संपादकीय: बेटियों के नाम पर झूठा सम्मान, धर्म और जाति बन रही जान की दुश्मन
आज जब दुनिया भर में लोग अपने पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों को छोड़ कर सामाजिक-आर्थिक विकास की नई राह पर निकल रहे हैं, उसमें ऐसी खबरें दुखद लगती हैं कि किसी पिता ने सिर्फ इसलिए अपनी बेटी की जान ले ली कि उसने किसी अन्य जाति के लड़के से प्रेम किया और उससे शादी करना चाहती थी।
दिल्ली के प्रेमनगर इलाके में एक व्यक्ति को इस बात पर आपत्ति थी कि उसकी बेटी किसी अन्य जाति के लड़के से विवाह करे। उसने योजनाबद्ध तरीके से बेटी की हत्या कर दी। आरोपी पिता को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन इस घटना से एक बार फिर यह सवाल उठा है कि देश के विकास के मोर्चे पर सामाजिक मसलों की प्राथमिकता क्या है और उसमें सुधार के लिए क्या किया जा रहा है।
झूठे सम्मान के नाम पर की गई हत्या की यह कोई अकेली घटना नहीं है। देश के अलग-अलग इलाकों से अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जिनमें किसी प्रेमी जोड़े को उनके परिवार वालों ने ही मार डाला, क्योंकि लड़की और लड़के की जाति या धर्म अलग था।
विडंबना है कि बहुत सारे लोग आधुनिकता और तकनीकी विकास के मामले में खुद को मुख्यधारा में शामिल दिखाना चाहते हैं, मगर जाति और धर्म के मसले पर वे एक विचित्र किस्म की संकीर्णता से घिरे रहते हैं। दुनिया की कोई भी संस्कृति प्रेम के विरुद्ध नहीं है और न किसी व्यक्ति को जाति, धर्म या झूठे सम्मान के नाम पर हत्या करने की शिक्षा देती है।
मगर अफसोसनाक है कि अनपढ़ से लेकर कई पढ़े-लिखे लोग भी जाति की जड़ता में जकड़े रहते और इस मसले पर कई बार इस हद तक क्रूर हो जाते हैं कि अंतरजातीय प्रेम या विवाह करने वाली अपनी बहन या बेटी की भी हत्या कर डालते हैं।
आखिर क्या कारण है कि शिक्षा के प्रसार और तमाम जागरूकता अभियानों में सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए ऐसे उपायों का अभाव दिखता है, जो लोगों को जाति और धर्म की जड़ता से मुक्त कर सकें और मानवीय संवेदना के साथ सामाजिक दायरे के विस्तार को लेकर एक प्रगतिशील सोच का विकास हो!