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Jansatta Editorial: धनशोधन मामले में गिरफ्तारियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने ईडी को दी नसीहत

पिछले कुछ वर्षों से धनशोधन मामलों में जिस तरह ईडी सक्रिय नजर आ रहा है और विपक्ष के अनेक नेताओं और उनसे संबंधित लोगों को सलाखों के पीछे डाल चुका है, उसे लेकर लगातार आपत्ति दर्ज कराई जाती रही है।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 18, 2024 08:14 IST
jansatta editorial  धनशोधन मामले में गिरफ्तारियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने ईडी को दी नसीहत
सुप्रीम कोर्ट। (इमेज- फाइल फोटो)
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सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को कड़ी नसीहत दी है। उसने व्यवस्था दी है कि अगर धनशोधन के मामले में किसी व्यक्ति के खिलाफ विशेष अदालत ने संज्ञान लिया है, तो ईडी उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर आरोपी अदालत के बुलाने पर हाजिर होता है, तो उसे हिरासत में लेने के लिए ईडी को अदालत में आवेदन करना होगा और फिर न्यायालय बहुत जरूरी होने पर ही उसे हिरासत में भेजने का फैसला कर सकता है।

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धनशोधन निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत उसकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकती। यह फैसला एक तरह से ईडी की उसकी सीमा बताने वाला है। इसी धारा के तहत ईडी किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि इस धारा के तहत गिरफ्तारी के बाद किसी आरोपी को जमानत देना मुश्किल हो जाता है।

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हालांकि एक वर्ष पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने ईडी को नसीहत दी थी कि धनशोधन मामले में गिरफ्तारियों को लेकर वह अतिरिक्त उत्साह न दिखाए। उसके बाद भी स्पष्ट निर्देश दिया था कि ईडी तभी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करे, जब उसके पास आरोपी के खिलाफ पुख्ता सबूत हों, उसके बारे में वह स्पष्ट उल्लेख करे।

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से धनशोधन मामलों में जिस तरह ईडी सक्रिय नजर आ रहा है और विपक्ष के अनेक नेताओं और उनसे संबंधित लोगों को सलाखों के पीछे डाल चुका है, उसे लेकर लगातार आपत्ति दर्ज कराई जाती रही है। एक वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि ईडी भय का माहौल पैदा न करे। उसकी गिरफ्तारियों में राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी असाधारण रूप से अधिक है।

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मगर उस नसीहत का उस पर कोई असर नहीं हुआ। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां लगातार जारी रहीं। उनमें से कई नेता अब भी जेल में हैं और उन्हें जमानत नहीं मिल पा रही है। माना जाता है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद इस तरह के छापों और गिरफ्तारियों पर विराम लग जानी चाहिए, ताकि राजनेता चुनाव में समान अधिकार से चुनाव मैदान में उतर सकें। मगर इस दौरान भी छापे रुके नहीं हैं।

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ईडी की इस सक्रियता के विरोध में विपक्षी दलों ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी, मगर धनशोधन का मामला संवेदनशील होने की वजह से अदालत ने कोई आदेश नहीं दिया था। अब अगर सर्वोच्च न्यायालय इसे लेकर गंभीर और कड़ा रुख अपनाए हुए है, तो ईडी को अपने दायरे का अहसास हो जाना चाहिए।

जब भी किसी राजनेता या बड़े अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, तो ईडी भी पीछे-पीछे वहां पहुंच जाती है और अपने असीमित अधिकारों का इस्तेमाल करती देखी जाती है। धनशोधन के मामले में कड़ी कार्रवाई से इनकार नहीं किया जा सकता। यह देश की सुरक्षा के लिए काफी संवेदनशील मामला है। इसी दृष्टि से धनशोधन निवारण अधिनियम को कड़ा बना गया था।

मगर इस कानून को अगर ईडी राजनीतिक विरोधियों को सबक सिखाने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है, तो इस कानून का प्रभाव संदिग्ध हो जाता है। छिपी बात नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में इस अधिनियम के तहत गिरफ्तारियां तो तेज हुई हैं, पर दोषसिद्धि बहुत कम हुई है। यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि सर्वोच्च न्यायालय की नई व्यवस्था के बाद ईडी गिरफ्तारियों के मामले में पुनर्विचार करेगा।

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