संपादकीय: पश्चिम बंगाल में भीड़ का तंत्र, महिला की सरे बाजार बुरी तरह पिटाई
पश्चिम बंगाल के उत्तरी दिनाजपुर में भीड़ के बीच एक महिला और पुरुष की बुरी तरह पिटाई की घटना अराजक हो चुके लोगों और नाकाम हो चुकी सरकार का ही उदाहरण लगती है। खबरों के मुताबिक, विवाहेतर संबंधों के आरोप पर गांव में एक कथित सभा बुला कर युवा जोड़े को सजा के तौर पर सबके सामने बर्बरता से पीटा गया। एक वीडियो में भीड़ के बीच एक व्यक्ति महिला और पुरुष की जिस तरह पिटाई करता दिखता है, वह हैरान करने वाला है। वहां खड़े लगभग सभी लोग मूकदर्शक थे और कहीं भी पुलिस या प्रशासन का दखल नहीं दिख रहा था। सवाल है कि किसी व्यक्ति के व्यवहार या गतिविधि को अपराध तय करने और उसे सजा देने का अधिकार कुछ अराजक, अपराधी तत्त्वों या भीड़ को किसने दे दिया! हालांकि तृणमूल कांग्रेस ने महिला और पुरुष को पीटने के मुख्य आरोपी से कोई संबंध होने से इनकार किया, मगर बताया जा रहा है कि वह शख्स इसी पार्टी का स्थानीय कार्यकर्ता है।
किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था और शासन-तंत्र की हर स्तर पर मौजूदगी के दावे वाले राज्य में हुई यह घटना जिस प्रकृति में देखी गई, उससे यही लगता है कि या तो अपराधी तत्त्वों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है या फिर उनके बीच सरकार या पुलिस का कोई खौफ नहीं है। अराजकता के आलम का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बीते एक हफ्ते के दौरान राज्य में भीड़ द्वारा हिंसा की कई घटनाएं सामने आईं।
खुद पुलिस के मुताबिक, हाल में राज्य में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या किए जाने की यह चौथी घटना है। ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में कुछ लोगों ने खुद को न्यायालय मान लिया है और वे मनमाने तरीके से फैसला कर डालते हैं। हैरानी की बात है कि राज्य में कई जगहों पर किसी कथित ‘कंगारू कोर्ट’ या सभाओं में सामाजिक मसलों पर महज आरोप के बाद आनन-फानन में ऐसे फैसले सुना दिए जाते हैं, जो अराजकता का ही उदाहरण है। ऐसी किसी घटना के तूल पकड़ने के बाद पुलिस आनन-फानन में कार्रवाई करती दिखती है, लेकिन इससे पहले सरकार और उसका शासन-तंत्र कहां होता है?