Jansatta Editorial: पुणे के आरोपी कार चालक को बचाने के लिए विषाक्त खेल खेलना कानून व्यवस्था के लिए घातक
महाराष्ट्र के पुणे में कार की टक्कर से मोटरसाइकिल पर सवार दो लोगों की जान चली जाने के बाद आरोपी चालक को बचाने के लिए जिस स्तर के विषाक्त खेल सामने आए हैं, वे हैरान करने वाले हैं। होना तो यह चाहिए था कि आरोपी को संबंधित कानूनों के तहत कठघरे में खड़ा किया जाता और उचित सजा दी जाती।
मगर अफसोस कि इसमें शुरू से ही कानूनी पक्ष को कमजोर करने से लेकर मामले को दबाने और आरोपी को बचाने के मकसद से हर स्तर पर गड़बड़ी करने की कोशिश की गई। आरोपी के नाबालिग होने के आधार पर अदालत में बिना देर किए उसे यातायात संचालन में सहयोग देने और निबंध लिखने जैसी बेहद हल्की शर्तों के साथ जमानत दे दी गई। कानून में इस तरह जमानत देने का आधार हो सकता है, मगर तथ्य यह भी है कि इस घटना में बिना पंजीकरण और ड्राइविंग लाइसेंस के शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले आरोपी की गैरजिम्मेदारी ने दो लोगों की जान ले ली।
एक गंभीर अपराध करने वाले को बचाने के पीछे इसके सिवा और क्या कारण हो सकता है कि आरोपी रईस परिवार से है और पुलिस ऐसी स्थिति में कई बार परोक्ष प्रभाव में काम करती है। सच यह है कि मामले ने तूल पकड़ा तब कार्रवाई का तरीका बदला। आरोपी की जमानत रद्द हुई और लापरवाही बरतने के आरोप में दो पुलिस अफसरों को निलंबित किया गया।
यह उजागर हुआ कि अस्पताल में आरोपी के खून का जो नमूना लिया गया था, उसे कूड़ेदान में फेंक दिया गया और दूसरे व्यक्ति का खून लेकर फोरेंसिक प्रयोगशाला में भेजा गया। इस आरोप में दो डाक्टरों को गिरफ्तार किया गया है। इस हरकत ने अन्य अपराधों के मामले में भी फोरेंसिक जांच की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
इससे पहले आरोपी के दादा को ड्राइवर का अपहरण करने, धमकी देने और अपराध कबूल करने को मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस घटना के बाद जो हुआ, उससे यही जाहिर हुआ है कि समूचा तंत्र किसी रसूखदार आरोपी के बचाव में कितना गैरजिम्मेदार हो सकता है।