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Jansatta Editorial: जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव में लोगों का बढ़-चढ़ कर भाग लेना लोकतंत्र के लिए सराहनीय

जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव में जिस तरह वहां के लोग मतदान के लिए घरों से निकले, उससे साफ हो गया है कि उन्होंने दहशतगर्दों के दबाव की परवाह न करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भरोसा जताया है।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 22, 2024 08:09 IST
jansatta editorial  जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव में लोगों का बढ़ चढ़ कर भाग लेना लोकतंत्र के लिए सराहनीय
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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इस बार के आम चुनाव में जब बहुत सारी जगहों पर मतदान में उत्साह की कमी देखी जा रही है, कश्मीर घाटी से इसमें बढ़ोतरी के आंकड़े वहां के लोगों में लोकतंत्र के प्रति बढ़ते विश्वास का संकेत देते हैं। बारामूला में अट्ठावन फीसद से ऊपर मतदान हुआ। सोपोर में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में चार फीसद बढ़ कर इस बार चौवालीस फीसद मतदान दर्ज हुआ।

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ये आंकड़े ऐसे समय में आए हैं, जब कश्मीर के कई हिस्सों में माहौल अनुकूल नहीं है। मतदान से एक दिन पहले आतंकवादियों ने शोपियां में एक स्थानीय नेता की गोली मार कर हत्या कर दी थी। पहलगाम में भी एक पर्यटक दंपति को निशाना बनाया गया था। आतंकी संगठन लगातार स्थानीय लोगों पर मुख्यधारा की व्यवस्था में हिस्सेदारी से दूर रहने का दबाव बनाते रहे हैं।

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थोड़े-थोड़े समय पर हो जाते आतंकवादी हमलों से यही लगता था कि दहशतगर्दों को स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल है और वे उन्हें पनाह देते हैं। फिर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद जिस तरह घाटी में लगातार असंतोष नजर आ रहा था, उससे यही आशंका बनी हुई थी कि वहां के लोग चुनावों में उत्साह नहीं दिखाएंगे। शायद यही भय था कि निर्वाचन आयोग ने भी वहां लोकसभा के चुनाव कराने की घोषणा तो कर दी, पर विधानसभा चुनावों को टालना बेहतर समझा।

मगर लोकसभा चुनाव में जिस तरह वहां लोग मतदान के लिए घरों से निकले, उससे साफ हो गया है कि उन्होंने दहशतगर्दों के दबाव की परवाह न करते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भरोसा जताया है। लोग मुख्यधारा व्यवस्था से जुड़ना चाहते हैं। इससे स्वाभाविक ही घाटी और राष्ट्रीय स्तर के सियासी दलों और निर्वाचन आयोग का भी उत्साह बढ़ेगा।

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इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीर के आम लोग दरअसल अमन चाहते हैं। दहशतगर्दी से उनकी जिंदगी में दुश्वारियों के सिवा और कुछ नहीं आता। आतंकियों और सुरक्षाबलों के टकराव में अक्सर उन्हें अपने रोजी-रोजगार से दूर रहना पड़ता है। सुरक्षा तलाशी और प्रशासनिक सख्ती के चलते हर समय उन्हें एक तरह के खौफ में जिंदगी बसर करनी पड़ती है।

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इसलिए आम लोग यही चाहते हैं कि खौफ का माहौल खत्म हो, अमन की सूरत बने। चुनाव होंगे, तभी लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होगी, उनकी बेहतरी के फैसले किए जा सकेंगे, यह बात वे अच्छी तरह जानते हैं। सिर्फ कुछ अलगाववादी ताकतें और सियासी लोग मसलों को उलझाए रखना चाहते हैं।

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के लिए परिसीमन पूरा हुए काफी समय बीत चुका है। तमाम राजनीतिक दल वहां लंबे समय से स्थगित लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की मांग उठाते रहे हैं। अब तो घाटी के ज्यादातर हिस्से तनावमुक्त नजर आते हैं। बारामूला, शोपियां, अनंतनाग, सोपोर जैसे कुछ इलाकों में जरूर रह-रह कर आतंकी गतिविधियां सिर उठा लेती हैं, पर उनमें भी चुनाव को लेकर लोगों के उत्साह से यही जाहिर हुआ है कि आतंकी मंसूबे पस्त पड़ चुके हैं।