Jansatta Editorial: हमास और इजराइल के बीच जारी जंग की जिम्मेदारी तय कर दोषियों को सजा देने की जरूरत
यह समझना मुश्किल है कि हमास और इजराइल के बीच जारी जंग से अब तक हासिल क्या हुआ है, लेकिन इतना साफ है कि इस त्रासदी में मानवता कराह रही है। कहने को दुनिया के वे देश भी मानवता की दुहाई देते हैं, जिनके हमलों में सैनिकों से ज्यादा निर्दोष आम लोगों की जान चली जाती है। यों तो बहुत कुछ तबाह करने के बाद आखिर किसी बिंदु पर युद्ध खत्म होता है, लेकिन उसके बाद हजारों लोगों की मौत के लिए शायद ही किसी की जिम्मेदारी तय की जाती है।
मगर अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत ने सोमवार को युद्ध के दौरान अपराधों के लिए इजराइल और हमास के प्रमुखों पर आरोप लगाते हुए उन्हें मानवता के खिलाफ जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले वैश्विक नेताओं की सूची में डाल दिया। अदालत ने इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सहित वहां के दो नेताओं और हमास के तीन नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट की भी घोषणा की। मगर इजराइल ने खुद को ‘लोकतांत्रिक’ बताते हुए अदालत के इस रुख को ‘वास्तविकता से कोसों दूर’ बताया और हमास ने खुद को ‘पीड़ित’ कहा और इजराइल की तुलना ‘जल्लाद’ से की है। मगर प्रतीक रूप से भी देखें तो आइसीसी के फैसले की अपनी अहमियत है।
करीब सात महीने पहले इजराइली सीमा में घुस कर हमास का आतंकी हमला निश्चित तौर पर बर्बरता की पराकाष्ठा था। इसके लिए वह दुनिया भर के मानवतावादियों के निशाने पर है। मगर हमास के उस हमले के जवाब में अब तक इजराइल ने जो रुख अख्तियार किया हुआ है, वह अब दुनिया भर के लिए चिंता का सबब बन गया है।
हमास के हमले में करीब बारह सौ आम लोगों की जान चली गई थी, उसके जवाब में इजराइल की सैन्य कार्रवाई में अब तक पैंतीस हजार से ज्यादा आम फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। उनमें एक बड़ी संख्या बच्चों और महिलाओं की है। इजराइली हमले में अस्पतालों और हमले से बचने की पनाहगाहों को भी नहीं बख्शा गया। इजराइल के हमास पर हमले में कितने आतंकी मारे गए, यह साफ नहीं है, लेकिन इस क्रम में हजारों निर्दोष आम फिलिस्तीनियों को मार डाला गया। सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर चल रहे कत्लेआम की जिम्मेदारी तय कर क्या दोषी को सजा दी जा सकेगी?