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Jansatta Editorial: जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से निपटने के लिए व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत

तापमान में अप्रत्याशित बदलाव की वजह से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में मान लिए जाने से बचाव के उपायों को लेकर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाना अफसोस की बात।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 17, 2024 08:54 IST
jansatta editorial  जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से निपटने के लिए व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(सोशल मीडिया)।
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पिछले कुछ दशकों से जलवायु में असंतुलन और बढ़ते तापमान की वजह से उपजी स्थितियों से जैसे हालात बन रहे हैं, उसमें मौसम के सामान्य रहने को लेकर एक आशंका बनी रहती है। दुनिया भर के जलवायु में हो रहे बदलाव का असर लगभग सभी मौसम में देखने को मिल रहा है, जिसमें ठंड, गर्मी या बरसात में एक विचित्र प्रकार की अनियमितता दिख रही है और इसकी मार समूचे जीव-जगत पर पड़ रही है।

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गौरतलब है कि आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि लू से जुड़ी मौतें गर्मी से मरने वालों की कुल संख्या का लगभग एक तिहाई और विश्व भर में हुई कुल मौतों का एक फीसद है। पिछले तीस वर्षों के आंकड़ों के अध्ययन के नतीजों में बताया गया है कि हर वर्ष गर्मी में एक लाख तिरपन हजार अतिरिक्त लोगों की जान चली जाती है, जिसमें से करीब आधी मौतें एशिया में और तीस फीसद से ज्यादा यूरोप में होती हैं। अकेले भारत में हर वर्ष तीस हजार से ज्यादा लोग लू की वजह से जान गंवा बैठते हैं।

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दरअसल, गर्मी में लू तो बरसात में बिजली गिरने की वजह से अब जितने लोगों की जान जा रही है, उसमें साफ है कि मौसम के बदलते मिजाज और उसमें बचाव के इंतजामों को लेकर एक प्रकार की उदासीनता है। जबकि भीषण गर्मी के दौरान चेतावनी प्रणाली, शहरी नियोजन और हरित संरचना, सामाजिक सहायता कार्यक्रम, बिगड़े मौसम के अनुकूल स्वास्थ्य सेवाएं, जागरूकता के साथ सामुदायिक सहभागिता से जुड़े कार्यक्रमों के जरिए आम लोगों को बचाव को लेकर सजग किया जा सकता है।

संसाधनों से लैस और वंचित समुदायों के बीच असमानताओं को कम करके दीर्घकालिक रणनीतियों को लागू करना भी एक जरूरी कदम होगा। अफसोस की बात है कि तापमान में अप्रत्याशित बदलाव की वजह से होने वाली मौतों को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में मान लिए जाने से बचाव के उपायों को लेकर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा पाता। जरूरत इस बात की है कि जिस रफ्तार से मौसम के मिजाज में बदलाव आ रहा है और वह मनुष्य सहित समूचे जीव-जगत और पर्यावरण के लिए घातक साबित हो रहा है, उसे देखते हुए व्यापक दृष्टिकोण के साथ एक समग्र रणनीति बनाई जाए।

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