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Jansatta Editorial: लू के थपेड़े! सरकारें और उनके तंत्र गंभीर नजर नहीं आते

Heat Wave: स्वाभाविक ही तेज गर्मी में तैनात कर्मचारियों के मरने को लेकर निर्वाचन आयोग की आलोचना हो रही है। मरने वाले कर्मचारियों में अधिकतर छोटी श्रेणी के हैं, जिन्हें लगभग पूरे समय धूप में ही खड़े रहना पड़ा होगा।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | June 03, 2024 07:48 IST
jansatta editorial  लू के थपेड़े  सरकारें और उनके तंत्र गंभीर नजर नहीं आते
मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गई, मगर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि आखिर निर्वाचन आयोग ने क्या सोच कर चुनाव को इतना लंबा खींचा और ऐसे मौसम में मतदान की तारीखें रखीं, जब पूरा उत्तर भारत लू में झुलस रहा होता है। (PTI IMage)
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हर वर्ष गर्मी में तापमान कुछ बढ़ा हुआ दर्ज हो रहा है। लू के थपेड़ों से लोगों की जान चली जाती है। पिछले वर्ष एक ही दिन में अकेले बलिया में करीब डेढ़ सौ लोगों की जान चली गई थी। दुनिया भर के मौसम वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते वैश्विक ताप को लेकर चिंतित हैं। मगर इसे लेकर खुद सरकारें और उनके तंत्र कुछ गंभीर नजर नहीं आते। इसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में मतदान के आखिरी चरण में लू लगने और बुखार की वजह से फिलहाल करीब पच्चीस लोगों के जान गंवा देने के आंकड़े आए हैं।

इसके अलावा पिछले चार दिनों में सात राज्यों से करीब साढ़े तीन सौ लोगों के मरने के आंकड़े मिल रहे हैं। दो साल पहले ऐसी ही जानलेवा गर्मी के मौसम और कोरोना संक्रमण के समय उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव कराए गए थे, जिसमें सौ से अधिक सरकारी स्कूलों के अध्यापकों के चुनाव तैनाती के दौरान बीमार होकर मरने के आंकड़े आए थे। तब उत्तर प्रदेश अध्यापक संघ ने खासा विरोध दर्ज कराया और मुआवजे को लेकर सरकार पर काफी दबाव बनाया था। अब आम चुनाव के दौरान तैनात कर्मचारियों के मरने की खबरें आई हैं।

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स्वाभाविक ही तेज गर्मी में तैनात कर्मचारियों के मरने को लेकर निर्वाचन आयोग की आलोचना हो रही है। मरने वाले कर्मचारियों में अधिकतर छोटी श्रेणी के हैं, जिन्हें लगभग पूरे समय धूप में ही खड़े रहना पड़ा होगा। इनके अलावा, उन हजारों सुरक्षाबलों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिन्हें चिलचिलाती धूप और लू के थपेड़े सहते हुए अपने कर्तव्य का निर्वाह करना पड़ा। मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गई, मगर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि आखिर निर्वाचन आयोग ने क्या सोच कर चुनाव को इतना लंबा खींचा और ऐसे मौसम में मतदान की तारीखें रखीं, जब पूरा उत्तर भारत लू में झुलस रहा होता है।

ऐसा नहीं माना जा सकता कि निर्वाचन आयोग मई और जून के महीनों में चलने वाली गर्म हवाओं से अपरिचित रहा होगा। जब वह सुरक्षा उपायों का गंभीरता से अध्ययन कर सकता है, सुरक्षाबलों की तैनाती को लेकर इतना सतर्क हो सकता है, तो उसने मौसम विभाग के साथ बैठ कर गर्मी के चलते पैदा होने वाली दिक्कतों के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास क्यों नहीं किया। कई लोगों का मानना है कि तेज गर्मी की वजह से बहुत सारे लोग मतदान के लिए घरों से बाहर नहीं निकले, जिससे कई जगहों पर मतदान काफी कम हुआ।

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मतदान कराने का मतलब केवल यह नहीं होता कि कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाए और मतदाताओं की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाए। इस प्रक्रिया को संपन्न कराने वालों की सेहत और सुविधाओं का भी ध्यान रखना जरूरी होता है। निर्वाचन आयोग इस बात से बेखबर नहीं माना जा सकता कि गर्मी और लू के कारण लोगों का पाचन तंत्र खराब हो जाता है, जिन लोगों को दिल, गुर्दे वगैरह की समस्या है, उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। जिन सरकारी कर्मचारियों को चुनाव केंद्रों पर तैनात किया गया, उनमें से अनेक लोग इस तरह की समस्याओं से पहले से जूझ रहे होंगे। आखिर उनकी सेहत का ध्यान रखने की जिम्मेदारी किस पर होगी। अब लू लगने से मरने वालों को मुआवजे की घोषणा की जा रही है, मगर इससे सरकारी तंत्र की लापरवाहियों पर पर्दा नहीं पड़ जाता।

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