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Jansatta Editorial: राजनीतिक रसूख वाले दबंगों पर आखिर कब तक कानून का राज कायम होगा

अगर सचमुच उत्तर प्रदेश सरकार कानून-व्यवस्था के प्रति संजीदा है, तो देखने की बात होगी कि वह करन भूषण सिंह के मामले को कितने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से निपटाती है।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 30, 2024 09:00 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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उत्तर प्रदेश सरकार यह दावा करते नहीं थकती कि उसने प्रदेश में कानून-व्यवस्था को पटरी पर ला दिया है। मगर समझ से परे है कि वहां राजनीतिक रसूख वाले दबंगों में आखिर यह भरोसा कहां से पैदा होता है कि वे चाहे जितनी मनमानी कर लें, उन तक कानून के हाथ नहीं पहुंच सकते। शायद इसी भरोसे के चलते गोंडा के कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी और भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह से बेटे करन भूषण सिंह के काफिले की एक गाड़ी ने मोटर साइकिल सवार दो युवाओं और एक महिला को रौंद दिया। युवाओं की ठौर मौत हो गई और महिला गंभीर रूप से घायल है।

प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि करन भूषण का काफिला काफी तेज रफ्तार से निकल रहा था और उसमें से एक गाड़ी ने सड़क पर आगे निकलने की जल्दी में एक मोटर साइकिल को टक्कर मार दी। गाड़ी की रफ्तार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मोटर साइकिल को टक्कर मारने के बाद वह आगे जाकर खंभे से टकराई और फिर अपने घर के बाहर बैठी एक महिला को रौंदती हुई आगे बढ़ गई। गाड़ी के एअरबैग खुल गए, जिससे उसमें बैठे लोगों की जान बची।

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इस घटना के बाद पुलिस ने गाड़ी को अपने कब्जे में ले लिया और चालक को गिरफ्तार कर लिया है। मगर विचित्र है कि घटना के बाद भी काफिले की बाकी गाड़ियां नहीं रुकीं, उसी रफ्तार में आगे बढ़ गईं। काफिले में शामिल किसी ने टक्कर खाकर गिरे मोटर साइकिल सवार युवकों की खोज-खबर लेना जरूरी नहीं समझा।

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सवाल उठता है कि किसी भी वजह से क्या नेताओं को मनमनाने ढंग से वाहन चलाने की छूट मिल जाती है? अगर करन भूषण के काफिले में शामिल वाहनों ने नियम-कायदों की परवाह करना जरूरी नहीं समझा, तो इसकी कुछ वजहें भी समझी जा सकती हैं। गोंडा और आसपास के इलाकों में बृजभूषण शरण सिंह का दबदबा किसी से छिपा नहीं है। उन पर महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया, तो वे जिस तरह उन्हें डरा-धमका कर आंदोलन वापस लेने का दबाव बनाते रहे, वह भी सब जानते हैं। उनके रसूख का पता इस बात से भी चलता है कि पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया, तो उनके बेटे को टिकट दे दिया।

करन भूषण चुनाव मैदान में हैं, इसलिए उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे कुछ विनम्र और अनुशासित आचरण दिखाएंगे, मगर जिस तरह उनके काफिले की एक गाड़ी ने दो युवकों को रौंद डाला, उससे नहीं लगता कि उन्हें इसकी परवाह रही होगी। हालांकि इस घटना के लिए फिलहाल सीधे-सीधे उन्हें दोषी ठहराना ठीक नहीं, पर सच्चाई यह भी है कि बिना नेता की शह के, उसके साथ चलने वाले लोग मनमानी नहीं कर सकते।

वाहन चालकों में भी कहीं न कहीं यह भरोसा रहा होगा कि वे सड़क पर बेलगाम चलेंगे, तो उन्हें कोई रोके-टोकेगा नहीं। जिस वाहन से दुर्घटना हुई, उस पर पुलिस का वाहन लिखा हुआ था, जबकि वह करन भूषण के काफिले का वाहन था। अगर सचमुच उत्तर प्रदेश सरकार कानून-व्यवस्था के प्रति संजीदा है, तो देखने की बात होगी कि वह इस मामले को कितने निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से निपटाती है।

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