संपादकीय: मणिपुर का दर्द, पूर्वाग्रह के बिना शांति कायम रखने की कोशिश, मैतेई और कुकी समुदायों के प्रति नरमी दिखाए सरकार
मणिपुर पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से अशांति और हिंसा के दौर से गुजर रहा है। सरकार की ओर से तमाम कवायदों के बावजूद आज भी हालात में कोई बड़ा बदलाव आता नहीं दिख रहा है। जाहिर है, मुख्य रूप से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चल रहे हिंसक टकराव की आग में आम लोग झुलस रहे हैं और इस पर काबू पाने में सरकार नाकाम रही है। दरअसल, लोकतंत्र और शासन के बुनियादी सिद्धांतों के तहत कम से कम सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह इस संघर्ष के दौरान किसी खास तबके के पक्ष में या किसी के खिलाफ न दिखे।
मगर मणिपुर में सरकार पर ऐसे आरोप कई बार लगाए गए कि वह मैतेई समुदाय के लिए नरम रुख और कुकी समुदाय के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है। इस क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सरकार के प्रति सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए उसे इस बात के लिए कठघरे में खड़ा किया कि एक व्यक्ति को सिर्फ इसलिए अस्पताल नहीं ले जाया गया क्योंकि वह अल्पसंख्यक कुकी समुदाय से था।
गौरतलब है कि मणिपुर में अब भी कुकी और मैतेई समुदाय के बीच टकराव जारी है। मगर कम से कम सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने क्षेत्राधिकार में हर नागरिक के प्रति समान बर्ताव करे, बिना किसी भेदभाव के सबके लिए सुरक्षित और सहज जीवन सुनिश्चित करे। जरूरत इस बात की है कि राज्य सरकार किसी समुदाय के प्रति पूर्वाग्रहों के बिना शांति-व्यवस्था कायम करे। किसी बीमार या जरूरतमंद व्यक्ति की मदद से बचने के लिए अगर कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका को कारण बताया जाता है, तो सवाल है कि इसे बहाल करने और रखने की जिम्मेदारी किसकी है?
हालत यह है कि राज्य में दो समुदायों के बीच हिंसा के एक वर्ष से ज्यादा बीत चुके हैं, दो सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और आज भी सरकार शांति कायम कर पाने में नाकाम है। एक ओर, केंद्र सरकार संसद में यह आश्वासन दे रही है कि मणिपुर में शांति की आशा और भरोसा करना संभव हो रहा है, वहीं सुप्रीम कोर्ट को यह टिप्पणी करनी पड़ रही है कि उसे मणिपुर सरकार पर भरोसा नहीं है। किसी भी लोकतांत्रिक कही जाने वाली सरकार के लिए यह आदर्श स्थिति नहीं है।