Jansatta Editorial: पुणे की घटना में कानूनी कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए जो देश के लिए नजीर बन सके
सड़क हादसों पर काबू पाने के इरादे से मोटर वाहन अधिनियम को कड़ा बनाया गया, परिवहन कानून तोड़ने पर सजा और जुर्माने की रकम काफी बढ़ा दी गई, ताकि लोगों की सड़कों पर मनमानी की आदत कम हो। मगर इन सब उपायों का अपेक्षित असर नजर नहीं आता। हर वर्ष सड़क हादसे कुछ बढ़े हुए ही दर्ज होते हैं। इनमें नशा करके बेलगाम रफ्तार से गाड़ी चलाने की घटनाएं अधिक देखी जाती हैं।
पुणे में एक नाबालिग के शराब पीकर अंधाधुंध गाड़ी चलाने और दो लोगों को टक्कर मार कर मौत के घाट उतार देने की घटना इसका ताजा उदाहरण है। इस घटना से सड़क हादसों पर लगाम न लग पाने की कई परतें खुलती हैं। विचित्र है कि ऐसी घटनाओं को लेकर खुद पुलिस और अदालतें तक गंभीर नजर नहीं आतीं।
गौरतलब है कि पुणे में सत्रह वर्ष का एक किशोर अपने पिता की महंगी कार लेकर रात को दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करने निकला। दो शराबखानों में जाकर उन्होंने शराब पी, फिर तेज रफ्तार गाड़ी चलाते हुए सड़क पर निकले और शनिवार और रविवार की दरम्यानी रात को मोटरसाइकिल पर सवार दो युवाओं को टक्कर मार दी। दोनों की वहीं मौत हो गई।
इस घटना पर लोगों का ध्यान तब गया, जब आरोपी को गिरफ्तार करने के पंद्रह घंटे के भीतर कुछ आसान शर्तों के साथ रिहा कर दिया गया। उसमें आरोपी को पंद्रह दिन तक ट्रैफिक पुलिस की यातायात संचालन में मदद करने, तीन सौ शब्दों में यातायात व्यवस्था पर निबंध लिखने और शराब की लत छोड़ने के लिए परामर्श केंद्र की मदद लेने जैसी शर्तें रखी गई थीं।
इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हुई तो महाराष्ट्र पुलिस सक्रिय हुई और दुबारा मामला दर्ज कर जांच शुरू की। अभी तक की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य हाथ लगे हैं। आरोपी किशोर का पिता पुणे का अमीर भवन निर्माता है। बताया जा रहा है कि उसी के प्रभाव में आरोपी किशोर को आसान शर्तों के साथ रिहा कर दिया गया था।
जिस गाड़ी से हादसा हुआ, उसे विदेश से मंगाया गया था और अभी तक उसका पंजीकरण भी नहीं कराया गया था। अब पुलिस ने आरोपी के पिता को गिरफ्तार कर लिया है, उन दोनों शराबखानों के खिलाफ भी कार्रवाई की गई है, जिन्होंने नाबालिगों को शराब परोसी। इस मामले को लेकर महाराष्ट्र सरकार भी सक्रिय हो गई है। उसने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
यह कोई पहली घटना नहीं है, जब किसी रसूखदार आदमी के नाबालिग बेटे को बिना लाइसेंस के नशे में गाड़ी चलाने और किसी को रौंद डालने के बाद रिहा करने की कोशिश की गई। ऐसे भी अनेक मामलों पर लंबी चर्चाएं होती रही हैं, जिनमें माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों को गाड़ी चलाने को देते रहे हैं और वे दुर्घटना कर बैठते हैं।
मगर ऐसी तमाम घटनाओं से न तो अभिभावक कोई सबक लेना जरूरी समझते हैं और न यातायात व्यवस्था संभाल रहे पुलिसकर्मी ही अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं। रसूखदार लोगों को यह भरोसा सदा बना रहता है कि वे अदालत को भी अपने प्रभाव में लेकर ऐसे मामलों से निपट लेंगे। मगर ऐसी गैरजिम्मेदाराना हरकतों से जिन लोगों की जान चली जाती और उनके परिवार पर तकलीफों का पहाड़ टूट पड़ता है, उनकी फिक्र कौन करेगा। पुणे की घटना में कानूनी कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए जो नजीर बने।