के बावजूद भाजपा बिहार में कई बार सत्ता में रही। सुशील मोदी की नीतीश कुमार से गहरी दोस्ती थी। हालांकि दोनों के दलों की वैचारिक पृष्ठभूमि अलग थी, पर सुशील मोदी पर नीतीश कुमार का भरोसा इतना दृढ़ था कि वे भाजपा के साथ गठबंधन करने को तैयार हुए।
यहां तक कि राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल कर चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के बाद भी उन्होंने उसका साथ छोड़ा और भाजपा के साथ हाथ मिला लिया। सुशील मोदी जयप्रकाश नारायण के प्रभाव में राजनीति में आए थे। फिर वे भाजपा के साथ हो गए और आजीवन उससे जुड़े रहे। वे प्रबुद्ध राजनीतिकों में से थे। हर वक्त देश-दुनिया की घटनाओं पर नजर रखते थे।
वित्तीय मामलों की उन्हें गहरी समझ थी। यही वजह है कि नीतीश सरकार में उपमुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें वित्त मंत्रालय का भार भी सौंपा गया था। वित्तमंत्री रहते हुए उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए। जिस समय जीएसटी की रूपरेखा तैयार हो रही थी, सुशील मोदी को राज्यों के वित्तमंत्रियों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।
करीब पचास वर्ष वे राजनीति में रहे। अलग-अलग समय में विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा और राज्यसभा चारों सदनों के लिए वे निर्वाचित हुए। उपमुख्यमंत्री, मंत्री और अन्य राजनीतिक पदों पर रहते भी उनका व्यक्तित्व सदा बेदाग रहा। उन पर किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। मृदुभाषी थे। अपने विरोधियों के बारे में भी वे कभी तल्ख नहीं देखे गए। बहुत सोच-समझ कर और अर्थपूर्ण टिप्पणी करते थे।
वे बिहार के लोकप्रिय नेताओं में थे। बिहार में जिस तरह के राजनीतिक समीकरण हैं, उसमें भाजपा को मजबूत स्थिति में खड़ा करने में सुशील मोदी का बड़ा योगदान था। हालांकि भाजपा को यह मलाल है कि अभी तक वह अपने दम पर अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई। मगर जिस तरह सुशील मोदी ने एनडीए को वहां कामयाबी दिलाई थी, वह उनके बाद की पीढ़ी के नेताओं के सामने एक बड़ी लकीर है। उनका जाना भाजपा ही नहीं, बिहार की राजनीति के लिए बड़ी क्षति है।